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Chhath Puja 2022: जानें क्यों मनाया जाता है छठ का महापर्व, नहाए-खाए से होती है पर्व की शुरूआत

Chhath Puja 2022: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। छठ केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है। चार दिन तक इसे मनाया जाता है। छठ की शुरूआत नहाए-खाए से होती है। जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूरी होती है। साल में दो […]

BY: Akanksha Gupta • UPDATED :
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Chhath Puja 2022: कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाया जाता है। छठ केवल एक पर्व नहीं है, बल्कि महापर्व है। चार दिन तक इसे मनाया जाता है। छठ की शुरूआत नहाए-खाए से होती है। जो डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर पूरी होती है। साल में दो बार इस पर्व को मनाया जाता है। पहली बार ये पर्व चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में इस पर्व को मनाया जाता है।

आपको बता दें कि चैत्र शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर ‘चैती छठ’ और कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर ‘कार्तिकी छठ’ मनाया जाता है। इस व्रत को संतान प्राप्ति तथा संतान की लंबी उम्र की कामना के लिए किया जाता है। इसके अलावा पारिवारिक सुख-समृद्धि तथा मनोवांछित फल प्राप्ति के लिए छठ का पर्व मनाया जाता है। इस महापर्व का एक अलग ऐतिहासिक महत्व भी है।

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Chhath Puja 2022

कैसे शुरू हुई छठ पूजा की परंपरा

छठ पूजा को लेकर कई कई कथाएं प्रचलित हैं। एक मान्यता के मुताबिक, जब भगवान श्रीराम और माता सीता 14 साल के वनवास के बाद जब अयोध्या लौटे थे। उस वक्त रावण वध के पाप से मुक्त होने को लेकर राम-सीता ने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ किया था। जिसके लिए उन्होंने मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया था। मां सीता पर मुग्दल ऋषि ने गंगाजल छिड़ककर उन्हें पवित्र किया तथा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को भगवान सूर्यदेव की उपासना करने को कहा। ऐसे में मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर माता सीता ने 6 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की थी। जिसके बाद सप्तमी को सूर्योदय के दौरान दोबारा अनुष्ठान कर भगवान सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

महाभारत काल की भी प्रचलित है एक कथा   

हिंदू मान्यताओं के अनुसार एक कथा प्रचलित है कि महाभारत काल से छठ पर्व की शुरुआत हुई  थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा कर इस पर्व की शुरूआत की थी। माना जाता है कि वह सूर्यदेव के परम भक्त थे। हर रोज वो घंटों तक पानी में खड़े होकर सूरिय भगवान को अर्घ्य देते थे। वह सूर्यदेव की कृपा से ही एक महान योद्धा बने थे। छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा आज भी प्रचलित है।

छठ का पौराणिक महत्व

इसके अलावा एक कथा और प्रचलित है। पुराणों के मुताबिक, प्रियव्रत नामक एक राजा की कोई औलाद नहीं थी। संतान प्राप्ति के लिए उन्होंने सभी जतन कर कर डाले। लेकिन कोई भी फायदा नहीं हुआ था। जिसके बाद महर्षि कश्यप ने राजा को संतान प्राप्ति के लिए पुत्रयेष्टि यज्ञ करने का परामर्श दिया। जिसके बाद महारानी ने एक पुत्र को जन्म दिया। लेकिन वह मरा पैदा हुआ। इस खबर से पूरे नगर में शोक छा गया।

बताया जाता है कि जब राजा अपने मृत बच्चे को दफनाने के लिए जा रहे थे। उसी दौरान एक ज्योतिर्मय विमान आसमान से धरती पर उतरा। जिसमें बैठी छठी मइया ने कहा कि ‘मैं षष्ठी देवी और विश्व के समस्त बालकों की रक्षिका हूं।’ उनके छूते ही राजा का पुत्र जीवित हो गया था। जिसके बाद राजा ने अपने राज्य में इस त्यौहार को मनाने का एलान कर दिया था।

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