मदन गुप्ता सपाटू, ज्योतिर्विद, चंडीगढ़
भला बारिश के मौसम की सटीक भविष्यवाणी ज्योतिष, पक्षी, जानवर और पेड़ पौधे कैसे कर सकते हैं? यह पढ़कर आपको अचरज हो रहा होगा। लेकिन बात सोलह आने सच है। अगर हम वैदिक ज्योतिष की बात करें तो प्राचीनकाल से ही आकंलन सटीक रहा है।
भारत का वैदिक ज्योतिष शास्त्र, लोकभविष्य आज से नहीं अपितु प्राचीनकाल से सटीक रहा है। इसके तहत राजा को आने वाली विपत्तियों की पूर्वसूचना देना शामिल था। ऐसे ही कृषकों को मौसम और उनकी फसल के बारे बताया जाता था। यह प्राचीन काल से ही विद्वानों की जिम्मेवारी रही है।
मौसम विभाग तो अब आया है जिसकी भविष्यवाणी कंप्यूटर युग में भी कई बार गलत हो जाती है। परंतु हमारे देश में भविष्यवाणियों के लिए ज्योतिष के अतिरिक्त पशु-पक्षियों के व्यवहार से भी किसान, मौसम और फसले के बारे बहुत कुछ जान लेता है।
भारतीय ज्योतिष में घाघ और भड्डरी, दो ऐसे ग्रामीण अंचलों के वासी रहे हैं जिन्होंने मौसम के ज्योतिष को दोहों और लोकोक्तियों में ढल कर, किसानों के लिए सुगम सूत्र बना दिए जो आज भी सटीक उतरते हैं। आइये जानते हैं क्या हैं वे सूत्र
सर्व तपै जो रोहिनी, सर्व तपै जो मूर। परिवा तपै जो जेठ की, उपजै सातो तूर।।
भावार्थ : यदि रोहिणी भर तपे और मूल भी पूरा तपे तथा जेठ की प्रतिपदा तपे तो सातों प्रकार के अन्न पैदा होंगे।
शुक्रवार की बादरी, रही सनीचर छाय। तो यों भाखै भड्डरी, बिन बरसे ना जाए।।
भावार्थ : यदि शुक्रवार के बादल शनिवार को छाए रहें , तो भड्डरी कहते हैं कि वह बादल बिना पानी बरसे नहीं जाएगा।
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय। ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय।।
भावार्थ : यदि भादो सुदी छठ को अनुराधा नक्षत्र पड़े तो ऊबड़-खाबड़ जमीन में भी उस दिन अन्न बो देने से बहुत पैदावार होती है।
अद्रा भद्रा कृत्तिका, अद्र रेख जु मघाहि। चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
भावार्थ : यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, श्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
सोम सुक्र सुरगुरु दिवस, पौष अमावस होय। घर घर बजे बधावनो, दुखी न दीखै कोय।।
भावार्थ : यदि पूस की अमावस्या को सोमवार, शुक्रवार बृहस्पतिवार पड़े तो घर घर बधाई बजेगी-कोई दुखी न दिखाई पड़ेगा।
सावन पहिले पाख में, दसमी रोहिनी होय। महंग नाज अरु स्वल्प जल, विरला विलसै कोय।।
भावार्थ : यदि श्रावण कृष्ण पक्ष में दशमी तिथि को रोहिणी हो तो समझ लेना चाहिए अनाज महंगा होगा और वर्षा स्वल्प होगी, विरले ही लोग सुखी रहेंगे।
पूस मास दसमी अंधियारी। बदली घोर होय अधिकारी। सावन बदि दसमी के दिवसे। भरे मेघ चारो दिसि बरसे।।
यदि पूस बदी दसमी को घनघोर घटा छायी हो तो सावन बदी दसमी को चारों दिशाओं में वर्षा होगी।
कहीं कहीं इसे यों भी कहते हैं-‘काहे पंडित पढ़ि पढ़ि भरो, पूस अमावस की सुधि करो।
पूस उजेली सप्तमी, अष्टमी नौमी जाज। मेघ होय तो जान लो, अब सुभ होइहै काज।।
भावार्थ : यदि पूस सुदी सप्तमी, अष्टमी और नवमी को बदली और गर्जना हो तो सब काम सफल होगा अर्थात सुकाल होगा।
अखै तीज तिथि के दिना, गुरु होवे संजूत। तो भाखैं यों भड्डरी, उपजै नाज बहूत।।
भावार्थ : यदि वैशाख में अक्षम तृतीया को गुरुवार पड़े तो खूब अन्न पैदा होगा।
सावन सुक्ला सप्तमी, जो गरजै अधिरात। बरसै तो झुरा परै, नाहीं समौ सुकाल।।
भावार्थ : यदि सावन सुदी सप्तमी को आधी रात के समय बादल गरजे और पानी बरसे तो झुरा पड़ेगा; न बरसे तो समय अच्छा बीतेगा।
असुनी नलिया अन्त विनासै। गली रेवती जल को नासै।। भरनी नासै तृनौ सहूतो। कृतिका बरसै अन्त बहूतो।।
भावार्थ : यदि चैत मास में अश्विनी नक्षत्र बरसे तो वर्षा ऋतु के अन्त में झुरा पड़ेगा; रेतवी नक्षत्र बरसे तो वर्षा नाममात्र की होगी; भरणी नक्षत्र बरसे तो घास भी सूख जाएगी और कृतिका नक्षत्र बरसे तो अच्छी वर्षा होगी।
आसाढ़ी पूनो दिना, गाज बीजु बरसंत।नासे लच्छन काल का, आनंद मानो सत।।
भावार्थ : आषाढ़ की पूणिमा को यदि बादल गरजें, बिजली चमके और पानी बरसे तो वह वर्ष बहुत सुखद बीतेगा।
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय। कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
भावार्थ : यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे और नहीं खाएंगे।
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि। भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
भावार्थ : उत्तर नक्षत्र ने जवाब दे दिया और हस्त भी मुंह मोड़कर चला गया। चित्रा नक्षत्र ही अच्छा है कि प्रजा को बसा लेता है। अर्थात उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो उपज अच्छी होती है।
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हस्त बरस चित्रा मंडराय। घर बैठे किसान सुख पाए।।
भावार्थ : हस्त में पानी बरसने और चित्रा में बादल मंडराने से (क्योंकि चित्रा की धूप बड़ी विषाक्त होती है) किसान घर बैठे सुख पाते हैं। यदि इस नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
असाढ़ मास आठें अंधियारी।जो निकले बादर जल धारी।। चन्दा निकले बादर फोड़। साढ़े तीन मास वर्षा का जोग।।
भावार्थ : यदि असाढ़ बदी अष्टमी को अन्धकार छाया हुआ हो और चन्द्रमा बादलों को फोड़कर निकले तो बड़ी आनन्ददायिनी वर्षा होगी और पृथ्वी पर आनन्द की बाढ़-सी आ जाएगी।
असाढ़ मास पूनो दिवस, बादल घेरे चन्द्र।तो भड्डरी जोसी कहैं, होवे परम आनन्द।।
भावार्थ : यदि आसाढ़ी पूर्णिमा को चन्द्रमा बादलों से ढंका रहे तो भड्डरी ज्योतिषी कहते हैं कि उस वर्ष आनन्द ही आनन्द रहेगा।
मानसून की भविष्यवाणी इंसान भी करते हैं तो परिंदे भी पीछे नहीं है। परिंदें खूबियों और खासियतों से भरा होता है। पक्षियों का कलरव मन को सुकून भी देता है तो वातावरण को भी खुशनुमा बनाता है। पर्यावरण को शुद्ध बनाने वाले हर परिंदे की अपनी विशेषता होती है। ऐसा ही एक पक्षी है टिटहरी, इसे कुदरत ने ऐसा करिश्मा दिया है, जो अपने अंडों के जरिए अच्छे मानसून का संकेत देती है।
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टिटहरी खेतों में अपने अंडों के माध्यम से बारिश की सटीक भविष्यवाणी करती है। इसके अंडों की संख्या और उनकी। स्थिति से पता लगाया जा सकता है कि बारिश कितने माह और किस तरह होगी।
टिटहरी पक्षी ने अगर मानसून से पहले खेत की ऊंची मेढ़ पर चार अंडे दिए हैं। इससे देसी मौसम विज्ञानी यानी कि गांव के बुजुर्गों का मानना है कि इस बार बरसात का मौसम पूरे 4 माह तक रहेगा और अच्छे मानसून रहने के आसार हैं। मानसून का अंदाजा लगाने के लिए टिटहरी पक्षी की गतिविधि पर नजर रखी जाती है।
टिटहरी पक्षी मानसून से पहले अंडे देती है। टिटहरी अगर 2 अंडे देती है तो माना जाता है कि मानसून की अवधि 2 माह रहेगी। टिटहरी ने ऊंचे स्थान पर चार अंडे दिए हैं तो ऐसा माना जाता है कि बरसात का मौसम पूरे 4 माह रहेगा और ये अच्छे मानसून रहने के संकेत हैं।
यह मादा अगर छह अंडे देती है तो मानसून में अच्छी पैदावार व बरसात की उम्मीद बन जाती हैं। खुले घास के मैदान, छोटे-मोटे पत्थरों, सूनी हवेलियों व सूनी छतों पर बसेरा करने वाली टिटहरी का प्रजनन मार्च से अगस्त माह के दौरान होता है।
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मानना है कि यदि टिटहरी ऊंचे स्थान पर अंडे रखती है तो बारिश तेज होती है। यदि टिटहरी निचले स्थान पर अंडे देती है तो उस साल कम बारिश होती है। यदि तीन अंडे हो तो 3 माह और 4 हो तो 4 माह बारिश का अनुमान लगाया जाता है।
वहीं टिटहरी के अंडों का मुंह जमीन की ओर होने पर मानसून के दौरान मूसलाधार बारिश, समतल स्थान पर रखे होने पर औसत बारिश और किसी गड्ढे में अंडे दिए जाने पर सूखा पड़ने का अनुमान लगाया जाता है।
इस पक्षी के अंडे देने के करीब 18 से 25 दिनों में इनमें से बच्चे बाहर निकल जाते हैंं। टिटहरी के बच्चों के पैरों का रंग सामान्य तौर पर लाल होता है। बाद में धीरे-धीरे बड़े होने के साथ यह रंग पीला हो जाता है। इनके अंडे पत्थर के रंग के हल्के पीले पर स्लेटी भूरे, गहरे भूरे या बैंगनी धब्बों बाले अंडे देती है। ये कीट-पतंगे खाकर अपना भरण-पोषण करते हैं। अंडों की नर व मादा दोनों रक्षा करते हैंं।
‘डीड ही टू इट, डीड ही टू इट’ की निकालते हैं आवाज। मौसम व अन्य चेतावनी देने वाली टिटहरी कई प्रकार की आवाजें निकालती है। इसकी आवाज पर यह आभास होता है कि या तो मौसम बदलने वाला है या फिर कोई जानवर या पक्षी आने वाला है। टिटहरी लगभग दिनभर डीड ही टू इट…डीड ही टू इट…की आवाज निकालती रहती है।
टिटहरी बेहद चौकन्ना पक्षी है जो अपने पास आने वाले किसी भी जीव जंतु, मनुष्य को देखकर तीखा शोर करते हैं। इनकी उम्र करीब 6-15 साल मानी गई है। लंबाई 15 सेमी होती है, इनकी आंखें व चोंच का हिस्सा लाल होता है। प्रजनन काल के दौरान यह और भी गहरा हो जाता है।
चिड़िया के घोंसले की ऊंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त ऊंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचे है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है। जानवरों के अलावा पेड़, पौधों से भी वर्षा का अनुमान लगाने में मदद मिलती है।
माना जाता है कि यदि कोई पक्षी धूल मिट्टी में स्नान करता है तो ये जल्द बरसात होने के संकेत हैं। माना जाता है कि धूल मिट्टी में स्नान करते हुए पक्षी को देखें तो 24 घंटे के अंदर बरसात हो जाती है।
इसी तरह अगर चींटियां कतार बनाकर अपने अंडों को एक दिशा से दूसरी तरफ ले जाती हुई नजर आएं तो समझ लेना चाहिए कि जल्द ही बरसात होने वाली है। इसके पीछे मानना है कि चींटियों को जमीन में नमी बहुत जल्दी महसूस हो जाती है। इसलिए वो संभावित बरसात को देखते हुए अपने अंडों को सुरक्षित स्थान की ओर ले जाती हैं और ये बरसात के संकेत होते हैं।
चींटियों की गतिविधि को देखकर बारिश का सबसे पहले अंदाजा लगाया जा सकता है। माना जाता है कि अगर चींटियां भारी मात्रा में अपने समूह के साथ अंडे लेकर घर बदलती दिखाई दें, तो बारिश का मौसम शुरू होने का अनुमान लगाया जाता है। चिड़िया के घोंसले की उंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त उंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचा है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है।
माना जाता है कि गोल्डन शावर नाम के पेड़ में फूल आने के 45 दिन के अंदर बारिश शुरू हो जाती है। इसी तरह अगर नीम का पेड़ फूलों से भर जाए, तो इसे बहुत अच्छी बारिश का संकेत माना जाता है।
प्रकृति के नैसर्गिक चक्र के संकेतों को समझने की अलौकिक शक्ति कौवों में होती है। बारिश के संदर्भ में कौवों का आकलन काफी सटीक होता है। पौराणिक ग्रंथों में स्निग्ध या नर्म प्रकृति के पेड़ों जैसे आम, करंज या कांटों वाले वृक्षों का कौवों से पुराना संबंध बतलाया गया है।
कौवे यदि मई के महीने में अपना घोंसला बबूल या सावर जैसे कांटेदार वृक्षों पर बनाते हैं तो बारिश के कम होने की संभावना रहती है। इसके विपरित यदि वे आम या करंज के वृक्ष पर घोंसला बनाते हैं तो ये अच्छी बारिश के संकेत होते हैं।
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