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उत्तराखंड में मदरसों पर कार्रवाई का विरोध, जमीयत उलेमा-ए-हिंद पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, सरकार पर लगाए ये कैसे आरोप

India News (इंडिया न्यूज), Jamiat Ulema-e-Hind: उत्तराखंड में मदरसों पर प्रशासन की सख्त कार्रवाई का जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने विरोध किया है। संगठन ने इसे असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका कहना है कि बिना किसी पूर्व सूचना के मदरसों को सील कर दिया गया,

BY: Shagun Chaurasia • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Jamiat Ulema-e-Hind: उत्तराखंड में मदरसों पर प्रशासन की सख्त कार्रवाई का जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने विरोध किया है। संगठन ने इसे असंवैधानिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। उनका कहना है कि बिना किसी पूर्व सूचना के मदरसों को सील कर दिया गया, जिससे हजारों छात्र प्रभावित हुए हैं। उत्तराखंड सरकार ने राज्य में संचालित मदरसों की जांच शुरू की थी। शिक्षा संबंधी नियमों का उल्लंघन करने वाले मदरसों पर कार्रवाई करते हुए प्रशासन ने कुछ को सील कर दिया। सरकार का कहना है कि यह कदम अवैध रूप से संचालित संस्थानों पर उठाया गया है ताकि शिक्षा की गुणवत्ता बनी रहे।

अरशद मदनी ने जताया विरोध

जमीयत उलेमा-ए-हिंद इस कार्रवाई से सहमत नहीं है। संगठन के अध्यक्ष अरशद मदनी ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करार दिया है। उन्होंने दावा किया कि छात्रों को बिना किसी वैध कारण के उनकी शिक्षा से वंचित किया जा रहा है। जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर मांग की है कि सभी सील किए गए मदरसों को फिर से खोला जाए। उन्होंने भारतीय संविधान और सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्टूबर 2024 के आदेश का हवाला देते हुए कहा कि यह कार्रवाई अवैध है। संगठन ने इसे अदालत की अवमानना भी करार दिया है।

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Jamiat Ulema-e-Hind जमीयत उलेमा-ए-हिंद

सोशल मीडिया पर उठाई आवाज

अरशद मदनी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर इस मुद्दे को उठाया और सरकार की मंशा पर सवाल खड़े किए। उन्होंने कहा कि प्रशासन को मदरसों को सील करने से पहले उचित नोटिस देना चाहिए था, ताकि वे अपनी सफाई पेश कर सकें।

धार्मिक स्वतंत्रता बनाम सरकारी नियम

इस मामले में एक ओर सरकार शिक्षा व्यवस्था को सुधारने और अवैध रूप से चल रहे संस्थानों पर रोक लगाने की बात कर रही है, तो दूसरी ओर मदरसा संगठन इसे धार्मिक स्वतंत्रता और शिक्षा के अधिकार का हनन मान रहे हैं। अब देखना यह होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और उत्तराखंड सरकार की कार्रवाई को लेकर क्या निर्णय लेता है।

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