Ukraine Russia Conflict: रूस-यूक्रेन में छिड़ा युद्ध तो दूसरे देशों में क्या पड़ेगा असर, आइए जानते हैं? - India News
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Ukraine Russia Conflict: रूस-यूक्रेन में छिड़ा युद्ध तो दूसरे देशों में क्या पड़ेगा असर, आइए जानते हैं?

Suman Tiwari • LAST UPDATED : February 22, 2022, 4:34 pm IST
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Ukraine Russia Conflict: रूस-यूक्रेन में छिड़ा युद्ध तो दूसरे देशों में क्या पड़ेगा असर, आइए जानते हैं?

Ukraine Russia Conflict

इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
Ukraine Russia Conflict:
रूस और यूक्रेन को लेकर तनाव लगातार जारी है। दोनों के बीच युद्ध के बढ़ते खतरे को देखते हुए नाटो और पश्चिमी देश हरकत में हैं। ( russia-ukraine war) सोचिए अगर यह युद्ध छिड़ता है तो इसका असर पूरी दुनिया में पड़ेगा। क्योंकि रूस दुनिया में गेहूं का सबसे बड़ा एक्सपोर्टर (माल बाहर भेजना) है और यूक्रेन इस मामले में पांचवें स्थान पर है। चलिए जानते हैं रूस और यूक्रेन में छिड़ती है जंग तो इसका असर दूसरे देशों में क्या पड़ेगा। किन देशों में रोटी का गहरा सकता है संकट। (ukraine russia conflict 2022 )

क्या रूस-यूक्रेन गेहूं के बड़े एक्सपोर्टर हैं? ( Russia-Ukraine big exporters of wheat)

दुनियाभर में मक्के के बाद गेहूं सबसे ज्यादा पैदा किए जाने वाला अनाज है। रूस और यूक्रेन दोनों इस अनाज की पैदावार में सबसे आगे हैं। रूस 18 फीसदी से ज्यादा गेहूं एक्सपोर्ट करता है। यूके्रन इस मामले में पांचवें स्थान पर है। सिर्फ ये दो देश दुनियाभर में 25.4 फीसदी गेहूं का एक्सपोर्ट (माल बाहर भेजना) करते हैं। (wheat exporters)

किन देशों में रूस-यूक्रेन से खरीदा जाता है गेहूं? (Ukraine Russia Conflict)

  • रूस और यूक्रेन से गेहूं खरीदने वाले देश मिस्र, तुर्की, इंडोनेशिया, बांग्लादेश, नाइजीरिया, यमन, अजरबैजान, टूयूनीशिया और थाईलैंड देश हैं। रूस और यूक्रेन से सबसे ज्यादा गेहूं मिस्र भेजा जाता है। रूस ने 2019 में 18.99 हजार करोड़, जबकि यूक्रेन ने 5.10 हजार करोड़ रुपए का गेहूं मिस्र भेजा था। ( russia-ukraine relations)
  • रूस और यूक्रेन से गेहूं आयात करने के मामले में तुर्की दूसरे नंबर पर है। इंडोनेशिया, बांग्लादेश और नाइजीरिया समेत दुनिया के दर्जनों देश गेहूं निर्यात के लिए पूरी तरह से रूस और यूक्रेन पर निर्भर हैं। 2019 में रूस ने कुल 60.64 हजार करोड़ रुपए का गेहूं दुनियाभर में एक्सपोर्ट किया। वहीं, यूक्रेन ने 2019 में साल भर में 23.16 हजार करोड़ रुपए का गेहूं दूसरे देशों में निर्यात किया है।

Ukraine Russia Conflict

गेहूं निर्यात करने वाले टॉप दस देश कौन से? (Ukraine Russia Conflict)

  • रूस, अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, यूके्रन, आॅस्ट्रेलिया, अर्जेटीना, रोमानिया, जर्मनी और कजाकिस्तान देश गेहूं निर्यात करने में सबसे आगे हैं। आपको बता दें कि 1980 के दशक में अमेरिका से एक्सपोर्ट होने वाले कुल गेहूं का दो तिहाई हिस्सा रूस पहुंचता था।
  • 1985 में सोवियत संघ (यूएसएसआर) ने रिकॉर्ड 5.5 हजार करोड़ किलो गेहूं दूसरे देशों से खरीदा था। अब समय बदल गया है और आज रूस दुनिया का टॉप गेहूं एक्सपोर्टर बन गया है। 2001 में रूस एक फीसदी गेहूं निर्यात करता था और 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर दुनिया के कुल गेहूं एक्सपोर्ट का 18 फीसदी हो गया है।

यूक्रेन गेहूं उपज मामले में कैसे पहुंचा इस मुकाम पर? (Ukraine Russia Conflict)

  • दरअसल, 1932 में यूक्रेन समेत यूएसएसआर के बड़े हिस्से में अकाल पड़ा था। इसमें यूक्रेन के लाखों लोग भूखे मर गए थे। फिर इस समस्या से निपटने के लिए जोसेफ स्टालिन ने यूक्रेन में गेहूं के उत्पादन पर जोर दिया। परिणाम यह हुआ कि आज यूक्रेन दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक देश है।
  • दुनिया में कुल गेहूं की बिक्री का सात फीसदी हिस्सा यूक्रेन से बेचा जा रहा है। यही वजह है कि यूक्रेन को यूरोप में ब्रेड बास्केट के नाम से जाना जाता है। यूक्रेन में कुल जमीन का 71 फीसदी हिस्सा उपजाऊ है। यही नहीं देश के ज्यादातर हिस्से में काली मिट्टी पाई जाती है जो गेहूं की उपज के लिए सही होता है। इसका फायदा यूक्रेन के लोग खूब उठा रहे हैं।
  • जंग की स्थिति में गेहूं का निर्यात रोकने पर भारत का क्या रोल होगा? 2019 में भारत ने वैश्विक बाजार में 411 करोड़ रुपए का गेहूं बेचा है। 2019 में भारत ने 2 लाख 17 हजार 354 मीट्रिक टन गेहूं का निर्यात किया था। कई पड़ोसी देश जो रूस या यूक्रेन से गेहूं मंगाते थे, वे अब भारत के गेहूं का इंपोर्ट कर रहे हैं। भारत के गेहूं की मांग पिछले कुछ सालों में काफी बढ़ी है।
  • जंग की स्थिति में भारत नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों को गेहूं देकर अपनी मजबूत दोस्ती का परिचय दे सकता है। इसके साथ ही भारत के पास दो अवसर होंगे। पहला- भारत गेहूं महंगे दामों में निर्यात कर अपना खजाना भरे। दूसरा- भारत गरीब देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश, संयुक्त अरब अमीरात, सोमालिया और कोरिया को उचित कीमत में गेहूं भेजकर वहां महंगाई और भूख से लड़ने में लोगों की मदद करे।

दुनिया के देशों पर क्या असर पड़ेगा?

  • दुनिया के कच्चे तेल के उत्पादन में रूस की हिस्सेदारी 13 फीसदी है। यूक्रेन से लड़ाई की सूरत में रूस से कच्चे तेल का उत्पादन और सप्लाई बाधित होगी, जिससे दुनियाभर में कच्चे तेल के दाम बढ़ेंगे। फरवरी में कच्चे तेल की कीमत 95 डॉलर प्रति बैरल के साथ 2014 के बाद से अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच गई। रूस-यूक्रेन विवाद बढ़ने पर कच्चे तेल की कीमतों के और बढ़ने की आशंका है। इसका असर भारत पर भी पड़ना तय है।
  • नेचुरल गैस सप्लाई में रूस की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। यूरोप की गैस की सप्लाई का एक तिहाई हिस्सा रूस से आता है, जिसमें से ज्यादातर गैस पाइपलाइन यूक्रेन से गुजरती है। यूक्रेन के साथ युद्ध की स्थिति में ये सप्लाई चेन प्रभावित होगी। इससे यूरोप और बाकी देशों में गैस महंगी होगी। यूक्रेन में महंगाई बढ़ी तो कई सामानों की कीमत भारत में भी बढ़ेगी।
  • दुनिया के अनाज की सप्लाई का एक बड़ा हिस्सा काला सागर से होकर गुजरता है, जिसकी सीमा रूस और यूक्रेन दोनों से लगती है। ऐसे में कई देशों में खाने के सामान की कीमत बढ़ सकती हैं। सऊदी अरब के बाद भारत हथियारों को सबसे बड़ा आयात देश है। पिछले 5 सालों में भारत ने सबसे ज्यादा रूस से हथियारों का आयात किया है। भारत अब भी कुल हथियारों का 49 फीसदी रूस से खरीदता है। ऐसे में यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध हुआ तो हथियारों के बाजार पर असर पड़ना तय है। इससे हथियारों की कीमत भी बढ़ेगी।

अगर होती है जंग, तो क्या सप्लाई प्रभावित होगी? (Ukraine Russia Conflict)

  • अगर रूस-यूक्रेन देश के बीच जंग होती है तो दुनियाभर में महंगाई बढ़ने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नजर नहीं आ रहा है। युद्ध होने पर दोनों देशों से होने वाले 25 फीसदी से ज्यादा गेहूं का एक्सपोर्ट प्रभावित होगा। इतने बड़े पैमाने पर एक्सपोर्ट प्रभावित होने की वजह से दुनिया के देश अमेरिका, कनाडा और फ्रांस जैसे देशों पर निर्भर होंगे।
  • नॉर्थ ऐंटलाण्टिक ट्रीटी आॅर्गनाइजेशन (एनएटीओ) के सदस्य होने के नाते अमेरिका और फ्रांस जैसे देश भी इस जंग में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हिस्सा ले रहे होंगे। ऐसे में काला सागर या दूसरे मार्गों से इन देशों में होने वाले एक्सपोर्ट-इंपोर्ट को रूस रोकने की कोशिश करेगा। ऐसे में दो वक्त की रोटी के लिए दुनिया के कई गरीब देश आॅस्ट्रेलिया, कजाकिस्तान और जर्मनी जैसे देशों पर निर्भर हो जाएंगे।

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