India News (इंडिया न्यूज़), Facts Of Kashi: भोलेनाथ की नगरी काशी दुनिया का सबसे पुराना शहर होने का साथ-साथ अपने घाटों और ज्योतिर्लींग की खुबसूरती के लिए भी जाना जाता है। हम इस शहर को बनारस कहें या वाराणसी पर आज भी बुजुर्गों की जुबानी सुनेंगे तो भोलेनाथ की नगरी काशी ही सुनेंगे, जिसका शाब्दिक अर्थ है चमकना। सबसे प्राचीन सप्तपुरियों में से एक होने के कारण यह आत्मा को मोक्ष प्रदान करती है। यहां की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह गंगा के तट पर स्थित है।
काशी के कण-कण में भगवान शिव वास करते हैं। कई आपदाएं और प्रलय आए लेकिन इसका विनाश नहीं हुआ। इस पवित्र नगरी की प्राचीनता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब यूनान के एथेंस शहर की स्थापना का विचार भी किसी के मन में नहीं आया था, उस समय भी काशी नगरी का अस्तित्व था। यहां तक कि रोम और मिस्र का भी अस्तित्व नहीं था, तब भी काशी का अस्तित्व था। काशी को हर दुख, कष्ट, पाप और रोग का नाश करने वाली और सभी प्रकार के कल्याण की खान कहा गया है।
अगर हम काशी नगर के निर्माण को ध्यान से देखें तो पाते हैं कि इस शहर को एक मशीन के रूप में बनाया गया है। इसका आकार, रूप और वास्तुकला बिल्कुल मशीन की तरह ही दिखता है। यहाँ मशीन का मतलब है एक ऐसी मशीन जो एक निश्चित पैटर्न पर काम करती है। अगर हम ध्यान से देखें तो पाते हैं कि धरती खुद एक मशीन की तरह काम करती है। मशीन सिस्टम में त्रिकोण सबसे जरूरी मशीन है। मशीनों का निर्माण काम को आसान बनाने के लिए किया गया है। इससे पहले कभी भी किसी शहर को मशीन के रूप में नहीं बनाया गया। इसलिए इसे ‘असाधारण मशीन’ कहा जाता है। इस मशीन का संचालन एक विशाल मानव शरीर की तरह स्वचालित है, इसे एक्टीव करने की आवश्यकता नहीं है।
पुराणों के अनुसार काशी भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है। चूँकि यह भगवान शिव के त्रिशूल पर टिकी है, इसलिए यह ज़मीन पर नहीं बल्कि उसके ऊपर है। यहां के कण-कण में शिव विद्यमान हैं। जीवन यहीं से शुरू होता है और यहीं खत्म होता है। कहा जाता है कि काशी नगरी में मरने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है, इसलिए यहां मरना शुभ माना जाता है, यहां की चिता की राख आभूषण की तरह है। काशी में साधु-संतों का डेरा रहता है। यहां बड़ी संख्या में अघोरियां रहती हैं।
हिंदू धर्म में काशी को देवभूमि माना जाता है। इसका नाम वाराणसी इसलिए पड़ा क्योंकि यह वरुणा और असी दो नदियों के बीच बसा है। इसे पवित्र स्थलों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ अपनी पत्नी माता पार्वती के साथ काशी आए थे। एक कथा के अनुसार जब भगवान शंकर पार्वती से विवाह कर कैलाश पर्वत पर रहने लगे तो पार्वती जी इससे नाराज होकर वहीं रहने लगीं। उन्होंने भगवान शिव से अपनी इच्छा जाहिर की। मां पार्वती की यह बात सुनकर भोलेनाथ आश्चर्यचकित हो गए और कैलाश छोड़कर चले गए। कैलाश पर्वत छोड़कर भगवान शिव देवी पार्वती के साथ काशी नगरी में रहने लगे। काशी नगरी में आकर भगवान शिव ने यहां ज्योतिर्लिंग की स्थापना की।
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