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जलते फावड़े से निकाल ली थी आंखें, कर दिया था सिर धड़ से अलग लेकिन नहीं कबूला इस्लाम…फिर भी संभाजी की हत्या से पहले औरंगजेब को किसका था मलाल

Story Of Sambhaji Maharaj's Enmity With Aurangzeb: संभाजी की हत्या से पहले औरंगजेब को किसका था मलाल

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Story Of Sambhaji Maharaj’s Enmity With Aurangzeb: छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र और हिंदवी स्वराज्य के दूसरे छत्रपति, संभाजी महाराज का जीवन वीरता, बलिदान, और अडिग धैर्य का अनुपम उदाहरण है। उनके जीवन और शहादत की कहानी इतिहास के स्वर्णिम पन्नों में दर्ज है।

त्रासदी का दिन: जब संभाजी महाराज ने अपने धर्म और स्वराज्य की रक्षा के लिए प्राण दिए

1689 में औरंगजेब ने संभाजी महाराज को इस्लाम धर्म स्वीकार करने का आदेश दिया। उनके इनकार पर उन्हें यातनाएं दी गईं। ‘शिवाजी: द ग्रैंड रिबेल’ नामक किताब के अनुसार, उन्हें और उनके कवि मित्र कलश को जोकरों की पोशाक पहनाकर पूरे शहर में अपमानित किया गया। जनता द्वारा पत्थरों की बरसात और भालों के वार झेलने के बाद भी उन्होंने इस्लाम स्वीकारने से इनकार कर दिया।

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Story Of Sambhaji Maharaj’s Enmity With Aurangzeb: संभाजी की हत्या से पहले औरंगजेब को किसका था मलाल

इस्लाम धर्म स्वीकार करने के आखिरी प्रस्ताव पर भी इंकार करने के बाद, उनकी जुबान खींच ली गई और शरीर के अंगों को काटकर उनकी दर्दनाक हत्या कर दी गई। 11 मार्च 1689 को संभाजी महाराज का सिर कलम कर दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद, मराठाओं ने एकजुट होकर मुगलों को हराया और औरंगजेब की सत्ता समाप्त कर दी।

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औरंगजेब का अफसोस

महाराष्ट्र में प्रचलित एक कहावत के अनुसार, संभाजी महाराज की हत्या से पहले औरंगजेब ने कहा था, “मेरे चार बेटों में से एक भी तुम्हारे जैसा होता, तो पूरा हिंदुस्तान कब का मुगल सल्तनत में समा चुका होता।” यह बयान औरंगजेब की निराशा को दर्शाता है।

कैसे धोखे से पकड़े गए संभाजी महाराज

‘मेमोरेस डी फ्रैंकोइस मार्टिन फोंड’ के अनुसार, फरवरी 1689 में संगमेश्वर में एक बैठक के दौरान, मुकर्रब खान के नेतृत्व में मुगल सेना ने उन पर हमला किया। मराठा सैनिकों की संख्या कम होने और धोखे के कारण संभाजी महाराज और कवि कलश को बंदी बना लिया गया।

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संभाजी महाराज का प्रारंभिक जीवन

14 मई 1657 को पुरंदर किले में जन्मे संभाजी महाराज, शिवाजी महाराज और महारानी सईबाई के सबसे बड़े पुत्र थे। उनकी परवरिश राजमाता जीजाबाई और सौतेली मां पुतलाबाई ने की। छोटी उम्र में ही उन्होंने युद्ध और राजनीति की बारीकियां सीख ली थीं।

9 वर्ष की उम्र में, संभाजी अपने पिता के साथ आगरा गए, जहां मुगल दरबार की राजनीति को करीब से देखा। औरंगजेब के इशारे पर उन्हें कैद करने की कोशिश हुई, लेकिन शिवाजी और संभाजी फलों की टोकरियों में छिपकर भाग निकले।

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मराठा साम्राज्य के लिए उनकी उपलब्धियां

गुरिल्ला युद्ध शैली: ‘द ग्रैंड रिबेल’ के लेखक डेनिस किनकैड के अनुसार, मराठा सेना गुरिल्ला युद्ध शैली में माहिर थी। अचानक हमले और पहाड़ों में छिपने की यह तकनीक मुगल सेना को असहाय बना देती थी।

नौसेना की शक्ति: शिवाजी महाराज के बाद संभाजी ने भी मराठा नौसेना को मजबूत किया। उन्होंने जहाजी बेड़े को उन्नत नेविगेशन सिस्टम और तोपखानों से लैस किया। कोंकण तट पर जंजीरा के सिद्दियों के खिलाफ उनकी नौसेना ने उल्लेखनीय जीत हासिल की।

मुगलों और अन्य दुश्मनों को हराया: संभाजी ने गोवा के पुर्तगालियों, जंजीरा के सिद्दियों, और मैसूर के चिक्कदेव राय के खिलाफ सफल अभियान चलाए। उन्होंने औरंगजेब की सेना के खिलाफ रामशेज किले पर 6.5 साल तक संघर्ष किया, जिससे मुगल सेना परेशान हो गई।

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संभाजी महाराज की शहादत का प्रभाव

संभाजी महाराज की मृत्यु मराठा साम्राज्य के लिए एक बड़ी क्षति थी, लेकिन उनकी शहादत ने मराठा सेना को और अधिक प्रेरित किया। मराठा सरदारों ने उनकी मृत्यु का बदला लिया और मुगलों को हराकर स्वराज्य की रक्षा की। औरंगजेब की दक्खन विजय की महत्वाकांक्षा अधूरी रही और वह वहीं दफन हुआ।

संभाजी महाराज का जीवन भारतीय इतिहास का ऐसा अध्याय है, जो साहस, बलिदान और मातृभूमि के प्रति असीम प्रेम का संदेश देता है। उनकी शहादत केवल मराठा इतिहास का ही नहीं, बल्कि पूरे भारत का गौरव है। संभाजी महाराज की वीरता और अडिग धैर्य से प्रेरणा लेकर हम अपने कर्तव्यों और मूल्यों के प्रति निष्ठावान बने रह सकते हैं।

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