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India News (इंडिया न्यूज़), Hum Mahilayen Shkati Award 2023,उत्तराखंड: आईटीवी नेटवर्क का हम महिलाएं शो का देहरादून संस्करण का आयोजन देहरादून के (Hum Mahilayen Dehardun Edition) होटल पैसिफिक में चल रहा है। ऐसे में उत्तराखंड की पहचान पहाड़ और पर्यावरण पर खास बातचीत की गई। इस दौरान हिमलायन पर्यावरण अध्यन और संरक्षण संगठन में साइंटिस्ट डॉ हिमानी पुरोहित और वाइल्ड लाइफ इंस्टीटयूट ऑफ इंडिया (wildlife Institute of India) में साइंटिस्ट रूचि बडोला ने इन मुद्दों पर अपनी राय रखी।
#HumMahilayenUttarakhand | '53% women part of the guardians of rivers campaign', says Dr. Ruchi Badola (@RuchiBadola1) exclusively from the stage of Hum Mahilayen.
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डेवलपमेंट के नाम पर पर्यावरण के साथ किए जा रहे समझौते पर रूची बड़ोला ने कहा कि विकास बहुत जरूरी है लेकिन किसी भी विकास कार्य में ये प्रोवीजन है कि हम उसके इंवरामेंट इम्पैकट का ध्यान रखें और बहुत ही बारीकी से ये काम किया जाता है। पर्यावर्ण पर विकास से जो बुरा प्रभाव पड़ता है उसे कम करना बेहद आवश्यक है। पर्यावरण संरक्षण और विकास में बैलेंस बनाना बेहद जरूरी है।
विकास के साथ साथ – पार्यावरण को बचाए रखना आज पूरे देश में एक चुनौती के रूप में देखा जा रहा है। ऐसे में इन दोनों का बैलेंस बना के रखने जैसे सवाल पर हिमानी पूरोहित का कहना है कि आज विकास की जरूरत आज सबको है दूर दराज के गांव में भी विकास एक बड़ा मुद्दा है। आज हम ग्रोथ को GDP (Gross domestic product) में मापते हैं लेकिन पर्यावरण का मूल्यांकन करने के लिए अभी ऐसा कोई पैमान नहीं बना है। आज हमें GEP (Gross Environment Product) पर बात करना चाहिए। ताकि हम अपने पर्यावरण के ग्रोथ की बात कर सके। ये उतना ही जरूरी है जितना की GDP, ये आज की देश की जरूरत है।
#HumMahilayenUttarakhand | Dr. Himani Purohit talks about the impact of pollution exclusively from the stage of Hum Mahilayen Conclave.
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पेड़ काटने की वहज से भूस्खलन होने जैसे सवाल पर डाॅ रूचि बडोला ने कहा कि इस बात में कोई दो राय नहीं है कि जब आप पेड़ों को काटेंगे तो इस प्रकार का प्रभाव आपको देखने को मिलेगा। वन हमारे जीवन में एक अहम योगदान देते हैं वो सिर्फ मिट्टी को ही बांध कर नहीं रखते बल्कि पानी को भी जमा करते हैं। रूचि बडोला ने कहा कि आज हम अपने कल्चर को भूल रहे हैं। जहां हमें पानी की पूजा करना सिखाया जाता है। जिसका मतलब था पानी का संरक्षण करना है । ऐसे में आज हम नेचर को बचाने के अपने ट्रेडिशन को धीरे – धीरे खो रहे हैं। जिसका बूरा प्रभाव भी हमें देखने को मिल रहा है।
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