India News(इंडिया न्यूज़), Imf: देश दुनिया में लगातार रूप से बढ़ रही महंगाई के चलते पूरी दुनिया परेशान है। जिसके बाद अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)का भी मानना है कि, यूरोप में पिछले दो साल से जारी महंगाई का मुख्य कारण कंपनियों की मुनाफाखोरी है। इससे पहले कई अर्थशास्त्रियों ने भी अपने अध्ययन के आधार पर यह बात कही थी। वहीं आईएमएफ के अर्थशास्त्रियों ने बताया है कि अक्तूबर 2022 में यूरो जोन में मुद्रास्फीति की दर 10.6 फीसदी तक पहुंच गई थी। इस वर्ष मई में यह दर गिर कर 6.1 फीसदी पर आ गई। लेकिन यह भी ईसीबी के लक्ष्य से बहुत ऊपर है। इस बीच महंगाई पर काबू पाने के लिए विभिन्न देशों के सेंट्रल बैंकों ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। उसका खराब असर विभिन्न देशों की आर्थिक वृद्धि पर हुआ है। जर्मनी सहित कई देश मंदी के शिकार हो गए हैं।
बता दें कि, आईएमएफ की तरफ से अर्थशास्त्रि नील-जैकब हानसेन, फ्रेडरिक टोस्कानी और जिंग झाऊ ने कहा है कि, पिछले दो साल के दौरान कंपनियों ने लागत मूल्य में वृद्धि की तुलना में उत्पाद के मूल्य में अधिक वृद्धि की और यही यूरोप में महंगाई का प्रमुख कारण है। इस दौरान आम चर्चा रही है कि ऊर्जा की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण कंपनियों को उत्पादों के दाम बढ़ाने पड़े। लेकिन आईएमएफ की वेबसाइट पर प्रकाशित ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि उत्पादों के दाम जितने बढ़े, ऊर्जा की कीमत उतनी नहीं बढ़ी थी। जिसके बाद आईएमएफ ने साफ तौर पर चेतावनी दी है कि, अगर 2025 तक यूरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) की तरफ से मुद्रास्फीति के तय लक्ष्य को हासिल करना है, तो कंपनियों को अपना मुनाफा घटाना होगा। ईसीबी ने मुद्रास्फीति दर को दो फीसदी तक लाने का लक्ष्य घोषित किया हुआ है। आईएमएफ ने कहा है कि कंपनियों ने मुनाफा बढ़ाने के लिए वस्तुओं और सेवाओं के दाम बढ़ाए, जिसकी वजह से महंगाई बढ़ी और अब श्रमिक वर्ग के लोग उस महंगाई के बीच अपना जीवन-स्तर बरककार रखने के लिए तनख्वाह बढ़ाने की मांग कर रहे हैं। इससे मुद्रास्फीति का एक दुश्चक्र बन गया है।
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