Durga Puja 2025
Durga Puja 2025: हिंदू धर्म में जितना महत्व शारदीय नवरात्रि का होता है और उतना ही महत्व इस दौरान मनाए जाने वाले दुर्गा पूजा के त्योहार का होता है. इस पावन पर्व को पूरे देश में बेहद धूम धाम से मनाया जाता है, जगह-जगह पंडाल सजाए जाते है और दुर्गा माता की मूर्ति को विराजमान किया जाता है। दुर्गा पूजा का त्योहार हर साल आश्विन मास की पंचमी तिथि को मनाया जाता हैं और इस साल यह त्योहार 27 सितंबर को मनाया जाएगा और दशमी तिथि यानी 2 अक्टूबर के दिन सिंदूर खेला और दुर्गा जी की प्रतिमा-विसर्जन के साथ इसका समाप्त होगा
पांच दिवसीय इस पर्व की भव्यता पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, त्रिपुरा, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश में खूब देखने को मिलती हैं. दुर्गा-पूजा के दौरान खूबसूरत पंडाल, ढाक की थाप, एवं धुनुची नृत्य पर मां दुर्गा की आरती इसकी धूम कई गुना बढ़ा देती है. दुर्गा पूजा में इन पांचों तिथियों का बेहद महत्व होता है, तो चलिए जानते हैं यहां…
बिल्व निमंत्रणः बिल्व निमंत्रण दुर्गा पूजा का पहला और बेहद महत्वपूर्ण दिन होता है, इस दिन देवी दुर्गा को बिल्व वृक्ष पर आमंत्रित किया जाता है, जो देवी को धरती पर बुलाने का न्योता होता है. इस रसम के बाद ही दुर्गा पूजा के समारोह की शुरूआत मानी जाती है. बिल्व निमंत्रण का अनुष्ठान माँ दुर्गा के प्रति भक्तों की श्रद्धा को दर्शाता है,
षष्ठी पूजाः षष्ठी तिथि के दिन मां दुर्गा की प्रतिमा का अनावरण किया जाता है और उनका स्वागत किया जाता है. इस दिनपश्चात नवपत्रिका स्नान होता है, जिसमें देवी दुर्गा के स्वरूपों के प्रतीक में नौ पौधों को स्नान कराया जाता है और उन्हें मां दुर्गा की प्रतिमा के पास रखा जाता है.
सप्तमी पूजाः दुर्गा पूजा की सप्तमी तिथि के दिन सुबह-स्नान ध्यान कर के नये वस्त्र पहनकर माँ कालरात्रि की पूजा की जाती है. पूजा में माँ की प्रतिमा को गंगाजल से स्नान कराया जाता है, उन्हें लाल वस्त्र, गुड़हल या गुलाब का फूल, रोली, अक्षत, और फल-मिष्ठान अर्पित किए जाते हैं और दीपक जलाकर आरती करी जाती है. इसके साथ ही पूजा में मां दुर्गा चालीसा या सप्तशती का पाठ भी किया जाता है, इसके बाद माँ कालरात्रि को गुड़ का भोग लगाया जाता है. इसके अलावा सप्तमी पूजा में माँ कालरात्रि के मंत्र ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै’ का जाप करना और आखिर में गुड़ दान करना बेहद शुभ माना जाता है.
अष्टमी पूजाः दुर्गा पूजा के दौरान अष्टमी तिथि का बेहद महत्व होता है, इसमें मां दुर्गा को मंत्रोच्चारण के साथ पुष्पांजलि अर्पित की जाती है और साथ ही 1 से 16 वर्ष की कन्याओं को देवी के रूप में पूजा जाता है, इसके बाद संधि पूजा की जाती है. कहा जाता है कि अष्टमी तिथि के दिन ही मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। संध्या काल के समय इस दिन धनुची नृत्य एवं अन्य आध्यात्मिक उत्सव आयोजित किए जाते हैं. इसके अलावा दुर्गा पूजा की अष्टमी तिथि के दिन मां दुर्गा को 108 कमल और 108 दीपक अर्पित करना बेहद शुभ माना जाता है.
महानवमी पूजाः दुर्गा पूजा की महानवमी के दिन षोडशोपचार विधि से माता की पूजा करी जाती है और इस दिन देवी की प्रतिमा का महा स्नान और श्रृंगार भी होता है. महानवमी के दिन भक्त चंडी पाठ और धनुची नृत्य भी करते हैं, जो मां दुर्गा को शक्ति प्रदान करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा, देवी दुर्गा को खुश करने के लिए महानवमी के दिन कई जगहों पर चंडी यज्ञ भी किया जाता है और संधि पूजा होती है, जिसमें 108 दीपक जलाने की परंपरा है. इस दिन कुछ स्थानों पर कन्या पूजन की भी परंपरा है.
दुर्गा पूजा की दशमी तिथिः दुर्गा पूजा की दशमी तिथि के दिन मां दुर्गा की महाआरती की जाती है, इस आरती के दौरान विवाहित महिलाएं पान के पत्तो से या डंठल की मदद से मां दुर्गा के गालों पर सिंदूर लगाती हैं और एक दूसरे को भी सिंदूर लगाकर पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. दुर्गा पूजा की दशमी तिथि के दिन मां दुर्गा के चरणों के सामने एक शीशा रखा जाता है और उसमें चरणों को देखकर घर में सुख-समृद्धि की कामना की जाती है और भक्त ‘आसछे बोछोर आबार होबे’ (अगले साल फिर मिलेंगे) के नारे लगाकर देवी को विदा करते हैं और मां देवी की प्रतिमा का विसर्जन करते हैं.
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