Kajol on Early Age Marriage: आज के जेनरेशन में काफी लोग ऐसे होते है जो शादी के बाद आने वाले इमोशनल या प्रैक्टिकल बदलावों को पूरी तरह समझ नहीं पाते. ऐसा ही वाक्या बॉलीवुड एक्ट्रेस काजोल के साथ हुआ, काजोल ने मात्र 24 साल की उम्र में एक्टर अजय देवगन के साथ लव मैरिज की, लेकिन एक इंटरव्यू में उन्होंने खुलासा किया कि वह उस चीज के लिए पूरी तरह तैयार नहीं थी. आइए विस्तार से जानें की काजोल ने इस पर क्या कहा और उन्हेंने ससुराल में एडजस्ट करने में कितना वक्त लगा और इस मामले में उनकी सास ने क्या रोल निभाया.
क्या बताया काजोल ने?
एक्ट्रेस काजोल ने नयनदीप रक्षित के साथ एक इंटरव्यू में कहा था कि मुझे सच में नहीं पता था कि मैं क्या कर रही थी। जब हमारी शादी हुई तब मैं सिर्फ़ 24 साल की थी, इसलिए मैं बहुत छोटी थी और मुझे कोई अंदाज़ा नहीं था कि मुझे क्या करना है, मुझे कैसा बनना है, क्या करना है, क्या बनना है, मुझे यह सब पता ही नहीं था कि कैसे बात करनी है. उन्होंने फैमिली डायनामिक्स को लेकर पारंपरिक उम्मीदों के साथ अपनी शुरुआती परेशानी भी शेयर की. उन्होंने कहा कि आंटी को मम्मी बुलाना पड़ेगा? क्यों? पर मेरी एक मां पहले से ही है.
काजोल ने अपनी सास के बारे में क्या बताया?
काजोल ने अपनी सास के सपोर्टिव रवैये की तारीफ करते हुए बताया कि उन्हें कभी भी कोई काम किसी खास तरीके से करने के लिए मजबूर नहीं किया गया. उन्होंने कभी ज़ोर नहीं दिया कि तुम्हें मुझे मम्मी बुलाना होगा क्योंकि अब तुम बहू हो. उन्होंने मुझसे ऐसा कभी नहीं कहा. उन्होंने कहा कि जब ऐसा होगा, तो अपने आप हो जाएगा, और ऐसा हुआ. बाद में, जब वह अपनी बेटी न्यासा के जन्म के बाद काम पर वापस लौटना चाहती थीं, तो उनकी सास ही उनका सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम बनीं. काजोल ने याद करते हुए बताया कि उनसे कहा गया था कि तो अगर तुम्हें काम करना है तो तुम्हें जरूर काम करना चाहिए.
कम उम्र में शादी पर एक्सपर्ट ने क्या कहा?
जो लोग कम उम्र में शादी करते हैं, उनके लिए इमोशनली तौर पर तैयार न होना कितना आम है, और इस बदलाव को आसान बनाने में किस तरह का सपोर्ट मदद कर सकता है? सोनल खंगारोट, जो एक लाइसेंस्ड रिहैबिलिटेशन काउंसलर और साइकोथेरेपिस्ट हैं, उन्होंने बताया कि जब आप कम उम्र में शादी करते हैं तो खोया हुआ महसूस करना बहुत आम है – मैं थेरेपी में अक्सर ऐसा देखती हूं. 24 साल की उम्र में, आप अभी भी खुद को समझ रहे होते हैं, और अचानक आपसे उम्मीद की जाती है कि आप किसी के पार्टनर, सहारा, शायद उनके इमोशनल घर बनें. इस बदलाव को आसान बनाने के लिए ऐसे सपोर्ट की जरूरत होती है जो तैयार होने से पहले मैच्योरिटी के लिए दबाव न डाले – रिश्ते में खुद को समझने, बात करने और फिर से खोजने की जगह मिले, न कि सिर्फ़ उसका एक हिस्सा बनकर.
शादी में इमोशनल सीमाओं और सांस्कृतिक नियमों को कैसे संभालना चाहिए?
ये इमोशनल सीमाएं ही हैं जहां कई कपल्स चुपचाप ठोकर खाते हैं. खंगारोट कहती हैं कि भारतीय परिवारों में अक्सर एक अनकही बात होती है – अपनी सास को ‘मम्मी’ कहना, तुरंत ढल जाना, या किसी खास तरीके से सम्मान दिखाना. लेकिन सच्चा रिश्ता जबरदस्ती नहीं बनाया जा सकता. अगर आपको असहज महसूस होता है, तो इसका मतलब यह नहीं है कि आप अनादर कर रहे हैं – इसका मतलब है कि आप इंसान हैं, एडजस्ट कर रहे हैं.
वह सुझाव देती हैं कि कपल्स को इन उम्मीदों के बारे में खुलकर बात करनी चाहिए और ऐसी सीमाएं तय करने में एक-दूसरे का साथ देना चाहिए जो सम्मानजनक और सच्ची लगें. परिवारों को भी तुरंत ढलने के बजाय व्यक्तिगत पहचान के लिए जगह देनी चाहिए.
नई माताओं को बिना किसी अपराधबोध के अपना करियर फिर से शुरू करने में परिवार का सपोर्ट कितना जरूरी है?
काजोल की सास ने उन्हें बच्चे के जन्म के बाद काम पर लौटने के लिए प्रोत्साहित किया. खंगारोट बताती हैं कि बड़े परिवार का सपोर्ट एक नई मां के लिए बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है जो देखभाल और करियर के बीच तालमेल बिठाने की कोशिश कर रही है. जब सास कहती है, काम पर वापस जाओ, मैं सब संभाल लूंगी,’ तो यह उस अपराधबोध को कम करता है जो कई महिलाएं महसूस करती हैं.
वह कहती हैं कि हमारी संस्कृति में, जहां मातृत्व को अक्सर आत्म-बलिदान के रूप में आदर्श बनाया जाता है, ऐसे परिवार का होना जो आपकी महत्वाकांक्षा को सही समझे, बहुत ज़्यादा हिम्मत देता है. यह सिर्फ़ प्रैक्टिकल मदद के बारे में नहीं है – यह इमोशनल इजाज़त के बारे में है. इस तरह का सपोर्ट एक नई माँ को बताता है कि उसे पोषण देने वाली और महत्वाकांक्षी होने के बीच चुनाव करने की ज़रूरत नहीं है.