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इंडिया न्यूज़,नई दिल्ली।(India and Turkey Relations)विनाशकारी भूकंप से तुर्की में भारी क्षति पहुंची है। अब तक करीब 8000 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। तुर्की की आर्थिक तौर पर हालत बहुत ही दयनीय है। जिससे हाल के दिनों में उबरना उसके लिए संभव नहीं है। हालांकि विश्व के कई देश इस समय तुर्की को आर्थिक तौर पर मदद पहुंचा रहे हैं। भारत ने भी तुर्की की मदद की है। पीएम मोदी के दिशानिर्देश के बाद मंगलवार को 2 NDRF की टीम, 2 विमान तुर्की के लिए रवाना हुए हैं। इसके अलावा भारत की मेडिकल टीम भी तुर्की गई है।
भूकंप की वजह से तुर्की में 6000 से ज्यादा इमारतें ताश के पत्तों की तरह धाराशायी हो गई। अगर तुर्की की आर्थिक हालत की बात करें तो पिछले दो दशक में स्थिति बद से बदतर हुई है।इसका दोष तुर्की की आंतरिक राजनीति को दिया जाता है। तुर्की फिलहाल विदेशी मुद्रा के संकट का सामना कर रहा है और इससे निपटने के लिए लगातार प्रयास भी कर रहा है। ये अलग बात है कि उसे कामयाबी नहीं मिल रही है। कोरोना काल में तुर्की की आर्थिक सेहत और भी चरमरा गई थी। जिससे वहां महंगाई बढ़ गई और लोग खाद्य वस्तुओं की कमी से जूझते दिखे।
इससे पहले वित्त वर्ष 2017-18 में भारत-तुर्की के बीच 7.2 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। वर्ष 2017-18 के दौरान तुर्की ने भारत से 5 बिलियन डॉलर तक का आयात किया था और इसी समय उसने भारत को 2.2 बिलियन डॉलर का निर्यात भी किया था। तुर्की की ओर से साल 2000 से 2018 तक भारत में निर्माण, शीशा और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में लगभग 183 मिलियन डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश हुआ। जबकि भारत की ओर से तुर्की में 1998 से 2017 तक करीब 122 मिलियन डॉलर का निवेश किया गया।
भारत-तुर्की के संबंध को और मधुर बनाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार की ओर से कोशिश की गई थी लेकिन तुर्की का पाकिस्तान प्रेम की वजह से बात नहीं बन पाई थी। पाकिस्तान को लेकर तुर्की का रुख हमेशा नरम रहा है, जबकि समय -समय पर तुर्की ने वैश्विक मंचों पर भारत के खिलाफ बयानबाजी की है। भारत की ओर से तुर्की को ऑटोमोटिव कल-पुर्जे, ऑर्गेनिक कैमिकल, कृत्रिम रेशे, प्राकृतिक रेशे,मीडियम ऑयल और ईंधन और साजोसामान भेजा जाता है जबकि तुर्की की ओर से लोहे और स्टील की चीजें,, मोती, जवाहरात, इंजीनियरिंग उपकरण, खसखस, और संगमरमर भेजा जाता है।
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