Cashew Nut
काजू खरीदते समय आपने पैकेजिंग पर W240, W320 या W450 जैसे लेबल देखे होंगे. जो लोग इन कोडों से परिचित नहीं हैं, उनके लिए ये कोड थोड़े जटिल लग सकते हैं, लेकिन वास्तव में ये काजू ग्रेडिंग सिस्टम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. यह सिस्टम उपभोक्ताओं, आपूर्तिकर्ताओं और उत्पादकों को काजू की गुणवत्ता, आकार और कुल मूल्य के बारे में जानकारी देने में मदद करता है. इन ग्रेडों में, W240 सबसे लोकप्रिय ग्रेडों में से एक है.
दुकानों पर काजू एक जैसे दिखते हैं, लेकिन उनकी कीमत ब्रांड या पैकेजिंग से नहीं, बल्कि ‘W’ नंबर (W180 से W450) से तय होती है. असली अच्छे काजू की पहचान करने से आप नकली या घटिया वाले से बच सकते हैं.
‘W’ का मतलब ‘व्हाइट होल’ (सफेद पूरा दाना) है, जो हल्के रंग और पूरे आकार का इशारा करता है. नंबर बताता है कि एक पाउंड (लगभग 454 ग्राम) में कितने दाने हैं. कम नंबर का मतलब है दाने का आकार बड़ा है. उदाहरणस्वरूप, W180, W450, W240.
काजू की ग्रेडिंग उसके आकार, रंग, आकृति और टूटने पर आधारित है. मुख्य ग्रेड में W180, W240, W320 और W450 शामिल हैं. इनमें से W180 को ‘काजू का राजा’ कहते हैं, यह सबसे बड़ा, प्रीमियम, महंगा काजू होता है. वहीं W240 भी क्वालिटी में अच्छा होता है (W180 से कम), बाजार में अच्छी क्वालिटी के नाम पर ज्यादातर यही लोकप्रिय है. इसके अलावा W320 काजू सामान्य गुणवत्ता के, थोड़े छोटे आकार के और किफायती होते हैं. W450 काजू सबसे छोटे और सस्ते होते हैं, हालांकि, इनकी गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं होती.
CEPC (कैश्यू एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल) निर्यात के लिए अंतरराष्ट्रीय मानक निर्धारित करते हैं. भारत सरकार द्वारा वर्ष 1955 में काजू उद्योग के सक्रिय सहयोग से काजू निर्यात संवर्धन परिषद (सीईपीसी) की स्थापना की गई थी, जिसका उद्देश्य भारत से काजू गिरी और काजू के छिलके के तरल पदार्थ के निर्यात को बढ़ावा देना था।
अच्छा/असली काजू
खराब/नकली काजू
परीक्षण: काजू को पानी में डालें – अच्छा काजू पानी में तैरता है, जबकि खराब नीचे बैठ जाता है.
भारत दुनिया के सबसे बड़े काजू उत्पादक और प्रोसेसर देशों में से एक है, जो सालाना 0.7-0.8 मिलियन टन से अधिक कच्चे काजू का उत्पादन करता है. महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और ओडिशा प्रमुख उत्पादक राज्य हैं, जो देश के कुल उत्पादन में लगभग 57.5% योगदान देते हैं. कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, गोवा और छत्तीसगढ़ भी महत्वपूर्ण उत्पादक हैं. यह खेती मुख्य रूप से तटीय क्षेत्रों में होती है, जो 7 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में फैली हुई है.
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