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राजस्थान शिक्षक भर्ती में राजस्थानी भाषा की अनदेखी! सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से मांगा जवाब

India News (इंडिया न्यूज),Rajastahan News: राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और मातृभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम मामला पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान शिक्षक भर्ती परीक्षा के पाठ्यक्रम में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग वाली याचिका पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है। याचिकाकर्ताओं का […]

BY: Harsh Srivastava • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज),Rajastahan News: राजस्थान की सांस्कृतिक धरोहर और मातृभाषा को लेकर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम मामला पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को राजस्थान शिक्षक भर्ती परीक्षा के पाठ्यक्रम में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की मांग वाली याचिका पर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी कर जवाब तलब किया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राजस्थान में 4.62 करोड़ से अधिक लोग राजस्थानी भाषा बोलते हैं, लेकिन शिक्षक भर्ती परीक्षा से इस भाषा को बाहर करना राज्य की सांस्कृतिक विरासत और मातृभाषा में शिक्षा के अधिकार को कमजोर करता है।

क्या है मामला?

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राजस्थान उच्च न्यायालय ने 2021 में इस मामले में याचिकाकर्ताओं की याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। याचिकाकर्ताओं में वरिष्ठ पत्रकार और “मानक” पत्रिका के संपादक पद्म मेहता और भाषा विशेषज्ञ एवं वकील कल्याण सिंह शेखावत शामिल हैं।

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सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मनीष सिंघवी की दलीलें सुनीं। पीठ ने राजस्थान सरकार, प्रमुख सचिव और राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा के समन्वयक सहित अन्य से जवाब मांगा है। याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि राजस्थानी भाषा को पाठ्यक्रम से बाहर रखना न केवल राज्य की सांस्कृतिक पहचान के खिलाफ है, बल्कि शिक्षा में मातृभाषा के महत्व को भी नजरअंदाज करता है।

भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने से विद्यार्थियों लाभ

राजस्थान में लंबे समय से राजस्थानी भाषा को मान्यता दिलाने और इसे शिक्षा के मुख्यधारा में शामिल करने की मांग की जा रही है। स्थानीय भाषा को पाठ्यक्रम में शामिल करने से न केवल विद्यार्थियों को लाभ होगा, बल्कि यह राज्य की सांस्कृतिक पहचान को भी मजबूत करेगा। राजस्थानी भाषा को लेकर चल रही इस कानूनी लड़ाई ने राज्य के लोगों के बीच गहरी बहस छेड़ दी है। सांस्कृतिक विद्वानों और आम जनता का कहना है कि राजस्थानी भाषा को हाशिये पर रखना उनकी सांस्कृतिक अस्मिता पर चोट करने जैसा है।

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