Taslima Nasreen: बांग्लादेश की जानी-मानी नारीवादी लेखिका और सोशल एक्टिविस्ट तस्लीमा नसरीन एक बार फिर अपने बयान की वजह से चर्चा में हैं। आपको बता दें कि लेखिका नसरीन इन दिनों बांग्लादेश छोड़ने के बाद भारत में रह रही हैं। इससे पहले वह यूरोप और अमेरिका में रहा करती थीं। हाल ही में, इजरायल और हमास के बीच जारी युद्ध को लेकर चिंतित लोगों पर तस्लीमा ने टिप्पणी की है।
तस्लीमा नसरीन ने फिलिस्तीन को लेकर टिप्पणी की है और कहा है कि जिन्हें फिलिस्तीन के खिलाफ होने वाले अत्याचार की चिंता सता रही है, ऐसे लोगों को पहले अपने देश में अल्पसंख्यकों की चिंता करने की जरुरत है। फिलिस्तीन के लिए चिंतित लोगों के अपने देश में रह रहे अल्पसंख्यकों की हो रही दुर्दशा पर चिंता करने की जरुरत है।
तस्लीमा नसरीन ने अपने एक इंटरव्यू के दौरान कहा, ‘‘मैं सुनती हूं कि मेरे साथी बांग्लादेशी नागरिक फलस्तीनियों पर अत्याचार से कुपित हैं। उनमें से कुछ तो उनकी मदद के लिए फिलिस्तीनभी जाना चाहते हैं। इजराइलियों और फलस्तीनियों समेत दुनिया में कहीं भी किसी पर अत्याचार की मैं व्यक्तिगत रूप से निंदा करती हूं।’’
तस्लीमा नसरीन ने कहा, ‘‘मैं कहना चाहूंगी कि यदि मेरे देशवासी (बांग्लादेश) फिलिस्तीन में अत्याचार और हमलों के फलस्वरूप आई शरणार्थियों की बाढ़ से इतने चिंतिंत हैं , तो जब आज भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हमला किया जाता है और उनमें से कई अपनी जमीन छोड़कर कहीं दूसरी जगह शरणार्थी बनने के लिए बाध्य किये जाते हैं, तब भी उनकी अन्त: चेतना आहत होनी चाहिए।’’
बांग्लादेश में पिछले महीने अल्पसंख्यक समुदाय के एख कवि के साथ मारपीट की गई थी, जिनकी उम्र 80 वर्ष की थी। बांग्लादेश में आए दिन अल्पसंख्यकों पर ऐसे हमले होते रहते हैं। कई लोगों को में इसमें अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। श्रृष्टि ओ चेतना’ नामक एक संगठन की मानवाधिकार रिपोर्ट के अनुसार, ‘मंदिरों और अन्य समुदायों की संपत्तियों पर हमले’, या सामान्य अल्पसंख्यक विरोधी अपशब्द, ‘देश से निकाल देने या उत्पीड़न’ कई सारी घटनाएं सामने आई थीं।
लेखिका ने कहा, ‘‘मेरी मातृभूमि बांग्लादेश में शानदार आर्थिक विकास नजर आने के बावजूद, कट्टरपंथ सिर उठाता दिख रहा है। लैंगिक असंतुलन लगातार बढ़ता जा रहा है। सार्वजनिक और राजनीतिक परिदृश्य में सांप्रदायिक संगठन के लोगों को जगह दी जा रही है। एक तरफ, बांग्लादेश की प्रति व्यक्ति आय बढ़ रही है तथा बढ़िया बुनियादी ढांचा सामने आ रहा है, जबकि दूसरी तरफ बच्चों को कट्टरपंथ का पाठ पढ़ाने वाले कौमी मदरसों को बढ़ावा दिया जा रहा है।’’
तस्लीमा नसरीन ‘सिमोन दा बीवयोर’ पुरस्कार और ‘सैखरोव पुरस्कार’ समेत कई पुरस्कारों से सम्मानित की जा चुकी हैं। उनकी रचनाओं में कट्टरपंथ, रूढ़िवाद, पाखंड और पाखंड के खिलाफ मुखरता दिखती है। जिससे बांग्लादेश में उन्हें बहुसंख्यक समुदाय का विरोध झेलना पड़ा। उनके खिलाफ कई सारे फतवे जारी किए गए। उनकी हत्या की धमकियां भी दी गईं। जिसके बाद उन्हें अपना देश बांग्लादेश छोड़ना पड़ा। इस समय वह भारत के नई दिल्ली में रहती हैं।
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