Fire Smoke Impact: आग लगते ही सबसे पहले दिमाग में आता है कि जलकर मर जाएंगे. लेकिन आग से ज्यादा इससे निकलने वाला धुआं खतरनाक होता है. आग का धुआं साइलेंट किलर के तौर पर काम करता है. ना तलवार, ना गोला….एक सांस और आपका गेम ओवर! ज्यादा धुएं में सांस लेने से यह आपके शरीर के फेफड़ों में जाता है, जिसके बाद आप बेहोस होने लगते है और ऑक्सीजन की कमी होने लगती है. साथ ही धुएं में मौजूद कार्बन मोनोऑक्साइड और साइनाइड आपके शरीर के लिए और भी ज्यादा खतरनाक हो सकता है.
आग का धुआं इंसान के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक माना जाता है. यह तीन तरीकों से आपकी जान ले सकता है.
ऑक्सीजन की कमी (दम घुटना): आग के धुएं से दम घुटने लगता है. क्योंकि आग का धुआं तेजी से ऑक्सीजन को जलाता है. जिससे कमरे में ऑक्सीजन 21% से घटकर 10% से नीचे तक चली जाती है. जिसके कारण सांस लेते समय बेहोशी छाने लगती है और 10 मिनट में मौत हो जाती है. दिमाग को ऑक्सीजन न मिलने से कोमा और मौत भी हो सकती है.
टॉक्सिक गैस पॉइजनिंग: आग से निकलने वाले धुएं में कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), हाइड्रोजन साइनाइड (HCN), नाइट्रोजन ऑक्साइड और अन्य जहरीली गैस शामिल होती हैं. खून में मौजूद ऑक्सीजन की जगह कार्बन मोनोऑक्साइड ले लेती है. जिसके कारण शरीर में ऑक्सीजन की भारी कमी हो जाती है. जिससे व्यक्ति चक्कर, उल्टी, बेहोशी और फिर मौत आ जाती है.
हाइड्रोजन साइनाइड: यह गैस प्लास्टिक, फोम, ऊन जलने से बनती है. यह सांस की कोशिकाओं को पूरी तरह से ब्लॉक कर देती है. जिससे CO से भी ज्यादा तेजी से मौत आती है. व्यक्ति केवल 1 से 2 मिनट के भीतर मर जाता है.
फेफड़ों का जलना: आग के धुएं में तापमान करीब 200-600°C तक हो सकता है. जिसके कारण सांस लेते ही गला और फेफड़े बुरी तरह जल जाते हैं. वहीं पल्मोनरी एडिमा में सूजन तक आ जाती है. जिससे व्यक्ति सांस नहीं ले पाता है. धुएं में मौजूद महीन कण (PM2.5) और रसायन फेफड़ों की दीवारों खराब कर देते हैं.
दिल पर असर: धुएं के महीन कण और जहरीली गैसें दिल की धड़कन को कम कर सकती है. जिससे कुछ लोगों को कार्डियक अरेस्ट (दिल का रुकना) का खतरा झेलना पड़ता है.
घना धुआं, खासकर बंद जगहों में, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO) पॉइजनिंग, केमिकल बर्न और ऑक्सीजन की कमी का कारण बनता है, जिससे कुछ ही मिनटों में मौत या गंभीर चोट लग सकती है.
धुएं का गंभीर असर तुरंत दिख सकता है, लेकिन इसमें 24-36 घंटे तक लग सकते हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि सांस की नली और फेफड़ों में सूजन (एडिमा) समय के साथ और खराब हो सकती है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो शुरू में ठीक नहीं हो सकती है. इसलिए, संपर्क में आने के तुरंत बाद डॉक्टर की सलाह लेना ज़रूरी है, भले ही आप ठीक महसूस कर रहे हों.
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