India News (इंडिया न्यूज़),Lok Sabha Election: समाजवादी पार्टी ने लोकसभा चुनाव के लिए अब तक 31 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। मुलायम परिवार से तीन सदस्य चुनावी मैदान में हैं। अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव को बदायूं से टिकट मिला है। पहले इस सीट से धर्मेंद्र यादव को उम्मीदवार बनाया गया था। लेकिन उनका टिकट रद्द कर दिया गया। धर्मेंद्र यादव रिश्ते में अखिलेश के चचेरे भाई लगते हैं। अखिलेश के एक और चचेरे भाई अक्षय यादव फिरोज़ाबाद से चुनाव लड़ेंगे। अक्षय यादव समाजवादी पार्टी के सांसद रामगोपाल यादव के बेटे हैं। अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव एक बार फिर मैनपुरी से चुनाव लड़ेंगी। इससे पहले मुलायम सिंह यादव यहां से सांसद चुने गये थे।
अखिलेश ने अपनी पत्नी, चाचा और चचेरे भाई का टिकट पक्का कर दिया है। लेकिन इस बात पर सस्पेंस बना हुआ है कि वह खुद चुनाव लड़ेंगे या नहीं और अगर लड़ेंगे तो किस सीट से। अभी तक न तो कन्नौज से और न ही आज़मगढ़ से किसी को टिकट मिला है।
दोनों लोकसभा सीटों का प्रभारी धर्मेंद्र यादव को बनाया गया है। समाजवादी पार्टी में परंपरा रही है कि प्रभारी को ही वहां से टिकट मिलता है। अखिलेश यादव भी आज़मगढ़ और कन्नौज दोनों जगहों से सांसद रह चुके हैं। लेकिन इस बार वह क्या करेंगे, इस पर समाजवादी पार्टी के अंदर और बाहर बड़ी चर्चा है।
अखिलेश यादव ने अभी तक चुनाव लड़ने के लिए अपने पत्ते नहीं खोले हैं। लेकिन परिवार के एक करीबी नेता ने कहा कि सब कुछ तय है। सूत्रों का कहना है कि अखिलेश ने चुनाव लड़ने की तैयारी शुरू कर दी है। विरोधियों को अपना बनाने का मिशन शुरू हो गया है। अखिलेश और जीत की राह की सारी बाधाएं दूर हो रही हैं। वे चुनाव लड़ने से पहले अपनी जीत सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं।
इस बार अखिलेश कोई जोखिम लेने के मूड में नहीं हैं। एक कहावत है कि दूध का जला छाछ भी पीता है। यही काम अखिलेश यादव भी कर रहे हैं। आज़मगढ़ उपचुनाव में जो हुआ उसे वे अभी तक नहीं भूल पाए हैं। 2019 के आम चुनाव में उन्होंने यहां से जीत हासिल की, लेकिन फिर तीन साल बाद हुए उपचुनाव में उनकी पार्टी हार गई। जबकि आज़मगढ़ समाजवादी पार्टी की सबसे सुरक्षित सीट मानी जाती है। जिसके कारण पार्टी की हार हुई। अब उस कारण को खत्म करने की योजना है।
आज़मगढ़ उपचुनाव में समाजवादी पार्टी के धर्मेंद्र यादव 8 हजार वोटों से हार गए। बीजेपी के दिनेश लाल यादव निरहुआ को 3 लाख 12 हजार वोट मिले। धर्मेंद्र यादव को 3 लाख 4 हजार और बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डु जमाली को 2 लाख 66 हजार वोट मिले थे। गुड्डु जमाली की वजह से मुस्लिम वोट बंट गये। बीजेपी को फायदा मिला। जमाली पहले भी विधायक रह चुके हैं। वह एक बड़ा बिल्डर है। उनका काम दिल्ली से लेकर लखनऊ तक फैला हुआ है। चुनाव के बाद वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गये। लेकिन पार्टी ने उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं दिया। इसलिए वह फिर से मायावती के साथ चले गये। वह एक बार फिर लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे। अगर वे दोबारा चुनाव लड़ते तो मुस्लिम मतदाता बंट जाते।
न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। इसलिए अखिलेश यादव ने गुड्डु जमाली की घर वापसी का फैसला किया है। इसी सप्ताह वह फिर से समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। वह पहले ही अखिलेश से बात और मुलाकात कर चुके हैं। गुड्डु जमाली यूं ही समाजवादी पार्टी में नहीं आ रहे हैं। उन्हें एमएलसी बनाने का भी आश्वासन दिया गया है। अगले महीने विधान परिषद चुनाव हो रहे हैं। पार्टी को किसी मुस्लिम को टिकट देना होगा। नहीं तो राज्यसभा चुनाव की तरह पीडीए को लेकर भी विवाद बढ़ सकता है। तो एक पंथ, दो काज। गुड्डु जमाली एमएलसी बनेंगे और समाजवादी पार्टी को उनका समर्थन मिलेगा। ऐसे में चुनाव में पार्टी की जीत तय मानी जा सकती है। बुधवार को गुड्डु जमाली समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं।
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