संबंधित खबरें
Jammu and Kashmir: बडगाम में खाई में गिरी BSF जवानों की बस, 4 जवान शहीद, 32 घायल
मेरठ में बड़ा हादसा, तीन मंजिला मकान गिरने से कई घायल, मलबे में दबे पशु
किस दिन होगा केजरीवाल की किस्मत का फैसला? इस घोटाले में काट रहे हैं सजा
No Horn Please: हिमचाल सरकार का बड़ा फैसला, प्रेशर हॉर्न बजाने पर वाहन उठा लेगी पुलिस
Himachal News: बेरोजगार युवाओं के लिए अच्छे दिन! जानें पूरी खबर
Rajasthan: चेतन शर्मा का इंडिया की अंडर-19 टीम में चयन, किराए के मकान में रहने के लिए नहीं थे पैसे
Widowed daughter-in-law: बॉम्बे हाईकोर्ट की औरंगाबाद बेंच ने हाल ही में कहा था कि सास-ससुर, आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत एक विधवा बहू से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकते हैं। एकल-न्यायाधीश न्यायमूर्ति किशोर संत ने एक न्यायाधिकारी ग्राम न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया, जिसने धारा 125 के तहत शोभा तिड़के को उसके बूढ़े सास-ससुर को भरण-पोषण करने का आदेश दिया था।
उच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 125 के प्रावधान केवल वैध, नाजायज बच्चों, बड़े या शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों और बूढ़े माता-पिता (पिता और माता) को भरण-पोषण का दावा करने की अनुमति देते हैं और यह भरण-पोषण के लिए योग्य “रिश्तेदार” के रूप में सास-ससुर का उल्लेख नहीं करता है।
अदालत ने अपने आदेश में कहा कि धारा 125 को पढ़ने से यह स्पष्ट है कि उक्त धारा में ससुर और सास का उल्लेख नहीं है। न्यायालय ने कहा कि एक अलग मामले में उच्च न्यायालय के समक्ष एक समान प्रश्न आया था, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा था कि सास-ससुर अपनी विधवा बहू से भरण-पोषण का दावा करने के हकदार नहीं होंगे।
मामले के तथ्यों के अनुसार, याचिकाकर्ता शोभा के पति महाराष्ट्र राज्य सड़क परिवहन निगम (MSRTC) में एक कंडक्टर के रूप में काम कर रहे थे, जब उनका निधन हो गया। याचिकाकर्ता को बाद में राज्य के स्वास्थ्य विभाग में नौकरी मिल गई। उसके वृद्ध सास-ससुर ने इस आधार पर भरण-पोषण की माँग की कि वे वृद्ध हैं और अपनी देखभाल करने में असमर्थ हैं।
याचिकाकर्ता ने इस आधार पर इसका विरोध किया कि सास-ससुर की चार विवाहित बेटियां हैं, जो सभी अच्छी तरह से सेटल हैं। उसने बताया कि उसके ससुराल वालों के पास कम से कम 2.30 एकड़ जमीन है और उसके पति की मृत्यु के बाद सास को ₹1.88 लाख की राशि मिली थी। इस राशि के अलावा कुछ पैसे याचिकाकर्ता के नाबालिग बेटे को दिए गए।
इसके अलावा, याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि सभी चार बेटियों का उसके ससुराल की संपत्ति में हिस्सा है और इसलिए उनकी बेटियां अपने माता-पिता को भरण-पोषण का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। दलीलों को स्वीकार करते हुए खंडपीठ ने न्यायाधिकारी ग्राम न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता जेएम मुरकुटे पेश हुए। ससुराल पक्ष का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता सुभाष एस चिलार्ज ने किया। केस को शोभा संजय तिड़के बनाम किशनराव रामराव तिड़के के नाम से जाना गया।
यह भी पढ़े-
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.