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प्रयागराज का वो घाट, जहां ब्रह्मा जी ने किया था ब्रह्मांड का सबसे पहला यज्ञ, शिवलिंग स्थापना की

By: Ajeet Singh

• LAST UPDATED : December 10, 2024, 7:04 pm IST
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प्रयागराज का वो घाट, जहां ब्रह्मा जी ने किया था ब्रह्मांड का सबसे पहला यज्ञ, शिवलिंग स्थापना की

India News (इंडिया न्यूज),Maha Kumbh Mela 2025: सनातन संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन जीवित संस्कृति के रूप में जानी जाती है। सनातन संस्कृति के प्राचीनतम नगरों में तीर्थ नगरी प्रयागराज का स्थान सर्वोच्च है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रयागराज सनातन संस्कृति के सभी पवित्र तीर्थों का राजा है, सप्तपुरियों को इनकी रानी माना गया है। प्रयागराज को तीर्थों का राजा मानने का मुख्य कारण यहाँ पर गंगा, यमुना और सरस्वती नामक पवित्र नदियों का संगम होना तथा सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा द्वारा किया गया सृष्टि का प्रथम यज्ञ है। इस महान यज्ञ के कारण ही त्रिवेणी संगम का यह क्षेत्र प्रयाग के नाम से जाना जाता है।

पद्मपुराण के अनुसार ब्रह्मा ने स्वयं गंगा के तट पर शिवलिंग की स्थापना की थी तथा दस अश्वमेध यज्ञ किए थे। तभी से गंगा जी के इस घाट को दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है, यहाँ दशाश्वमेध मंदिर में ब्रह्मेश्वर महादेव के दर्शन मात्र से ही तत्काल फल की प्राप्ति होती है। मार्कण्डेय ऋषि की सलाह पर धर्मराज युधिष्ठिर ने यहाँ दशाश्वमेध यज्ञ भी किया था।

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सृष्टि का प्रथम दशाश्वमेध यज्ञ

प्रयागराज की प्राचीनता और महानता का पता वेदों और पुराणों में प्रयागराज की कथाओं के वर्णन से चलता है। सनातन संस्कृति के प्राचीनतम ग्रंथ ऋग्वेद में प्रयागराज को चंद्रवंशी राजा इला की राजधानी बताया गया है। प्रयाग क्षेत्र की महिमा रामायण, महाभारत, पद्म पुराण, स्कंध पुराण, मत्स्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण और अनेक महान शासकों की कथाओं में गाई गई है। पद्म पुराण की कथा के अनुसार सृष्टि की रचना के बाद भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का पहला यज्ञ गंगा के तट पर किया था। सृष्टि की प्रथम यज्ञस्थली होने के कारण गंगा का यह पुण्य क्षेत्र प्रयाग कहलाया। पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा जी ने गंगा तट पर दश अश्वमेध यज्ञ किये थे। इस कारण गंगा जी यह घाट दशाश्वमेध घाट के नाम से जाना जाता है। इस तट पर स्वंय सृष्टि रचयिता ब्रह्मा जी ने ब्रह्मेश्वर शिवलिंग को स्थापित किया था।

पद्म पुराण की कथा के अनुसार सृष्टि की रचना के पश्चात ब्रह्मा जी ने गंगा के तट पर पुरोहित के रूप में वैदिक मंत्रों के साथ दस अश्वमेध यज्ञ किये थे। इस यज्ञ में स्वयं भगवान विष्णु यजमान थे तथा यज्ञ की आहुतियां भगवान शिव को अर्पित की जा रही थीं। यज्ञ की रक्षा के लिए भगवान विष्णु के माधव रूप से बारह माधव उत्पन्न हुए। वे यज्ञ क्षेत्र के चारों ओर द्वादशमाधव के रूप में स्थापित हैं। सृष्टि के इस सबसे प्रथम महायज्ञ के कारण ही यह क्षेत्र प्रयाग के नाम से प्रचलित हुआ। प्रयागराज को तीर्थराज इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह सनातन आस्था का पहला तीर्थ है।

ब्रह्मा जी द्वारा स्थापित हैं ब्रह्मेश्वर महादेव

गंगा जी के इसी तट पर ब्रह्मा जी ने ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की स्थापना कर पूजन-अर्चन किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस शिवलिंग के दर्शन-पूजन से तात्कालिक फल की प्राप्ति होती है। प्रयागराज के दारगंज स्थित दशाश्वमेध मंदिर में आज भी यह शिवलिंग स्थापित है। दशाश्वमेध मंदिर के पुजारी विमल गिरी ने बताया कि यह देश का एकमात्र ऐसा शिव मंदिर है जहां एक साथ दो शिवलिंगों की पूजा होती है। उन्होंने बताया कि मुगल आक्रांता औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट करने की कोशिश की थी।

प्रचलित मान्यता के अनुसार उसकी तलवार के वार से शिवलिंग से दूध और रक्त बहने लगा था। यह देखकर वह दंग रह गया और मंदिर को कोई नुकसान पहुंचाए बिना वापस लौट गया। शिवलिंग के खंडित होने के कारण मंदिर में दशाश्वर शिवलिंग भी स्थापित हो गया। लेकिन इस मान्यता के कारण कि इसे स्वयं भगवान ब्रह्मा ने स्थापित किया था और ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की चमत्कारी शक्ति के कारण इसे मंदिर से नहीं हटाया गया। तब से दशाश्वमेध मंदिर में दो शिवलिंगों की एक साथ पूजा की जाती है।

श्रावण मास में पूजा का है अधिक महत्व

मंदिर के पुजारी विमल गिरी के मुताबिक, श्रावण मास में शिवलिंग के पूजन का अत्यधिक महत्व है। श्रावण मास में काशी विश्वनाथ का जलाभिषेक करने वाले भक्त दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर काशी की कांवड़ लेकर जाने से पहले ब्रह्मेश्वर शिव की पूजा करते हैं।पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की पूजा करने से शीघ्र फल की प्राप्ति होती है। सृष्टि की प्रथम यज्ञ स्थली होने के कारण यहां किए गये यज्ञ और तप भी शीघ्र फलदायी होते हैं। उन्होंने बताया कि महाभारत की कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि के कहने पर धर्मराज युधिष्ठिर ने भी यहां दस अश्वमेध यज्ञ किये थे और महाभारत में विजय प्राप्त की थी।

ब्रह्मेश्वर शिवलिंग के पूजन से ब्रह्मलोक की प्राप्ति

स्थानीय लोगों के मुताबिक, प्राचीन काल में दशाश्वमेध घाट पर एक ब्रह्म कुंड था, जो समय के साथ-साथ विलुप्त होता चला गया। मान्यता यह भी है कि इस कुंड का निर्माण भी ब्रह्मा जी ने ही किया था और इसके जल से भगवान शिव का अभिषेक करने से व्यक्ति तीन प्रकार के कष्टों से मुक्त हो जाता था। प्रयाग क्षेत्र में सिर मुंडवाना और बाल दान करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि प्रयाग में गंगा स्नान के बाद ब्रह्मेश्वर शिवलिंग की पूजा करने से मृत्यु के बाद ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

सीएम योगी ने कराया दशाश्वमेध मंदिर और घाट का कायाकल्प

पौराणिक मान्यता, महत्व और सनातन आस्था के प्रति मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भावनाओं के अनुरूप महाकुंभ 2025 में प्रयागराज के दशाश्वमेध मंदिर और घाट का विशेष जीर्णोद्धार और सुंदरीकरण का कार्य कराया जा रहा है। पर्यटन विभाग ने न सिर्फ मंदिर और घाट का जीर्णोद्धार कार्य लाल बलुआ पत्थर से कराया है। साथ ही नक्काशी, रंग-रोगन और लाइटिंग के जरिए मंदिर का सौंदर्यीकरण किया गया है। महाकुंभ के लिए प्रयागराज आने वाले श्रद्धालु दशाश्वमेध मंदिर में आसानी से दर्शन-पूजन कर अपनी मनोकामनाएं पूरी कर सकेंगे। स्थानीय लोगों का कहना है कि सीएम योगी से पहले किसी भी सरकार ने मंदिर के जीर्णोद्धार की कोई सुध नहीं ली। वर्तमान में दशाश्वमेध मंदिर और घाट अपने प्राचीन गौरव को पुनः प्राप्त कर चुके हैं।

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