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कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, दक्षिण पूर्व एशिया में, संयुक्त राज्य अमेरिका, कैरिबियन,आस्ट्रेलिया सहित कई देशों में ड्रैगन फ्रूट की खेती होती है। गुजरात सरकार ने इस फल को कमलम नाम दिया है। एंटीआक्सीडेंट, वसा रहित, फाइबर से भरपूर ड्रैगन फ्रूट में कैल्शियम, मैग्नेशियम और आयरन के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन सी एवं ए भी पाया जाता है। अपनी इन्हीं खूबियों के नाते इसे सुपर फ्रूट भी कहा जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती किसानों की आय बढ़ाने में करारगर साबित होगी। इसकी खेती में रखरखाव पर ज्यादा खर्च नहीं आता है क्योंकि रसायनिक खाद आदि का उपयोग इस खेती में नहीं होता। गोबर और जैविक खाद का इस खेती में उपयोग होता है। एक बार लगाए पौधे से तीस साल तक फल मिलता है। ड्रैगन फ्रूट की खेती करने वाले बाराबंकी के किसान हरिश्चंद्र सेना से आर्टिलरी कर्नल के पद से वर्ष 2015 में रिटायर हुए थे। वह बताते हैं कि रिटायर होने के बाद उन्होंने तीन एकड़ जमीन बाराबंकी की हैदरगढ़ तहसील के सिद्धौर ब्लाक के अमसेरुवा गांव में खरीदी। इस भूमि पर चिया सीड, ग्रीन एप्पल, रेड एप्पल बेर, ड्रैगनफूड, काला गेंहू और कई प्रजाति के आलू की खेती करना शुरू किया। हरिश्चंद्र का कहना है कि ड्रैगन फ्रूट की खेती के लिए एक एकड़ में उन्होंने 500 पिलर पर 2000 पौधे लगाए। इन्हें लगाने में 5-6 लाख रुपए खर्च तीन वर्ष पूर्व लगाए गए ड्रैगन फ्रूट के पौधों अब फल निकले हैं। उनका कहना है कि एक एकड़ में लगाए गए ड्रैगन फ्रूट अगले तीस वर्षों तक फल देंगे और हर साल इन्हें 15 लाख रुपए प्राप्त होंगे। अब इस साल ज्यादा क्षेत्र में इसे उगाने की उनकी योजना है।
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