Crorepati in India( image credit, canva AI)
High income taxpayers India: भारत के अंदर पिछले कुछ सालों में उच्च आय वाले करदाताओं की संख्या काफी तेज़ी से बढ़ी है. मर्सिडीज-बेंज हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025 के अनुसार, 1 करोड़ रुपये से अधिक वार्षिक आय वाले आयकर रिटर्न (आईटीआर) दाखिल करने वालों की संख्या पिछले छह वर्षों (2018-2024) में लगभग तीन गुना बढ़ गई है.
रिपोर्ट में दिए गए आधिकारिक आयकर आंकड़ों के अनुसार, आकलन वर्ष (एवाई) 2017-18 में लगभग 81,000 करदाताओं की आय 1 करोड़ रुपये से अधिक थी, वहीँ एवाई 2023-24 तक यह संख्या बढ़कर लगभग 2.27 लाख हो गई. यह वृद्धि आर्थिक विकास, उद्यमिता और मजबूत इक्विटी बाजार वृद्धि के कारण भारत में समृद्धि की तीव्र वृद्धि को दर्शाती है.
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रिपोर्ट से यह भी मालूम चला है कि जैसे-जैसे हम उच्च आय की और अग्रसर होते हैं, तो करदाताओं का पिरामिड तेज़ी से सिकुड़ता जाता है. इसका मतलब है कि जहाँ लाखों लोग अब 1 करोड़ रुपये से ज़्यादा की आय वर्ग में आ गए हैं, वहीं 5 करोड़, 10 करोड़ रुपये या उससे ज़्यादा की आय बताने वालों की संख्या बहुत कम है. इसका मतलब है कि करोड़पति बनना पहले की तुलना में आसान हो गया है, वहीं अति-धनवान वर्ग तक पहुँचना अभी भी कुछ चुनिंदा लोगों के लिए ही संभव है.
हुरुन इंडिया वेल्थ रिपोर्ट 2025 के अनुसार, भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती संपत्ति पैदा करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक बन गया है. देश में अब 8.71 लाख करोड़पति (8.5 करोड़ रुपये से अधिक की कुल संपत्ति वाले परिवार) हैं, जो 2021 की तुलना में 90% की बढ़ोतरी को प्रदर्शित करता है.
हालाँकि करोड़पतियों और बहु-करोड़पतियों की संख्या बढ़ रही है, फिर भी अरबपति बनने का रास्ता बहुत कठिन बना हुआ है. रिपोर्ट में कहा गया है कि: केवल कुछ ही करोड़पति 1 अरब या 2 अरब रुपये की शुद्ध संपत्ति तक पहुंच पाते हैं. इसके बाद, पिरामिड तेजी से सिकुड़ता जाता है – केवल 0.07% करोड़पति ही 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंचते हैं, और केवल 0.01% ही अरबपति बनते हैं.
ये आंकड़े करदाताओं और नीति निर्माताओं के लिए दो वास्तविकताओं को उजागर करते हैं:
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस प्रवृत्ति का कराधान नीति, धन वितरण और विलासिता उपभोग जैसे क्षेत्रों पर बड़ा प्रभाव डालेगी. जैसे-जैसे भारत का कर आधार बढ़ रहा है और अधिक लोग 1 करोड़ रुपये से अधिक आय वर्ग में आ रहे हैं, यह न केवल बढ़ती समृद्धि का संकेत है, बल्कि एक मजबूत और समावेशी आर्थिक ढांचे की आवश्यकता की भी याद दिलाता है जो इस बढ़ती गति को बनाए रख सके और साथ ही शीर्ष स्तर पर बढ़ती असमानता को बैलेंस कर सके.
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