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Minimum Support Price for Farmers एमएसपी की मांग पर क्यों अड़े किसान?

Sameer Saini • LAST UPDATED : December 19, 2021, 5:14 pm IST
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Minimum Support Price for Farmers एमएसपी की मांग पर क्यों अड़े किसान?

Minimum Support Price for Farmers

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :

Minimum Support Price for Farmers : केंद्र सरकार ने पिछले साल लागू हुए तीनों नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया था। लेकिन किसान अभी भी एमएसपी की मांग पर अड़े हैं। किसानों की मांग है कि सरकार एमएसपी को लागू करने का लिखित आश्वासन दे। वहीं केंद्र सरकार ने एमएसपी पर चर्चा के लिए समिति गठित करने का फैसला लिया है। आइए जानते हैं एमएसपी की शुरुआत कैसे हुई, एमएसपी क्या होती है और इसे कौन तय करता है।

बता दें कि केंद्र सरकार सितंबर 2020 में तीन नए कृषि विधेयक लाई थी, जो संसद की मंजूरी और राष्ट्रपति की मुहर के बाद कानून बने, लेकिन किसानों को ये कानून रास नहीं आए और उन्होंने इनका विरोध करना शुरू कर दिया था।

देश में 1966-67 में एमएसपी की हुई थी शुरुआत? (Minimum Support Price for Farmers)

दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भारत में खाद्य संकट गहराने लगा था। तब ब्रिटिश सरकार ने इससे निपटने के लिए एक दिसंबर 1942 को फूड डिपार्टमेंट की स्थापना की थी। आजादी के बाद भारत सरकार ने इस डिपार्टमेंट को फूड मिनिस्ट्री यानी खाद्य मंत्रालय में बदल दिया। 1960 में खाद्य मंत्रालय को दो अलग-अलग डिपार्टमेंट में बांट दिया गया। डिपार्टमेंट फॉर फूड और डिपार्टमेंट फॉर एग्रीकल्चर।

अभी तक भारत में खाद्य संकट का कोई हल नहीं निकला था और इसी दशक में भारत ने ग्रीन रिवॉल्यूशन पर काम करना शुरू किया। 1965 में एग्रीकल्चर प्राइसेस कमीशन बना जिसका बाद में नाम बदलकर कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट एंड प्राइसेस (सीएसीपी) कर दिया गया। इसी कमीशन का काम किसानों से उनकी फसल सही कीमत पर खरीदना था। इस कीमत को ही एमएसपी कहा जाता है। 1966-67 में देश में पहली बार गेंहू को एमएसपी पर खरीदने की शुरूआत हुई। धीरे-धीरे एमएसपी को बाकी फसलों पर भी लागू किया गया।

क्या होती है एमएसपी, कौन तय करता है? (Minimum Support Price for Farmers)

एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य। केंद्र सरकार फसलों की एक न्यूनतम कीमत तय करती है, इसे ही एमएसपी कहते हैं। अगर बाजार में फसल की कीमत कम हो जाती है, तो सरकार किसान को एमएसपी के हिसाब से फसल का भुगतान करेगी। इससे किसानों को अपनी फसल की तय कीमत के बारे में पता चल जाता है कि उनकी फसल की कीमत क्या चल रही है। ये एक तरह फसल की कीमत की गारंटी होती है। (Minimum Support Price for Farmers)

आपको बता दें कि फसलों की एमएसपी कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट्स एंड प्राइसेस तय करता है। आयोग समय के साथ खेती की लागत और बाकी पैमानों के आधार पर फसलों की कम से कम कीमत तय करके अपने सुझाव सरकार के पास भेजता है।

कैसे कैलकुलेट की जाती है एमएसपी? (Minimum Support Price for Farmers)

एमएसपी कैलकुलेट करने के लिए 3 अलग-अलग वेरिएबल का प्रयोग किया जाता है। इसमें ए2,ए2+एफएल और सी2 शामिल हैं। सबसे पहले ए2 में उन खर्चों को गिना जाता है, जो किसान जेब से देता है। जैसे कि खाद बीज, बिजली, पानी और मजदूरी पर किया गया खर्च। इसे इनपुट कॉस्ट भी कहा जाता है। मोटे तौर पर बुआई से लेकर कटाई तक का खर्च इसमें आता है।

  • ए2+एफएल में बुआई से लेकर कटाई तक के सारे खर्च के साथ फैमिली लेबर को भी जोड़ा जाता है। फैमिली लेबर यानी किसान के परिवार के सदस्यों ने खेती में जो कामकाज किया उसकी मजदूरी। अगर खेती का काम किसान मजदूरों से करवाता तो उन्हें मजदूरी देनी पड़ती। इसी तरह अगर घर के सदस्य भी खेत में काम कर रहे हैं, तो उन्हें भी मजदूरी देनी चाहिए।
  • सी2 में बुआई से लेकर कटाई तक के खर्च के साथ ही जमीन का किराया और उस पर ब्याज को शामिल किया जाता है। साथ ही इसमें उस पूंजी के ब्याज को भी शामिल किया जाता है, जो किसान ने मशीन की खरीदी पर लगाई है। मोटे तौर पर समझें, तो इसमें खेती के खर्चों के अलावा जमीन और पूंजी के ब्याज को भी तय किया जाता है।

इन फसलों पर मिलती है एमएसपी (Minimum Support Price for Farmers)

सरकार अनाज, दलहल, तिलहन और बाकी फसलों पर मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देती है। जैसे कि धान, गेहूं, बाजरा, मक्का, ज्वार, रागी, जौ। चना, अरहर, मूंग, उड़द, मसूर। मूंग, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी, तिल, नाइजर या काला तिल, कुसुम। वहीं गन्ना, कपास, जूट, नारियल में एमएसपी मिलती है। हलांकि सरकार अभी ए2+एफएल फामूर्ले के आधार पर ही एमएसपी दे रही है।

वहीं 2012-13 की नेशनल सैंपल सर्वे आॅफिस की रिपोर्ट के मुताबिक, 10 फीसदी से भी कम किसान अपनी फसल को एमएसपी पर बेचते हैं। ताजा आंकड़ों के अनुसार एमएसपी पर फसल बेचने वाले किसानों की संख्या अब 6 फीसदी हो गई है। यानी किसानों का एक बड़ा वर्ग अभी भी एमएसपी पर अपनी फसल नहीं बेचता।

क्या देश में एमएसपी पर कोई कानून है?

आपको बता दें कि देश में अभी एमएसपी एक पॉलिसी के तौर पर लागू की जाती है। सरकार एमएसपी देने के लिए कानूनन बाध्य नहीं है। यानी सरकार चाहे तो दे न चाहे तो न दे। इसीलिए किसान एमएसपी पर कानून बनाने की भी मांग कर रहे हैं। साथ ही एमसपी पर सीएसीपी बस सरकार को सुझाव दे सकता है। कानूनी रूप से एमएसपी लागू करने का अधिकार सीएसीपी के पास भी नहीं होता।

इसका मतलब है कि एमएसपी पर फसल खरीदी के लिए न तो सरकार कानूनी रूप से बाध्य है और न ही वो प्राइवेट ट्रेडर्स को ऐसा करने के लिए कह सकती है। हालांकि, सिर्फ गन्ना ही एक ऐसी फसल है जिसे एमएसपी पर खरीदने के लिए कुछ हद तक कानूनी पाबंदी लागू होती है। आवश्यक वस्तु अधिनियम के एक आदेश के मुताबिक, गन्ने पर उचित और लाभकारी मूल्य देना जरूरी है।

एमएसपी पर किसानों की मांग (Minimum Support Price for Farmers)

किसान चाहता है कि उन्हें एमएसपी सी2+एफएल फॉमूर्ले पर दी जाए। किसानों की मांग है कि सरकार एमएसपी से कम दाम पर फसल की खरीदी को अपराध घोषित करे और एमएसपी पर सरकारी खरीद लागू रहे। साथ ही दूसरी फसलों को भी एमएसपी के दायरे में लाया जाए। हालांकि, केंद्र सरकार के कई मंत्री और खुद प्रधानमंत्री भी ये बात कह चुके हैं कि एमएसपी की व्यवस्था जारी रहेगी, लेकिन किसान संगठन चाहते हैं कि ये बात कानून में शामिल की जाए।

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