इंडिया न्यूज, मुंबई:

What Is This Festival Of Dhinga Gavar : भारत में बहुत अलग अलग प्रकार के त्यौहार होते है जिन्हे बहुत उत्सुकता के साथ मनाया जाता है यदि हमे इन विभिन्न संस्कृतियों को समझना है तो पुरे देश का भ्रमण करना होगा। ऐसा ही एक त्यौहार है “धींगा गवर” जो राजस्थान में मनाया जाता है। जो आपको राजस्थान की संस्कृति के बारे में भी जानकारी देगा। इस त्यौहार में 16 दिन तक पूजा चलती है जिसमे सिर्फ महिलाओ का राज होता है। उन 16 दिनों में हर दी पूजा होती है, और कथा होती है लेकिन इस पूजा के आखिरी दिन की रात को घर के आदमियों का पूजा में आना मना होता है। आइये जानते है इसके पीछे का कारण, और धींगा गवर से जुडी पूरी जानकारी।

क्या है धींगा गवर की मान्यता

आपको बता दे कि धींगा गवर को सती का ही एक रूप माना जाता है। उनके पति सप्तऋषि की युद्ध में मौत होने के बाद वे भगवान शिव के पास पहुंची थी। उन्होंने भगवान शिव से सिर पर कलश उतारने को कहा तो वे मान गए लेकिन सात वचन मांगे। इनमें एक वचन यह भी था कि धींगा गवर की आरती के बाद कोई भी आदमी उनके सामने नहीं आएगा।

आरती में आदमियों की नहीं है एंट्री

यही वजह है और इसी के बाद से यह परंपरा आज तक चली आ रही है। सुबह 4 बजे की आरती के बाद मोहल्ले की महिलाओं की ओर से आवाज लगाई जाती है कि वे विसर्जन के लिए जा रही है। ऐसे में सारे आदमी अपने घरों में चले जाते हैं। जब महिलाएं आरती के बाद विसर्जन के लिए जाती है उसी समय से पूजा होने तक कोई भी आदमी उनके सामने नहीं आता।

पूजा स्थल से कोई भी चीज़ नहीं जाती घर

धींगा गवर कमेटी से जुड़े गुरु गोविंद कल्ला ने बताया कि धींगा गवर की प्रतिमा का विसर्जन भी अनूठे तरीके से होता है। सुबह 4 बजे की आरती के बाद तिजणियां(महिलाएं) प्रतिमा पर मेहंदी फेर देती है। इसके बाद साल भर तक प्रतिमा मेहंदी से ढकी रहती है। खास बात यह है कि पूजा स्थल पर आने वाले कोई भी चीज घर नहीं जाती। यहां तक की माचिस की डिब्बी भी घर नहीं ले जा सकते।

जानिए क्या है “धींगा गवर” की पूरी कहानी (Know what is the full story of “Dhinga Gavar”)

धींगा गवर का यह त्यौहार जोघपुर में मनाया जाता है। कहा जाता है कि धींगा गवर की प्रतिमा में गवर और उनके बेटे के रूप में भगवान गणेश हैं। यह भी कहा जाता है कि यह वह की एक मात्र ऐसी पूजा है जहां मां गवर की पूजा सिंगल पेरेंट के रूप में की जाती है। धींगा गवर से जुडी पूरी कहानी को आगे पढ़िए

एक बार ऋषियों का सम्मेलन हुआ, उनमें एक सप्तऋषि भी थे। सम्मेलन में किसी बात को लेकर युद्ध छिड़ गया, जिसमें सप्तऋषि की मृत्यु हो गई। जब उनकी पत्नी सती को इस बारे में जानकारी मिली तो वे क्रोधित हो गईं और श्राप देने लगी। इस पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव ने नारद मुनि से सती का गुस्सा शांत करने को कहा।

नारद मुनि ने समझाया तो उन्होंने उपाय बताया। मां सती ने कहा कि वे स्नान कर, शुद्ध कपड़े पहन, शृंगार कर, सिर पर कलश रखेगी। एक हाथ में पंखी और बेटे को लेकर आधी रात में भगवान विष्णु के घर जाकर कलश उतारने काे कहेगी। इस पर भगवान विष्णु ने कह दिया कि वह भगवान शिव से यह अनुरोध करें।

ऐसा सुन सती भगवान शिव के पास पहुंची। कलश उतारने को कहा तो वे मान गए। इसी पर सटी ने भगवान शिव से सात वचन मांग लिए, जिन्हे भगवान शिव ने पूरा भी किया। यही कारण है कि इस प्रतिमा में वे अपने बेटे के साथ नजर आती है।

क्यों 7 दिन एक बिंदी की कि जाती है पूजा

इस पूजा की बहुत अलग अलग परम्पराओ में एक खास परम्परा यह भी है कि 16 दिन में से केवल 9 दिन ही धींगा गवर की पूरी प्रतिमा की पूजा की जाती है। इससे पहले 7 दिन तक माथे की एक बिंदी दीवार पर लगा मां गौरी के रूप में पूजा की जाती है। माना जाता है कि उन दिनों माता के सती होने की वजह से महिलाएं शुरुआत के 7 दिनों बाद इसकी पूजा करती है। इसी के बाद दीवार पर गौरी की प्रतिमा उकेरी जाती है।

What Is This Festival Of Dhinga Gavar

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