India News (इंडिया न्यूज), Chhaava: विकी कौशल की बहुप्रतीक्षित फिल्म ‘छावा’ सिनेमाघरों में रिलीज के बाद शानदार प्रदर्शन कर रही है। 14 फरवरी को रिलीज हुई यह ऐतिहासिक फिल्म अब तक 140 करोड़ रुपये से ज्यादा की कमाई कर चुकी है। खास बात यह है कि सिर्फ 4 दिनों में ही फिल्म ने अपना बजट निकाल लिया, जो फिल्म को एक जबरदस्त हिट बना रहा है। फिल्म को दर्शकों से अच्छा रिस्पॉन्स मिल रहा है, लेकिन इसके बावजूद यह एक परफेक्ट फिल्म नहीं कही जा सकती। कहानी, किरदारों की प्रस्तुति और फिल्म की संरचना को लेकर कई खामियां नजर आई हैं, जो इसे और भी दमदार बना सकती थीं। हालांकि, फिल्म के क्लाइमैक्स ने दर्शकों को झकझोर कर रख दिया और शायद यही वजह है कि बाकी कमियों के बावजूद फिल्म बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन कर रही है। आइए जानते हैं, वो 5 बड़ी गलतियां जिनके कारण यह फिल्म और भी बेहतर हो सकती थी।
फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन पर आधारित है, लेकिन इसकी कहानी एकतरफा नजर आती है। इसे देखने पर ऐसा लगता है कि सिर्फ एक पक्ष को प्रमुखता दी गई है, जबकि दूसरे पक्ष को लेकर बहुत कम जानकारी दी गई। खासतौर पर औरंगजेब और उसके दरबार की रणनीतियों को बहुत हल्के में दिखाया गया है। फिल्म में मराठा साम्राज्य की योजनाओं और लड़ाइयों को जरूर दर्शाया गया है, लेकिन संभाजी महाराज को पकड़ने की साजिश कैसे रची गई, इसके पीछे क्या रणनीति थी—यह सब फिल्म में गायब है। इससे कहानी को और अधिक गहराई दी जा सकती थी।
Chhaava
इतिहास में औरंगजेब को एक क्रूर और रणनीतिक शासक के रूप में जाना जाता है, लेकिन फिल्म में उसे कहीं न कहीं एक कमजोर और हारा हुआ किरदार बना दिया गया है। यह वही शासक था, जिसने वर्षों तक अपनी नीतियों से मराठा साम्राज्य को चुनौती दी, लेकिन फिल्म में ऐसा प्रतीत होता है कि वह बस सेना भेजने और हारने तक सीमित है। इस किरदार को अगर अधिक प्रभावी ढंग से दिखाया जाता, तो संघर्ष अधिक रोमांचक हो सकता था। इतिहास में दर्ज औरंगजेब की क्रूरता और योजनाओं को ठीक से नहीं दर्शाने से फिल्म का प्रभाव थोड़ा कमजोर पड़ जाता है।
ऐतिहासिक फिल्मों में रोमांच बनाए रखने के लिए ट्विस्ट और टर्न्स जरूरी होते हैं। लेकिन ‘छावा’ की कहानी एक सीधी रेखा पर चलती नजर आती है। दर्शकों को पहले से ही मालूम है कि संभाजी महाराज का क्या हश्र हुआ था, लेकिन इसके बावजूद कोई ऐसा मोमेंट नहीं आता, जो चौंका दे या कहानी में नयापन लाए। अगर स्क्रिप्ट में कुछ नए एंगल जोड़े जाते या घटनाओं को ज्यादा प्रभावी तरीके से दिखाया जाता, तो फिल्म ज्यादा रोचक हो सकती थी। दर्शकों को अगर सिर्फ इतिहास ही देखना होता, तो वे किताबें पढ़ सकते थे। महंगी टिकट खरीदकर सिनेमाघर में जाने का मकसद फिल्म में सिनेमाई अनुभव और रोमांच महसूस करना होता है।
अगर कोई फिल्म एक ही पक्ष की कहानी दिखाती है, तो उसे बेहद मजबूत ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। ‘छावा’ में विकी कौशल और अन्य कलाकारों का अभिनय शानदार है, लेकिन स्क्रीनप्ले में वह कसावट नहीं दिखती। फिल्म में संभाजी महाराज की रणनीतियां और युद्ध कौशल जरूर दिखाए गए हैं, लेकिन यह नहीं बताया गया कि ये योजनाएं बनी कैसे। कैसे मराठा दरबार में फैसले लिए गए, किस तरह के संघर्ष हुए—इन छोटे लेकिन महत्वपूर्ण पहलुओं को नजरअंदाज कर दिया गया। फिल्म अगर एकतरफा ही थी, तो उसे और अधिक दमदार बनाया जा सकता था, ताकि दर्शक उसमें पूरी तरह डूब सकें। लेकिन कुछ जगहों पर कहानी कमजोर महसूस होती है, जिससे दर्शकों की जुड़ाव की क्षमता कम हो जाती है।
‘छावा’ का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इसका क्लाइमैक्स है। यह इतना प्रभावी है कि कई दर्शकों की आंखें नम हो गईं। लेकिन सवाल यह उठता है कि अगर क्लाइमैक्स को हटा दिया जाए, तो क्या यह फिल्म इतनी सफल होती? पूरी फिल्म में जिस स्तर की गहराई और भावनात्मक जुड़ाव की जरूरत थी, वह सिर्फ अंतिम कुछ मिनटों में ही नजर आता है। अगर फिल्म की शुरुआत से ही इसी तरह का प्रभाव बनाया जाता,तो यह और भी बड़ी हिट साबित हो सकती थी।
‘छावा’ बॉक्स ऑफिस पर अच्छा कर रही है, लेकिन यह इसकी परफेक्ट स्टोरीटेलिंग की वजह से नहीं, बल्कि विकी कौशल के अभिनय और दमदार क्लाइमैक्स की वजह से हुआ है। अगर इन 5 गलतियों को सुधारा जाता, तो यह फिल्म इतिहास की सबसे बेहतरीन ऐतिहासिक फिल्मों में गिनी जाती। इसके बावजूद, अगर आप ऐतिहासिक फिल्मों में रुचि रखते हैं और एक भावनात्मक अनुभव लेना चाहते हैं, तो ‘छावा’ देखने जरूर जा सकते हैं। लेकिन अगर आप किसी पेचीदा कहानी, गहरी रणनीति और संतुलित प्रस्तुति की उम्मीद कर रहे हैं, तो यह फिल्म कुछ हद तक निराश कर सकती है।