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Chhath Puja 2025: आखिर क्यों नाक से सिंदूर लगाती है महिलाएं? पीछे छिपा है हैरान करने वाला रहस्य

Chhath Puja 2025 Rituals: छठ पूजा (Chhath Puja) भारतीय संस्कृति का एक ऐसा पर्व है जो भक्ति, श्रद्धा, आस्था और विश्वास की अद्भुत एकता का प्रतीक है. यह त्योहार सूर्य उपासना के साथ-साथ मातृत्व और नारी-शक्ति के सम्मान का पर्व भी माना जाता है. हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व चार दिनों तक चलता है. इस वर्ष छठ पूजा का आरंभ 25 अक्टूबर से “नहाय-खाय” के साथ होगा और 28 अक्टूबर को “संध्या अर्घ्य” और “उषा अर्घ्य” के साथ इसका समापन होगा.

छठ पूजा की खासियत यह है कि इसमें अस्त होते सूर्य की भी आराधना की जाती है जो जीवन में अस्तित्व के चक्र, त्याग और पुनर्जन्म की भावना को दर्शाता है. इस व्रत को विशेष रूप से महिलाएं करती हैं और इसे अत्यंत कठोर तथा फलदायी माना गया है. इस दौरान व्रती महिलाएं न सिर्फ व्रत का पालन करती हैं बल्कि पवित्रता, सात्त्विकता और परंपरागत नियमों का भी पूर्णतः पालन करती हैं. इन्हीं परंपराओं में से एक है  नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाना, जिसका धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बहुत गहरा है. आइए जानें इसका रहस्य. 

सिंदूर की धार्मिक मान्यता

हिंदू धर्म में सिंदूर सुहाग का प्रतीक माना जाता है. विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, उत्तम स्वास्थ्य और सुखी दांपत्य जीवन की कामना के लिए प्रतिदिन मांग में सिंदूर भरती हैं. यह केवल एक अलंकार नहीं, बल्कि वैवाहिक जीवन की पवित्रता और समर्पण का प्रतीक है. यह भी मान्यता है कि जिस स्त्री की मांग में सिंदूर जितना लंबा भरा होता है, उसके पति की आयु उतनी ही लंबी होती है. लेकिन छठ पूजा के दौरान जब महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाती हैं, तो इसका अर्थ केवल सौंदर्य या परंपरा नहीं, बल्कि एक गहरी पौराणिक कथा और भावनात्मक प्रतीकवाद से जुड़ा हुआ है.

क्या हैं पौराणिक कथा?

प्राचीन काल में एक वीर युवक रहता था, जिसका नाम वीरवान था. वह एक निडर शिकारी और अदम्य साहसी योद्धा था. उसकी वीरता का लोहा पूरा जंगल मानता था चाहे वह भयंकर शेर हो या कोई नरभक्षी जीव, वीरवान के सामने कोई टिक नहीं पाता था. उसी जंगल के एक किनारे धीरमति नाम की युवती रहती थी सुंदर, साहसी और स्वाभिमानी. एक दिन जब जंगली पशुओं ने धीरमति पर हमला कर दिया, तो वीरवान ने उसकी जान बचाई. उस पल से दोनों के बीच एक गहरा संबंध जुड़ गया  प्रेम, सम्मान और साथ का. उस समय विवाह जैसी कोई सामाजिक परंपरा नहीं थी, फिर भी वे दोनों एक-दूसरे के प्रति निष्ठावान थे.

लेकिन उनकी इस प्रेम कहानी से कालू नामक एक व्यक्ति ईर्ष्या करता था. एक दिन जब वीरवान शिकार की तलाश में धीरमति के साथ जंगल के अंदर तक गया, तब कालू ने मौका पाकर वीरवान पर हमला कर दिया. वीरवान घायल होकर गिर पड़ा. उसकी चीख सुनकर धीरमति दौड़ी आई और अपने साहस से कालू से भिड़ गई. वह घायल थी, परंतु उसने हिम्मत नहीं हारी. अपनी अंतिम शक्ति से उसने कालू पर वार किया और उसे मार गिराया. लहूलुहान वीरवान ने जब यह देखा तो उसकी आंखों में गर्व और प्रेम दोनों थे. उसने अपने खून से सने हाथ से धीरमति के सिर पर स्नेह से हाथ रखा और वही खून उसकी मांग और माथे पर लग गया. उसी क्षण से यह सिंदूर वीरता, प्रेम, त्याग और नारी की निष्ठा का प्रतीक बन गया.

नाक से मांग तक सिंदूर लगाने का क्या है प्रतीकात्मक अर्थ?

हिंदू मान्यताओं में नाक इज्जत और सम्मान का प्रतीक मानी जाती है, वहीं मांग जीवन और वैवाहिक बंधन का प्रतीक है. जब छठ पूजा के अवसर पर महिलाएं नाक से लेकर मांग तक सिंदूर लगाती हैं, तो यह केवल श्रृंगार नहीं, बल्कि अपने पति की लंबी आयु, सम्मान और प्रतिष्ठा की कामना का संकल्प होता है. यह परंपरा स्त्री की उस निष्ठा को दर्शाती है जो वह अपने पति और परिवार के लिए निभाती है  चाहे वह तपस्या हो, उपवास हो या फिर अपने आचरण में पूर्ण पवित्रता का पालन. छठ पूजा इसी आस्था की चरम अभिव्यक्ति है.

shristi S

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