By: Ajeet Singh
• UPDATED :India News (इंडिया न्यूज),Yogi Adityanath: हाल ही में एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने गो आधारित प्राकृतिक खेती की पैरवी करते हुए कहा था, इस तरह की खेती से प्रति एकड़ किसान 10 से 12 हजार रुपये बचा सकते हैं। अगर प्रदेश के अधिकांश किसान प्राकृतिक खेती करने लगें तो कितने करोड़ की बचत होगी, स्वतः अनुमान लगाया जा सकता है। इस तरह गोमाता के गर्दन और छूरे के बीच सिर्फ पुण्य ही नहीं, और भी बहुत चीजें हैं। मसलन, लागत कम होने से पैसे की बचत, गोवंश के संरक्षण व संवर्धन के साथ जल, जमीन और इंसान की सेहत में स्थाई सुधार बोनस जैसा है।
उल्लेखनीय है खेतीबाड़ी का प्रमुख निवेश बीज और खाद है। उत्तर प्रदेश अपनी जरूरत का करीब आधा बीज ही पैदा कर पाता है। बाकी अन्य राज्यों, खासकर दक्षिण भारत के प्रदेशों से आता है। इस पर सरकार अच्छा खासा रकम खर्च करती है। रही उर्वरकों की बात तो भारत उर्वरकों के निर्यात पर भारी भरकम विदेशी मुद्रा खर्च करता है। केंद्र से मिले आंकड़ों के अनुसार अब भी सर्वाधिक मांग वाली करीब 15 से 20% यूरिया की आपूर्ति आयात से होती है। फास्फेटिक उर्वरकों और पोटाश के लिए भी हम आयात पर ही निर्भर हैं। चूंकि भारत कृषि प्रधान देश है, लिहाजा यहां मांग देखकर निर्यातक देश रेट भी बढ़ा देते। आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2023-2024 में भारत ने 2127 करोड़ रुपये का यूरिया आयात किया था। बाकी आयात किए जाने वाले उर्वरक अलग से।
प्रदेश के और देश के लिए बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचाने का एक प्रमुख और प्रभावी जरिया हो सकता है, गो आधारित प्राकृतिक खेती। परंपरा के नाते उत्तर प्रदेश में इसकी भरपूर संभावना भी है। गो सेवा आयोग के अध्यक्ष श्याम बिहारी गुप्ता के अनुसार प्रदेश में किसानों की संख्या 2.78 करोड़ और गोवंश की संख्या करीब दो करोड़ है। अगर हर किसान एक गाय पाले तो कई समस्याएं स्वतः हल हो जाएं। प्राकृतिक खेती के एक्सपर्ट्स के अनुसार एक गाय के गोबर और गोमूत्र को प्रसंस्कृत कर करीब चार एकड़ रकबे में खेती की जा सकती है।
योगी सरकार की मंशा है कि हर गो आश्रय खुद में आत्मनिर्भर बनें। इसके लिए सरकार इन आश्रयों को गो आधारित प्राकृतिक खेती और और अन्य उत्पादों के ट्रेनिंग सेंटर के रूप में विकसित कर रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ आदित्यनाथ का शुरू से मानना रहा है कि तरक्की के लिए हमें समय के साथ कदमताल करना होगा। प्राकृतिक खेती भी इसका अपवाद नहीं। इस विधा की खेती करने वाले परंपरागत ज्ञान के साथ आधुनिक तकनीक का प्रयोग करें, इसके लिए प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए सरकार विश्वविद्यालय भी खोलने जा रही है।
अधिक से अधिक किसान प्राकृतिक खेती करें, इसके लिए सरकार इस बाबत चुने गए किसानों को तीन साल आर्थिक सहयोग भी देती है। इसमें पहले दूसरे और तीसरे साल 4800, 4000, 3600 रुपये दिए जाते हैं। कैटल शेड और गोबर गैस पर मिलने वाला अनुदान अलग से। मंडल मुख्यालय स्तर पर ऐसे उत्पादकों के लिए अलग आउटलेट्स बनाए गए हैं। उत्पादों के प्रमाणीकरण भी सरकार का खासा जोर है।
जैविक उत्पाद सेहत के लिए उपयोगी हैं। कोविड 19 के बाद लोगों की सेहत को लेकर जागरूकता भी बढ़ी है। फूड हैबिट्स को लेकर शोध करने वाली तमाम संस्थाओं का पूर्वानुमान है कि अब भोजन के चुनाव में लोग क्षेत्रीय स्वाद और उत्पादों को भी तरजीह दे रहे हैं। इससे स्थानीय जैविक उत्पादों के लिए स्थानीय स्तर बड़ी संभावना बनती है। साथ ही निर्यात के भी अवसर खुल जाते हैं। इससे इन उत्पादों के दाम भी बेहतर मिलते हैं।
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