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इस घोर पापी ने किया था श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार, जानें गंदे कर्मों के बावजूद क्यों मिला था ये सौभाग्य?

Shri Krishna Last Rites: भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य विदा लेने के बाद, पांडव उनके पास पहुंचे और अर्जुन ने उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास, हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों के संगम पर किया गया था।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), Shri Krishna Last Rites: धर्म ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु ने अपने आठवें अवतार के रूप में द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया। भगवान श्रीकृष्ण का जन्म धरती पर धर्म की पुनर्स्थापना और अधर्म के नाश के लिए हुआ था। महाभारत युद्ध में उनकी प्रमुख भूमिका ने न केवल धर्म की स्थापना की बल्कि पांडवों को विजय दिलाने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

महाभारत युद्ध के बाद श्रीकृष्ण का अंतिम समय

महाभारत युद्ध के 36 वर्ष बाद, श्रीकृष्ण ने अपना पृथ्वी पर धर्म-स्थापना का कार्य पूर्ण कर लिया था। जब उनका कार्य पूरा हो गया, तो यह नियति का नियम था कि उन्हें एक दिन पृथ्वी से विदा लेना था। इसीलिए वे अपने अंतिम समय में एक वन में पेड़ के नीचे विश्राम कर रहे थे। इसी समय, एक बहेलिया उन्हें भ्रमवश हिरण समझकर उनके पैर में तीर मार देता है।

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Shri Krishna Last Rites: भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य विदा लेने के बाद, पांडव उनके पास पहुंचे और अर्जुन ने उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास, हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों के संगम पर किया गया था।

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जब बहेलिये को अपनी भूल का आभास हुआ, तो उसने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा याचना की। इस पर भगवान श्रीकृष्ण ने उसे शांत करते हुए कहा कि यह सब पूर्व निर्धारित था। उन्होंने बताया कि बहेलिया केवल एक माध्यम था और उनका धरती से विदा लेने का समय आ गया था। इस प्रकार, भगवान श्रीकृष्ण ने अपने मानव रूप को त्याग दिया और परम धाम को प्रस्थान किया।

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श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार

भगवान श्रीकृष्ण के इस दिव्य विदा लेने के बाद, पांडव उनके पास पहुंचे और अर्जुन ने उनके पार्थिव शरीर का अंतिम संस्कार किया। ऐसा माना जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण का अंतिम संस्कार गुजरात में सोमनाथ मंदिर के पास, हिरण्य, सरस्वती और कपिला नदियों के संगम पर किया गया था।

कलियुग का प्रारंभ

भगवान श्रीकृष्ण के पृथ्वी से प्रस्थान के साथ ही द्वापर युग समाप्त हुआ और कलियुग का आरंभ हुआ। यह युग अन्य तीन युगों की तुलना में अधिक कठिन और संघर्षपूर्ण माना गया है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण के धरती छोड़ते ही कलियुग ने प्रवेश किया, जिसमें धर्म का पतन शुरू हो गया।

भगवान श्रीकृष्ण की जीवन कथा हमें धर्म, प्रेम, और कर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है। उनका जीवन इस बात का प्रतीक है कि सत्य और धर्म का अनुसरण ही जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। उनके पृथ्वी से प्रस्थान के बाद भी उनका प्रभाव और उनकी शिक्षाएं आज भी अनंत काल तक लोगों को प्रेरित करती रहेंगी।

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Disclaimer: इंडिया न्यूज़ इस लेख में सलाह और सुझाव सिर्फ सामान्य सूचना के उद्देश्य के लिए बता रहा हैं। इन्हें पेशेवर चिकित्सा सलाह के रूप में नहीं लिया जाना चाहिए। कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमेशा अपने डॉक्टर से सलाह लें।

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