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पांडव-कौरव नहीं…ये है Mahabharat का असली पापी, छुपकर चली ऐसी चाल…भगवान कृष्ण भी नहीं पाए रोक?
India News (इंडिया न्यूज़), Mahabharat Facts: महाभारत हिंदू धर्म का पवित्र ग्रंथ ही नहीं बल्कि एक महाकाव्य भी है। महाभारत में कौरवों की हार हुई और पांडवों ने हस्तिनापुर पर राज किया। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मृत्यु के बाद दुर्योधन को स्वर्ग मिला और पांडवों को नर्क जाना पड़ा। हस्तिनापुर पर राज करने के बाद पांडव हिमालय चले गए। रास्ते में द्रौपदी समेत चारों भाइयों की मौत हो गई। वहीं, युधिष्ठिर एक कुत्ते के साथ स्वर्ग गए। स्वर्ग पहुंचकर उन्होंने अपने भाई दुर्योधन को देखा। जबकि, उनके भाई पांडव नर्क में थे। दुर्योधन को स्वर्ग में देखकर भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? जिज्ञासा को शांत करते हुए धर्मराज ने बताया कि दुर्योधन का जीवन भर लक्ष्य बिल्कुल साफ था। उसने उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया।
धर्मराज ने बताया कि दुर्योधन को बचपन से ही उचित परवरिश नहीं मिली। इस कारण वह सत्य का साथ नहीं दे पाया। दुर्योधन का अपने उद्देश्य पर अडिग रहना, दृढ़ निश्चयी होना उसकी अच्छाई को प्रमाणित करता है। युधिष्ठिर के अनुसार अपने कर्तव्य के प्रति समर्पित रहना मनुष्य का बहुत बड़ा गुण है। इसी गुण के कारण उसकी आत्मा को कुछ समय के लिए स्वर्ग के सुख भोगने का अवसर मिला।
युधिष्ठिर अपने भाइयों को खोजते हुए नरक में पहुंच गए। यह देखकर युधिष्ठिर ने पूछा, हे देवगण, यह क्या था? तब देवताओं ने उन्हें बताया कि आपने अश्वत्थामा के वध के बारे में झूठ फैलाया था, इसलिए आपको कुछ समय के लिए नरक में रखा गया। देवताओं ने कहा कि अब आपको अपने भाइयों के साथ स्वर्ग के लिए प्रस्थान करना चाहिए। इसके बाद युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ स्वर्ग चले गए। जहां उनकी मुलाकात दुर्योधन से हुई और सभी भाइयों ने एक-दूसरे को प्रेमपूर्वक गले लगाया।
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