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नई दिल्ली (Appointment of Judges): सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच जजों की नियुक्ति को लेकर तनातनी बढ़ती जा रही है। बीते दिनों कॅालेजियम सिस्टम को लेकर केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में तनातनी शुरु हुई थी इसी तनातनी के चलते देश के उच्च न्यायालयों में जजों के खाली पदों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने अपने प्रस्तावों में कहा है कि हर व्यक्ति जेंडर के आधार पर अपने व्यक्तित्व को बनाए रखने का हकदार है। इसके लिए उस व्यक्ति के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता है। साथ ही बोलने की आजादी के चलते किसी को भी जज के पद से वंचित नहीं किया जा सकता है।
केंद्र सरकार न्यायिक पदों पर नियुक्तियों को लेकर केंद्र के हस्तक्षेप की मांग कर रही है। केंद्र का मानना है कि इससे नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी। वहीं कॅालेजियम ने अपने प्रस्तान में ऐसे जज के पद के लिए नामों को रखा है जिनको नियुक्त करने में केंद्र सरकार को परेशानी महसूस हो रही है। इन नियुक्ति के लिए भेजे गए प्रस्ताव में अधिवक्ता आर. जॉन सत्यन, सौरभ किरपाल, सोमशेखर सुंदरसन, शाक्य सेन और अमितेश बनर्जी का नाम शामिल है।
वकील सौरभ किरपाल भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश बी एन किरपाल के बेटे हैं। सौरभ किरपाल समलैंगिक हैं। उन्हें 2017 में दिल्ली न्यायालय के कॅालेजियम ने न्यायाधीश के पद पर नियुक्त करने की सिफारिश की थी जिसे 11 नवंबर, 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी थी। लेकिन केंद्र सरकार ने सौरभ की फाइल 25 नवंबर, 2022 को सुप्रीम कोर्ट के पास भेज दी और इस फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा। सीजेआई डी.वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने कहा कि सौरभ के पास पर्याप्त क्षमता और बुद्धि है, उनकी नियुक्ति होने से बेंच को विविधता मिलेगी।
कानून और न्याय मंत्रालय के अनुसार 1 दिसंबर, 2022 तक दिल्ली उच्च न्यायालय में स्वीकृत पद 60 हैं और इसमें 15 पद खाली है। बॉम्बे हाई कोर्ट में स्वीकृत पद 94 और मद्रास हाई कोर्ट में 75 पद हैं। बॉम्बे एचसी में 28 न्यायिक रिक्तियां हैं और मद्रास एचसी में 21 हैं। वहीं देश में उच्च न्यायालयों की कुल स्वीकृत पद 1,108 हैं जिसमें से 330 पद खाली पड़े हैं।
अगर न्यायिक पदों पर जल्द नियुक्तियां नहीं की गई तो न्यायालयों में न्यायाधीशों की कमी हो जाएगी जिसका प्रभाव लंबित मामलों पर पड़ सकता है। बंबई उच्च न्यायालय में छह लाख के लगभग मामले विचाराधीन हैं। वहीं दिल्ली उच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या एक लाख से अधिक और मद्रास उच्च न्यायालय में पांच लाख से अधिक मामले लंबित पड़े हैं।
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