Toraja Tribe Rituals: दुनिया में करीब 195 देश हैं और हर देश में हजारों अलग-अलग समुदाय रहते हैं, जिनकी अपनी परंपराएं, रीति-रिवाज और मान्यताएं होती हैं. कहीं यह परंपराएं सामान्य लगती हैं, तो कहीं बेहद अनोखी. इंडोनेशिया की टोराजा (Toraja) जनजाति की एक ऐसी ही परंपरा लोगों को हैरान कर देती है.इस समुदाय का मानना था कि पेड़ उस बच्चे की नई मां बनता है और उसे प्रकृति की गोद में लौटा देता है.
कटहल के पेड़ (तार्रा ट्री) को इसके लिए चुना जाता था.समय के साथ पेड़ कब्र को अपने अंदर समेट लेता था. आधुनिक चिकित्सा के कारण शिशु मृत्यु दर कम होने के बाद यह परंपरा करीब 50 साल पहले बंद कर दी गई.
मृतकों के साथ जीने की परंपरा
इंडोनेशिया के साउथ सुलावेसी प्रांत के टाना टोराजा इलाके में रहने वाली टोराजा जनजाति मृतकों को सिर्फ शोक का विषय नहीं मानती, बल्कि उन्हें सम्मान के साथ याद करती है. यहां लोग अपने पूर्वजों और यहां तक कि मृत शिशुओं को भी खास तरीके से विदा करते हैं.
पेड़ों में दफनाए जाते थे बच्चे
टोराजा समुदाय की सबसे अनोखी परंपरा यह थी कि जिन शिशुओं की मौत दांत निकलने से पहले हो जाती थी, उन्हें जमीन में नहीं बल्कि जिंदा पेड़ों के भीतर दफनाया जाता था.
क्या थी इसके पीछे की मान्यता
स्थानीय लोगों का मानना था कि पेड़ उस मृत शिशु की नई मां बन जाता है. एक स्थानीय गाइड के अनुसार, ‘हम शिशुओं को पेड़ में इसलिए दफनाते थे ताकि हवा उनकी आत्मा को अपने साथ ले जा सके.’ यह भी विश्वास था कि पेड़ से निकलने वाला सफेद दूध जैसा रस (लेटेक्स) उस शिशु के लिए मां के दूध की तरह काम करता है और उसका पालन-पोषण करता है.
दफनाने की पूरी प्रक्रिया
शिशु की मौत के बाद कुछ समय का शोक मनाया जाता था. इसके बाद शिशु को फर्न की पत्तियों में लपेटकर पेड़ के तने में बनाई गई जगह में रखा जाता था. फिर उस जगह को ताड़ के पेड़ की छाल से ढक दिया जाता था.खास बात यह थी कि पेड़ में बनाई गई कब्र, शिशु के असली माता-पिता के घर की विपरीत दिशा में होती थी। समय के साथ पेड़ बढ़ता जाता था और कब्र को पूरी तरह अपने अंदर समेट लेता था.
अब नहीं निभाई जाती यह परंपरा
आज अगर आप इंडोनेशिया के कंबीरा गांव जाएं, तो आपको एक ही पेड़ में कई कब्रें दिख सकती हैं. ये सभी कब्रें 50 साल से भी ज्यादा पुरानी हैं. माना जाता है कि आधुनिक चिकित्सा के कारण शिशु मृत्यु दर कम होने के बाद, टोराजा समुदाय ने करीब आधी सदी पहले इस परंपरा को छोड़ दिया.यह परंपरा भले ही आज के समय में अजीब लगे, लेकिन टोराजा जनजाति के लिए यह प्रकृति और जीवन के प्रति गहरे सम्मान की मिसाल रही है.