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शनिवार को ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) के सर्वे के दौरान मस्जिद के अंदर कुछ चौंकाने वाली चीजें मिली हैं। सर्वे के दौरान अंदर चार मंडप वाला तहखाना मिला, जिसके अंदर विशेश्वर मंदिर का शिखर दिखा जो तोड़वाया गया था।
इंडिया न्यूज, Varanasi News। जैसा कि आप जानते ही हैं कि ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां (Idols of Hindu Gods and Goddesses) और मंदिर होने के दावे के बाद कोर्ट ने मस्जिद के अंदर सर्वे करने के आदेश दिए थे। जिसके बाद शनिवार को सर्वे के दौरान मस्जिद के अंदर कुछ चौंकाने वाली चीजें मिली हैं। मस्जिद के अंदर चार मंडप वाला तहखाना और विशेश्वर मंदिर मिला है।
बता दें कि हिंदू पक्ष के वकील मदन मोहन यादव ने बताया कि मस्जिद के अंदर नागर शैली के मंदिर के अवशेष देखे गए हैं। वहीं तहखाने में खंडित हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी मिलीं हैं। जिनमें शिव परिवार के सदस्यों की मूर्तियां जैसे-गणेश, कुबेर, हनुमान की मूर्तियां शामिल हैं। वहीं एक दीवार पर विग्रह, मंदिर की घंटी, कलश और हिंदू देवताओं की मूर्तियां भी मिलीं हैं। इसके अलावा मदन मोहन का कहना है कि मैंने श्रृंगार गोरी की मूर्ति (shrrngaar goree idol) भी देखी है।
वहीं तहखाने को लेकर भी उत्सुक्ता बनी हुई है। क्योंकि माना जाता है कि इस तहखाने में ही स्वयंभू आदिविशेश्वर (svayambhoo aadivisheshvar) स्थित हैं। अष्टकोणीय मंदिर (octagonal temple) के शिखर को 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन एबक ने तोड़वाया था। 1595 में मुगल शासक अकबर के आदेश पर उनके नवरत्नों में एक राजा टोडरमल (Raja Todarmal) ने अपने बेटे के माध्यम से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। उसी दौरान गर्भगृह में तहखाना बना दिया गया था।
राजा टोडरमल के समय के स्थापत्य के अनुसार मंदिर के पूरब-दक्षिण में अविमुक्तेश्वर, पूरब-उत्तर में गणेश, पश्चिम-उत्तर में दंडपाणी और पश्चिम-दक्षिण में शृंगार गौरी आदि स्थित हैं। मंदिर के चारों ओर मंडप बने थे जिनके नाम मुक्ति, ज्ञान, ऐश्वर्य और शृंगार रखे गए थे। बीएचयू में प्राचीन इतिहास व संस्कृति विभाग के तत्कालीन अध्यक्ष रहे डा. एस. अल्टेकर ने अपनी पुस्तक हिस्ट्री आफ बनारस आदि विशेश्वर मंदिर का जिक्र किया है।
कुतुबद्दीन एबक (Qutubuddin Aibak) 11वी शताब्दी में गंगा के रास्ते 100 से अधिक नावों के बेड़ों के साथ बनारस पहुंचा और आदिविशेश्वर सहित कई अन्य मंदिरों के शिखर को तोड़ दिया। यह अवशेष 15वीं शताब्दी तक वैसे ही पड़ा रहा।
15वीं और 16वीं शताब्दी में बिहार में साम्राज्य स्थापित कर तत्कालीन मुगल बादशाह अकबर (Mughal emperor Akbar) के वित्तमंत्री टोडरमल और सेनापति राजा मान सिंह दिल्ली लौटते समय बनारस रुके थे। टोडरमल ने काशी के उद्भट विद्वान पं. नारायण भट्ट से अपने पूर्वजों के निमित्त श्राद्धकर्म कराया।
टोडरमल ने नारायण भट्ट को देश में अकाल की बात बताई। तब नारायण भट्ट (Narayan Bhatt) ने कहा था कि यदि अकबर आदि विशेश्वर के क्षतिग्रस्त मंदिर का पुनरुद्धार करा दें तो भारी बारिश होगी। टोडरमल्ल दिल्ली पहुंचे और अकबर से इसका जिक्र किया। 1584 में अकबर ने मंदिर के जीर्णोद्धार करने का एलान किया और पत्र काशी भिजवाया। इसके 48 घंटे के अंदर भारी बारिश हुई। मुगल बादशाह के आदेश के बाद टोडरमल ने अपने बेटे रामेश्वर से मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। रामेश्वर उस समय जौनपुर के सूबेदार थे।
1585 में रामेश्वर ने क्षतिग्रस्त अष्टकोणीय मंदिर के चारों ओर सात फीट ऊंची दीवार खड़ाकर उसे पत्थर की पटिया से ढंकवा दिया। इसके ऊपर विशाल मंदिर बनवाया था। अंदर पटिया से ढकने के बाद अष्टकोणीय स्थान के बीच में दीवार खड़ी कर दी गई जिससे एक कमरे का रूप बन गया। उसे तहखाने के रूप में जाना जाने लगा। तहखाने को अंग्रेजों ने दो भागों में बांट दिया था।
पूर्व जिला शासकीय अधिवक्ता सिविल विजय शंकर रस्तोगी (Former District Government Advocate Civil Vijay Shankar Rastogi) ने 1991 में सिविल कोर्ट में ज्ञानवापी से जुड़ा एक वाद दाखिल किया है। उस वाद में उन्होंने तहखाने के बारे में यही जानकारी कोर्ट को दी है। उन्होंने बताया कि प्रो. अल्टेकर ने अपनी पुस्तक में चीनी यात्री ह्वेनसांग की बनारस यात्रा का हवाला दिया। ह्वेनसांग ने आदिविशेश्वर मंदिर (Adivisheshwara Temple) के साथ 100 फीट ऊंचे स्वयम्भू शिवलिंग का भी जिक्र किया है।
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