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Mahant Narendra Giri को मठ में दी गई भू-समाधि

उत्तराधिकारी बलवीर ने पूर्ण कराई अंतिम प्रक्रिया इंडिया न्यूज, प्रयागराज: Mahant Narendra Giri को बुधवार को शाही स्नान के बाघंमरी मठ में भू-समाधि दे दी गई है। इसके साथ ही महंत ब्रह्म में लीन हो गए हैं। वहीं इस दौरान सभी रस्में सुसाइड नोट में घोषित उत्तराधिकारी बलवीर ने संपन्न कराई। पार्थिव देह को पहले […]

BY: India News Editor • UPDATED :
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उत्तराधिकारी बलवीर ने पूर्ण कराई अंतिम प्रक्रिया
इंडिया न्यूज, प्रयागराज:

Mahant Narendra Giri को बुधवार को शाही स्नान के बाघंमरी मठ में भू-समाधि दे दी गई है। इसके साथ ही महंत ब्रह्म में लीन हो गए हैं। वहीं इस दौरान सभी रस्में सुसाइड नोट में घोषित उत्तराधिकारी बलवीर ने संपन्न कराई।

पार्थिव देह को पहले गंगा में स्रान कराया गया (Mahant Narendra Giri)

पोस्टमार्टम के बाद महंत के पार्थिव देह को सबसे पहले शहर में घुमाते हुए संगम में गंगा नदी में स्नान कराया गया। तदोपरांत वैदिक मंत्रोच्चारण और शिव उद्घोष में  भू-समाधि दी गई। भू-समाधि के दौरान 13 अखाड़े के साधु-संत मौजूद रहे।

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Bhumi-samadhi given to Mahant Narendra Giri in the monastery

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कई क्विंटल फूल, दूध और मेवों का समाधी में डाला गया

अंतिम प्रक्रिया में एक क्विंटल फूल, एक क्विंटल दूध, एक क्विंटल पंच मेवा, मक्खन आदि भी समाधि में डाला गया। अंतिम प्रक्रिया में परदे से गोपनीय प्रक्रिया भी की गई।

नीबू के पेड़ के नीचे समाधि देने की बताई थी इच्छा (Mahant Narendra Giri)

महंत नरेंद्र गिरि की अंतिम इच्छा थी कि उनकी समाधि बाघंबरी मठ में नीबू के पेड़ के पास दी जाए। यह बात उन्होंने अपने सुसाइड नोट में भी लिखी है।
उधर, महंत के बहनोई भागीरथी सिंह ने कहा कि महंत दूसरों को ज्ञान देते थे, वह कभी आत्महत्या नहीं कर सकते।

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क्या हैं भू-समाधि की परंपरा

साधु परंपरा के अनुसार सबसे पहले पार्थिव शरीद को संगम में स्नान कराया जात है। इसके बाद में नए वस्त्र पहनाए जाते हैं। जैसे एक संत का श्रृंगार होता है, वैसे ही उनका श्रृंगार किया जाएगा। फूल मालाएं पहनाई जाती है और उनके शिष्यों और अनुयायियों द्वारा उन्हें दक्षिणा दी जाती है। उसके बाद ही विधिवत संत परंपरा के अनुसार समाधि दी जाती है।

एक वर्ष बाद समाधि स्थल पर शिवलिंग होगा स्थापित (Mahant Narendra Giri)

समाधि देने के अगले दिन से ही बाकायदा धूप दीप और दोनों समय उन्हें भोग लगाया जाएगा। एक वर्ष पूरा होने के बाद समाधि के ऊपर शिवलिंग स्थापित किया जाएगा, जिस पर सुबह और शाम जलाभिषेक होगा और धूप, दीप व अगरबत्ती से पूजन अर्चना की जाएगी।

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