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दलाई लामा ने लद्दाख से चीन को दिया संदेश, सैन्य इस्तेमाल का तरीका हो चुका है पुराना

इंडिया न्यूज, लेह, (Dalai Lama in Ladakh) : तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शुक्रवार को चीन को सीधा संदेश देते हुए यह कहा कि सैन्य इस्तेमाल का तरीका पुराना हो चुका है। चीन को भारत के साथ सीमा विवाद का हल शांतिपूर्वक तरीके से करना चाहिए। गौरतलब है कि दलाई लामा शुक्रवार को लेह […]

BY: Umesh Kumar Sharma • UPDATED :
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इंडिया न्यूज, लेह, (Dalai Lama in Ladakh) : तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा ने शुक्रवार को चीन को सीधा संदेश देते हुए यह कहा कि सैन्य इस्तेमाल का तरीका पुराना हो चुका है। चीन को भारत के साथ सीमा विवाद का हल शांतिपूर्वक तरीके से करना चाहिए। गौरतलब है कि दलाई लामा शुक्रवार को लेह पहुंचे जहां उनका भव्य स्वागत किया गया। चीन ने हाल ही के दिनों में एकतरफा रूप से पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) को बदलने की कोशिश की है।

जम्मू पहुंचे दलाई लामा ने चीनी कट्टरपंथियों पर किया हमला

लद्दाख में चीन के विस्तारवादी रवैये पर बोलते हुए दलाई लामा ने कहा कि भारत और चीन दो बड़े और पड़ोसी देश हैं। उनको जल्द या बाद में इस समस्या का समाधान बातचीत के माध्यम से शांतिपूर्ण तरीकों से हल करना होगा। सैन्य बल का इस्तेमाल पुराना हो गया है। उन्होंने कहा कि 15 जून, 2020 को, कम से कम 20 भारतीय सैनिक गलवान घाटी में पीएलए सैनिकों के साथ आमने-सामने की लड़ाई में शहीद हुए थे।

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दलाई लामा ने लद्दाख से चीन को दिया संदेश, सैन्य इस्तेमाल का तरीका हो चुका है पुराना

दोनों देश तनाव कम करने के लिए बातचीत में लगे हुए है

तब से, भारत और चीन रणनीतिक क्षेत्र को गैर-सैन्यीकरण करने और दोनों पड़ोसी देशों के बीच तनाव को कम करने के लिए बातचीत में लगे हुए हैं। पूर्वी लद्दाख में सीमा पर मौजूद गतिरोध को दूर करने के लिये भारत और चीन के बीच 16वें दौर की सैन्य बातचीत 17 जुलाई को क्षेत्र में एलएसी के इस ओर (भारतीय क्षेत्र में) होगी।

हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के बाहर यह उनका पहला दौरा है

दलाई लामा जम्मू से होते हुए लद्दाख पहुंचे हैं। वे एक महीने के लिए लेह में रहेंगे और ठिकसे मठ जाएंगे। गत दो वर्षों में हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के बाहर यह उनका पहला दौरा है। चीन पहले ही दलाई लामा की विवादित क्षेत्र की यात्रा पर अपनी नाराजगी व्यक्त कर चुका है।

दलाई लामा के इस क्षेत्र की यात्रा ने 2018 में कर दिया था नाराज

2018 में दलाई लामा की इस क्षेत्र की यात्रा ने चीन को नाराज कर दिया था। इस बार, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियन ने मीडिया से बातचीत में कहा कि भारतीय पक्ष को 14वें दलाई लामा की चीन विरोधी अलगाववादी प्रकृति को पूरी तरह से पहचानना चाहिए और चीन के प्रति अपनी प्रतिबद्धता का पालन करना चाहिए।

दलाई लामा की लद्दाख यात्रा है धार्मिक

तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा की लद्दाख यात्रा पूरी तरह से धार्मिक है और किसी को भी इस पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। एक शीर्ष सरकारी अधिकारी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी है। दलाई लामा शुक्रवार को चीन की सीमा से लगे केंद्र शासित प्रदेश पहुंचेंगे और वहां उनके लगभग एक महीने तक रहने का कार्यक्रम है। उन्होंने कहा कि यह पहली बार नहीं है कि दलाई लामा सीमावर्ती क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं क्योंकि वह पहले भी कई बार लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश का दौरा कर चुके हैं।

दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता

सरकारी पदाधिकारी ने कहा कि दलाई लामा एक आध्यात्मिक नेता हैं और उनकी लद्दाख यात्रा पूरी तरह से धार्मिक है। उनके दौरे पर किसी को आपत्ति क्यों होनी चाहिए। पूर्वी लद्दाख में टकराव के कई बिंदुओं पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच सैन्य गतिरोध के बीच आध्यात्मिक नेता की लद्दाख यात्रा से चीन के नाराज होने की आशंका है।

दलाई लामा के जन्मदिन पर बधाई देने पर चीन ने की थी आपत्ति

इस महीने की शुरूआत में चीन ने दलाई लामा को उनके 87वें जन्मदिन पर बधाई देने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आलोचना करते हुए कहा था कि भारत को चीन के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए तिब्बत से संबंधित मुद्दों का इस्तेमाल करना बंद करना चाहिए। वहीं भारत ने चीन की आलोचना को खारिज करते हुए कहा था कि दलाई लामा देश के सम्मानित अतिथि हैं।

महामारी के कारण गत दो वर्षों में नहीं कर सके है कोई यात्रा

पिछले दो वर्षों में हिमाचल प्रदेश में धर्मशाला के बाहर दलाई लामा की यह पहली यात्रा है। पदाधिकारी ने कहा कि दलाई लामा इससे पहले भी लद्दाख का दौरा कर चुके हैं। उन्होंने तवांग (अरुणाचल प्रदेश) का भी दौरा किया था, लेकिन महामारी के कारण पिछले दो वर्षों में वह कोई यात्रा नहीं कर सके।

दलाई लामा 1959 में तिब्बत से पलायन के बाद से भारत में रह रहे हैं

तिब्बती आध्यात्मिक नेता ने गुरुवार को जम्मू में कहा था कि चीन में अधिक से अधिक लोग यह महसूस करने लगे हैं कि वह स्वतंत्रता नहीं बल्कि तिब्बती बौद्ध संस्कृति की सार्थक स्वायत्तता और संरक्षण की मांग कर रहे हैं। दलाई लामा 1959 में तिब्बत से पलायन के बाद से भारत में रह रहे हैं।

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