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बेशुमार दौलत होते हुए भी ये 3 काम नहीं कर सकती थीं तवायफें? मन मसोस कर रह जाती थीं

Tavayaf: तवायफों के पास बेशुमार दौलत और ऐशो-आराम होने के बावजूद उनकी ज़िंदगी में कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक पाबंदियां थीं

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Tavayaf: एक समय था जब तवायफों का रुतबा ऐशो-आराम क्या होता था। उनकी अमीरी उनकी खूबसूरती के चर्चे दूर-दूर होते थे। उनके पास बेशुमार दौलत हुआ करती थी। तवायफों के पास इस हद तक दौलत हुआ करती थी कि उनके महंगे शौको की कोई कीमत ना हो। आज तवायफ़ों से जुडी कुछ ऐसी ही बातें हम आपको बताने जा रहे हैं जो शायद ही अपने आज से पहले सुनी भी ना हो शायद…..

ये थे वो 3 काम जिनपर था तवायफों को प्रतिबन्ध

तवायफों के पास बेशुमार दौलत और ऐशो-आराम होने के बावजूद उनकी ज़िंदगी में कुछ महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक पाबंदियां थीं, जिन्हें वे चाहकर भी नहीं तोड़ सकती थीं। उनके पास जो धन-संपत्ति और प्रतिष्ठा थी, वह कला और संस्कृति के क्षेत्र में उनकी उत्कृष्टता का परिणाम था। लेकिन सामाजिक रीति-रिवाजों और परंपराओं ने उनके जीवन के कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रतिबंध लगाए थे। आइए, जानते हैं वे तीन मुख्य काम जिन्हें तवायफें करने में असमर्थ रहती थीं:

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1. धार्मिक अनुष्ठानों में भाग लेना:

तवायफों को समाज में उच्च कला और संस्कृति के संरक्षक के रूप में देखा जाता था, लेकिन उन्हें परिवार के धार्मिक अनुष्ठानों और पूजा-पाठ में शामिल होने की अनुमति नहीं थी। चाहे वह घर की कोई पूजा हो या कोई महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान, तवायफों को इससे दूर रखा जाता था। ये पाबंदी उनके लिए एक गहरी मानसिक पीड़ा का कारण बनती थी, क्योंकि वे समाज का हिस्सा होते हुए भी, इन धार्मिक कृत्यों में भाग नहीं ले सकती थीं।

2. शादी और बच्चे के जन्म के संस्कारों में शामिल होना:

शादी और संतान के जन्म के मौके पर किए जाने वाले विभिन्न संस्कारों में तवायफों को शामिल नहीं किया जाता था। विवाह के अवसर पर होने वाले मंगल कार्यों और बच्चे के जन्म के समय किए जाने वाले अनुष्ठानों में उनकी भागीदारी सामाजिक नियमों के तहत वर्जित थी। यह पाबंदी उनके लिए बेहद कष्टकारी होती थी, क्योंकि वे समाज का हिस्सा होने के बावजूद इन महत्वपूर्ण पारिवारिक क्षणों से वंचित रह जाती थीं।

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3. मृत्यु के बाद के धार्मिक कार्यों में भागीदारी:

समाज के प्रतिष्ठित लोगों की मृत्यु के बाद होने वाले धार्मिक क्रियाकलापों और अंतिम संस्कार के समय भी तवायफों को शामिल नहीं किया जाता था। चाहे वह किसी प्रमुख व्यक्ति की मृत्यु हो या उनके परिवार में किसी का निधन, तवायफों को इन शोक समारोहों से दूर रखा जाता था। उनके लिए यह एक और बड़ा दुःख था, क्योंकि वे समाज की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा होते हुए भी, इन महत्वपूर्ण सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों से अलग-थलग रखी जाती थीं।

इन सभी पाबंदियों के बावजूद, तवायफों ने समाज में कला और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। लेकिन इन पाबंदियों ने उनकी निजी ज़िंदगी में एक बड़ा खालीपन और असंतोष भर दिया था, जिसे वे चाहकर भी पूरी तरह से मिटा नहीं सकती थीं।

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Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है। 

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