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क्या मांस-मच्छी खाने वालो की पूजा स्वीकार करते है भगवान, क्या कहते हैं इसपर वेद और पुराण?

Prachi Jain • LAST UPDATED : September 14, 2024, 3:12 pm IST

Hindu Puran: पौराणिक कथाओं में ऐसी कहानियां भी मिलती हैं जहाँ भक्तों ने भगवान को मांस अर्पित किया और उनकी भक्ति के कारण उन्हें ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ।

India News (इंडिया न्यूज), Hindu Puran: हिन्दू धर्म में भोजन का मनुष्य के स्वभाव, आत्मा और मन से गहरा संबंध माना गया है। यह मान्यता है कि जो व्यक्ति जिस प्रकार का भोजन करता है, वह उसी प्रकार के स्वभाव का हो जाता है। इसलिए, धर्मानुसार, सात्विक भोजन का सेवन करने की सलाह दी जाती है। लेकिन यह भी सच है कि सभी लोग सात्विक भोजन के नियमों का पालन नहीं कर पाते। कुछ लोग केवल विशेष अवसरों पर ही सात्विक भोजन का अनुसरण करते हैं।

अब सवाल यह उठता है कि जो लोग मांसाहार करते हैं, क्या भगवान उनकी पूजा स्वीकार करते हैं? इस प्रश्न का उत्तर पुराणों में स्पष्ट रूप से दिया गया है:

स्कंद पुराण के अनुसार, मांसाहार करने वाले व्यक्ति को न तो मृत्यु लोक में सुख प्राप्त होता है और न ही किसी अन्य लोक में। यदि किसी जीव की मृत्यु की संभावना हो, तब भी मांसाहार नहीं करना चाहिए। भगवान शिव के अनुसार, मांस और मदिरा का सेवन करने वाले की पूजा स्वीकार नहीं की जाती है।

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वराह पुराण में भगवान विष्णु के अवतार भगवान वराह ने स्पष्ट कहा है कि जो व्यक्ति मांस और मछली का सेवन करता है, वह न तो भगवान की पूजा स्वीकार कर सकता है और न ही उसे भक्त मान सकते हैं। भगवान वराह के अनुसार, पशु भक्षण करने वाला सबसे बड़ा अपराधी है।

भगवान श्रीकृष्ण ने भी गीता में कहा है कि मांस तामसिक भोजन है, जिसे ग्रहण करने से मनुष्य की बुद्धि क्षीण हो जाती है और वह अपनी इन्द्रियों पर से नियंत्रण खो बैठता है। श्रीकृष्ण के अनुसार, ऐसे व्यक्ति की पूजा किसी भी देवता द्वारा स्वीकार नहीं की जाती और उसकी मृत्यु के बाद वह पशु योनि में जन्म लेता है। उसकी मृत्यु भी उसी प्रकार होती है जैसे उसने किसी जीव का भक्षण किया था।

वेदों में भी यह स्पष्ट किया गया है कि जो व्यक्ति नर, गाय, पशु या अन्य किसी जानवर का मांस खाता है, उससे बड़ा पापी कोई नहीं हो सकता। यजुर्वेद के अनुसार, मनुष्य को संसार के सभी जीवों की आत्मा को अपनी आत्मा के समान समझना चाहिए।

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हालांकि, पौराणिक कथाओं में ऐसी कहानियां भी मिलती हैं जहाँ भक्तों ने भगवान को मांस अर्पित किया और उनकी भक्ति के कारण उन्हें ऊँचा स्थान प्राप्त हुआ। इससे यह संकेत मिलता है कि पूजा में भक्ति और आत्मा की शुद्धता सबसे महत्वपूर्ण होती है, चाहे व्यक्ति शाकाहारी हो या मांसाहारी।

इस प्रकार, जबकि पुराणों और वेदों में मांसाहार की आलोचना की गई है और सात्विक भोजन की सलाह दी गई है, पूजा की स्वीकृति में भक्ति और आत्मा की शुद्धता की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।

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