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इंसानी शरीर को नोच-नोच कर खाते थे ये नरभक्षी राजा…सीने में दिल तो क्या पत्थर से भी कठोर था इनका जिगरा, जानें नाम?

PUBLISHED BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : October 22, 2024, 1:05 pm IST
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इंसानी शरीर को नोच-नोच कर खाते थे ये नरभक्षी राजा…सीने में दिल तो क्या पत्थर से भी कठोर था इनका जिगरा, जानें नाम?

France Charles II: फ्रांस के फ्रांकोइस प्रथम और डेनमार्क के क्रिश्चियन चतुर्थ के बारे में भी यही कहा जाता है कि उन्होंने जटिल बीमारियों के इलाज के लिए ऐसी दवाओं का उपयोग किया था।

India News (इंडिया न्यूज), France Charles II: इतिहास में मानव अंगों के उपयोग के संदर्भ में कई ऐसे किस्से मिलते हैं जो राजाओं और चिकित्सकों द्वारा औषधीय प्रयोग के रूप में मानव अंगों के उपयोग की ओर इशारा करते हैं। हालांकि, यह कहना कि ये राजा वास्तव में “नरभक्षी” थे, एक भ्रामक धारणा हो सकती है। इन घटनाओं को उनके ऐतिहासिक और चिकित्सीय संदर्भ में समझने की आवश्यकता है।

यूरोप में औषधीय प्रयोग

मध्यकालीन और प्रारंभिक आधुनिक यूरोप में, यह धारणा प्रचलित थी कि मृत्यु के बाद भी शरीर में जीवन शक्ति का कुछ तत्व शेष रहता है, विशेष रूप से अचानक हुई मौतों के मामलों में। इस कारण से, मानव अंगों को औषधियों में मिलाकर कुछ गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए उपयोग किया जाता था। शहर के जल्लाद मृतकों के शरीर के अंगों को औषधालयों और चिकित्सकों को बेचते थे, जो इन्हें औषधि के रूप में तैयार करते थे। इस प्रकार का उपयोग विशेष रूप से राजाओं और उच्चवर्गीय व्यक्तियों के लिए किया जाता था।

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राजाओं द्वारा मानव अंगों का प्रयोग

ऐतिहासिक रिकॉर्ड के अनुसार, कुछ यूरोपीय राजाओं ने वास्तव में चिकित्सीय उद्देश्यों के लिए मानव अंगों से बनी औषधियों का सेवन किया था। उदाहरण के लिए:

इंग्लैंड के चार्ल्स द्वितीय ने ममिया (शवों से प्राप्त औषधि) से बनी दवाओं का सेवन किया था।

फ्रांस के फ्रांकोइस प्रथम और डेनमार्क के क्रिश्चियन चतुर्थ के बारे में भी यही कहा जाता है कि उन्होंने जटिल बीमारियों के इलाज के लिए ऐसी दवाओं का उपयोग किया था।

इंग्लैंड के जेम्स I को गठिया का इलाज करने के लिए मानव खोपड़ी में बनी दवा दी जानी थी, लेकिन उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया था और इसके बजाय बैल की खोपड़ी में बनाई गई औषधि का उपयोग किया।

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नैतिकता और वैज्ञानिक मान्यताएं

इस प्रकार के प्रयोग उस समय की चिकित्सा पद्धति और आस्था पर आधारित थे, जो आज के विज्ञान के दृष्टिकोण से अव्यवहारिक और अनैतिक माने जा सकते हैं। उस समय के चिकित्सकों का मानना था कि मृत शरीर के अंगों में औषधीय गुण होते हैं, विशेषकर युवा और अचानक मरे हुए व्यक्तियों के अंगों में। यह एक प्रकार का “नरभक्षण” तो नहीं था, लेकिन मानव अंगों का औषधीय उपयोग जरूर था।

निष्कर्ष

ऐतिहासिक रूप से, कुछ यूरोपीय राजाओं द्वारा मानव अंगों के औषधीय उपयोग की घटनाएं दर्ज हैं। हालांकि, इन्हें “नरभक्षी” कहना उचित नहीं होगा। यह उस समय की चिकित्सा पद्धतियों और आस्थाओं का हिस्सा था, जो आज के मानकों से भले ही विचित्र और अनैतिक लगे, लेकिन उस युग के संदर्भ में इसे सामान्य माना जाता था।

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डिस्क्लेमर: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है।पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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