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India News (इंडिया न्यूज़),Gautam Buddha: भगवान गौतम बुद्ध को पूरे विश्व में शांति का प्रतिक माना जाता है। उन्होंने अपना राजपाठ और परिवार त्यागकर मनुष्य जीवन को शांति का मार्ग दिखाया और एक नए धर्म कि स्थापता की। पूरे विश्व में गौतम बुद्ध के करोड़ों अनुयायी हैं, जो अहिंसा का मार्ग अपनाकर उनके विचारों का अनुसरण करते हैे और एक सफल जीवन जीते हैं। बुद्ध का मानना था कि मनुष्य जीवन का वास्तविक उद्देश्य ज्ञान के साथ शांति को प्राप्त करना है। बुद्ध ने अपने भौतिक शरीर और विचारों के माध्यम से सभी को यहीं संकेत दिएं हैं।
अगर आप ध्यान करते है तो आप अवश्य ही इस मुद्रा से परिचित होंगे। दरअसल योगी और ध्यानि अक्सार ध्यान के समय अपने हाथों से ध्यान मुद्र बनाते है। साधक के द्वारा लंबे समय के लिए ध्यान में बैठें रहने के लिए ये मुद्रा बनाई जाती है। इस मुद्रा में गौतम बुद्ध ने आपने दोनों हाथ आराम की आवस्था पर अपनी गोद में रखे हैं। दाएं हाथ को बाएं हाथ के ऊपर उंगलियों को फैला कर रखा है। यह मुद्रा एकाग्रता और व्यक्ति की विवेकशील होने का प्रतिक हैं।
ज्ञान मुद्रा ध्यान और योग की सबसे प्रचलित मुद्रा मानी जाती है। ज्ञान मुद्रा करने के लिए अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी ऊंगली के ऊपरी भाग को मिलाया जाता है। इसके अलावा बाकी बची तीन उंगलियों को एक दुरे से मिलाकर सीधा रखा जाता हैं। बुद्ध की इस मुद्रा को शिक्षाओं और आध्यात्मिक ज्ञान के प्रचार का प्रतीक माना जाता है।
बुद्ध की अभय मुद्रा निर्भयता के साथ एकाग्रता, शांति और सुरक्षा का प्रतिक है। इस मुद्रा के लिए दायें हाथ को अपने कंधे तक उठाकर हाथ की बांह को मोड़ लिया जाता है, इसके साथ ही सभी अंगुलियों को ऊपर की तरफ उठाकर हथेली को बाहर की और रखा जाता है।
अंजलि मुद्रा एक साधारण मुद्रा है। दरअसल इसे नमस्कार मु्द्रा भी कहा जाता है। इस मुद्रा को करने के लिए आपको लगभग नमस्कार करते हुए अंगूठे समेत दोनों हाथों की अंगुलियों को जोड़कर रखना होता है। इस मुद्रा को प्रथाना, आराधना और अभिवादन के लिए बनाते है।
वितर्क मुद्रा लगभग ज्ञान मुद्रा की तरह ही होती है। वितर्क मुद्रा में आपको अंगूठे के ऊपरी भाग और तर्जनी को मोड़ते हुए थोड़ा दूर रखना होता है, बाकि इसके अलावा सभी उंगलियों को सीधा रखा जाता है। गौतम बुद्ध की ये मुद्रा शुक्षाओं और शांति का प्रतीक है।
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