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Indin news (इंडिया न्यूज़), बातों बातों में, Rana Yashwant: सोच रहा था कि देश के किसी बडे सवाल पर लिखूं, सहयोगी का फोन भी आया कि आपका संपादकीय अब तक नहीं आया, मैंने कहा थोड़ी देर में दे रहा हूं एक ख्याल यह आया कि इंडिया न्यूज चैनल को कई कैटेगरी में ईएनबीए मीडिया अवॉर्डस मिले हैं, उनपर लिखूं पूरे आईटीवी नेटवर्क जिसका हिस्सा इंडिया न्यूज है, उसकी झोली में 23 अवॉर्ड्स मिले। अभी सोच ही रहा था लिखने को तभी एक फोन आया, किसी बहुत पुराने मित्र का था, सो उठा लिया उन्होंने कहा कि आपको प्राइम टाइम में डिस्टर्ब कर रहा हूं, लेकिन मेरे साथ एक परिचित हैं जो मुसीबत में हैं एक मिनट के लिए उनको सुन लीजिए और मदद कर दीजिए।
महिला की आवाज आई- “सर नमस्कार, मेरे भाई को पैरालिटिक अटैक आया था दस रोज पहले आया औऱ मैक्स वैशाली में उनको एडमिट करवाया गया, पहले उन लोगों ने ब्रेन का ऑपरेशन किया, फिर कहा कि पैर में गैंगरीन है, काटना होगा औऱ काट दिया, इसके बाद के पैर के कई और ऑपरेशन हो गए, हर बार कहते हैं कि ऑपरेशन सक्सेसफुल रहा। हम पूछते कि मरीज? कहते अब ठीक है। आज सुबह भी उन लोगों ने यही कहा, मगर अब शाम में कह रहे हैं कि ब्रेन का फिर ऑपरेशन करना होगा। हमलोग अब तक 16 लाख दे चुके हैं, कह रहे हैं कि जो पैसा जमा किया उसका इलाज तो हो चुका। अब आप और पैसे जमा कीजिए ताकि आगे का ऑपरेशन किया जाए। हम कह रहे हैं कि अभी तो हमलोग खाली हो चुके हैं, आप ऑपरेशन कीजिए हम दे देंगे. लेकिन सुनने को कोई तैयार नहीं है, किससे बात करें, किससे कहें यह भी नहीं मालूम क्योंकि अभी तो कोई दिख भी नहीं रहा है।”
इतना सुनने के बाद मैं खुद सन्न रह गया, इस देश में अस्पतालों की लूट औऱ स्थानीय स्तर पर सांठगांठ के जरिए बेरहम धंधा बेरोकटोक चल रहा है। रोज लाखों लोग लूटे जाते हैं और अभी जब मैं संपादकीय लिख रहा हूं, कई परिवार अस्पतालों के चंगुल में छटपटा रहे होंगे, आप सोचिए कि एक साधाऱण परिवार दस दिन में 16 लाख रुपये कहां से लाया होगा? शहर में जहां साथ खड़ा रहने के लिए लोग तो मिल सकते हैं लेकिन बड़ी आर्थिक मदद मुश्किल होती है, वहां परिवार अचानक मोटी रकम लाकर कहां से दे सकता है? और सवाल ये है कि जो अस्पताल ने पैसे खर्च किए, वह किस मद में और कितना इसका ब्योरा कभी आपने देखा है, अव्वल तो देते नहीं है और जब देंगे तो आप पाएंगे की अनाप-शनाप तरीके से चार्ज कर रखा है।
सरकार ने जो पेशेंट चार्टर बनाया है वह कहता है कि अस्पताल पैसा नहीं होने के कारण इलाज नहीं रोक सकता, लेकिन ऐसा नहीं होता, चार्टर कहता है कि पेशेंट के सारे पेपर्स अस्पताल घऱवालों को देगा ताकि सेकेंड ओपिनियन लिया जा सके, मगर यह भी नहीं होता। चार्टर के 17 प्वायंट्स हर अस्पताल में कई जगहों पर लगे होने चाहिए ताकि लोगों को अपने अधिकार का पता हो, मगर वह कहीं किसी वॉशरुम के पास या रिसेप्शन पर बहुत छोटे अक्षरों में एक तख्ती पर लटका रहता है।
अगर सही तरीके से देखें तो निजी अस्पताल इलाज के नाम पर जो पैसा उगाहते हैं असलियत में उसका आधा भी खर्च नहीं होता अगर सबकुछ साफ-सामने रहे, सरकारों को ये तय करना चाहिए कि किस इलाज के लिए अस्पताल कितना पैसा लेगा औऱ अगर कोई कंम्लिकेशन होता है तो उसकी सफाई भी वह एक जिम्मेदार संस्था को दे। जो परिवार अपने घरवाले को बचाने के लिए जूझ रहा है, अपना सबकुछ लगा चुका है, सही में उसके पास कुछ बचा नहीं है औऱ उसको ऐसा लग रहा है कि वह अपने मरीज से कभी भी हाथ धो बैठेगा- ऐसे में क्या अस्पताल को जिम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिए? सारे धतकरम और लूटखसोट के बाद भी अस्पताल हाथ झाड़ कर आगे निकल जाते हैं, यह सरासर गलत है। इसके खिलाफ लोगों में जागरुकता से कहीं जरुरी है कि स्थानीय स्तर पर ऐसी संस्थाएं जो लोगों के हक में अस्पतालों के खिलाफ लड़ें।
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