India News (इंडिया न्यूज),Mahabhart Story: तमिलनाडु में भाषा विवाद चल रहा है तो वहीं संस्कृति और सभ्यता को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं। तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ मंत्री दुरईमुरुगन ने उत्तर भारतीय संस्कृति पर विवादित टिप्पणी की है। महाभारत का हवाला देते हुए उन्होंने उत्तर भारत की संस्कृति को बहुविवाह और बहुशासन से जोड़ दिया है। दुरईमुरुगन ने कहा कि उत्तर भारत में एक महिला से 5 या 10 पुरुष शादी कर सकते हैं, यह उनका कानून है, साथ ही उन्होंने कहा कि हमारे यहां एक पुरुष और एक महिला का रिश्ता है, लेकिन वहां ऐसा नहीं है। डीएमके मंत्री ने कहा कि अगर कोई हमें (तमिल लोगों को) असभ्य कहेगा तो उसकी जीभ काट दी जाएगी। दुरईमुरुगन का यह बयान एक कार्यक्रम के दौरान आया, जहां उन्होंने महाभारत के पात्रों का जिक्र करते हुए उत्तर भारतीयों पर कटाक्ष किया।
महाभारत का उदाहरण देते हुए मंत्री दुरईमुरुगन ने जिस तरह की टिप्पणी की है, वह तर्कहीन है। पांचों पांडवों के साथ द्रौपदी का विवाह वासना के कारण नहीं हुआ था, न ही द्रौपदी पहली स्त्री थी जिसका विवाह अनेक पुरुषों से हुआ था, बल्कि महाभारत युद्ध का एक कारण यह भी था कि द्रौपदी को अनेक पुरुषों की पत्नी (वेश्या) कहकर उसका अपमान किया गया था।
Mahabhart Story: द्रौपदी ही नहीं, महाभारत में पहले भी दो महिलाओं ने किए थे अनेक पुरुषों से विवाह
महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास द्वारा रचित महाकाव्य ‘महाभारत’ में विस्तार से उल्लेख है कि द्रौपदी का विवाह क्यों और किन परिस्थितियों में पांचों पांडवों से हुआ था, दरअसल, इसी प्रसंग में यह भी उल्लेख है कि उनसे पहले किन अन्य स्त्रियों का विवाह एक से अधिक पुरुषों से हुआ था।
महाभारत में वर्णित प्रसंग के अनुसार, जब कुंती अनजाने में भीम और अर्जुन से कहती है कि, ‘जो भी भिक्षा लेकर आए हो, उसे पांचों भाइयों में बांट लो’, तो यह सुनकर पांचों पांडव असमंजस में पड़ जाते हैं। जब वे इस बारे में सोच ही रहे होते हैं, तभी द्रुपद द्वारा भेजे गए गुप्तचर वहां आ जाते हैं और पूरी स्थिति जानने के बाद द्रुपद को इसकी सूचना देते हैं। तब द्रुपद यह जानकर बहुत प्रसन्न होते हैं कि स्वयंवर का विजेता पांडुपुत्र अर्जुन है।
इसके बाद द्रुपद ने एक पुरोहित को भेजकर कुंती सहित सभी पांडवों को महल में बुलवाया और उनका हर प्रकार से स्वागत किया तथा उनसे निवेदन किया कि आप सव्यसाची अर्जुन से विवाह करें तथा मेरी पुत्री को अपनी वधू के रूप में स्वीकार करें। इस प्रकार राजा द्रुपद की सारी बातें सुनकर पांडवों में शांति छा गई, तब इस मौन को तोड़ते हुए स्वयं युधिष्ठिर ने राजा से कहा- महाराज, मुझे भी विवाह करना होगा। यह सुनकर द्रुपद थोड़ा क्रोधित और दुखी हुए और फिर बातचीत यहीं रुक गई। उन्होंने कहा कि यह तर्कसंगत नहीं है कि एक स्त्री कई पुरुषों से विवाह करे, यद्यपि राजाओं द्वारा कई स्त्रियों से विवाह करने में कोई दोष नहीं है। इसके साथ ही द्रुपद ने कहा कि देवी कुंती, आप, पुत्र युधिष्ठिर और मेरे पुत्र धृष्टद्युम्न इस विषय में आपस में विचार-विमर्श करें और फिर जो उचित हो, वह कहें।
तब युधिष्ठिर ने इस विषय पर प्रचेतस और सप्तर्षियों की कथा सुनाई। जिसमें उन्होंने दो वैदिक महिलाओं के नामों का उल्लेख किया था, जिनमें से एक का विवाह 10 पुरुषों से और दूसरे का सात ऋषियों से हुआ था। ये सभी विवाह धार्मिक थे और स्वयं परमपिता ब्रह्मा ने इसकी अनुमति दी थी।
न मे वाघनृतम् ब्रूते नाधर्मे धीयते मनः।
वर्तते हृदयं मेद्यं नैशोधर्मः कथंचन। 13॥
श्रुयते हि पुराणेऽपि जटिल नाम गौतमी।
ऋषिनामयशः कर्तृ सति धर्मभ्रतां वरः। 14॥
इसलिये मुनिजा वापि तपोभिर्भावितात्मनः।
संगतबुद्धश पत्नी नृपते तत्समहिता॥ 15॥
दोनों स्त्रियों की कहानी अलग-अलग समय की है। सृष्टि की रचना के बाद ब्रह्माजी ने इसे चलाने के लिए अपने 10 मानस पुत्रों को जन्म दिया, जिन्हें प्रचेतस कहा जाता है। उन्हें सृष्टि चलाने की जिम्मेदारी दी गई। चंद्रमा ने इन सभी प्रचेतस का विवाह वृक्ष कन्या और यक्ष की बहन (वार्क्षी) मारिषा से करवाया। प्रचेतस से विवाह होने के कारण इन्हें प्रचेती और प्रचीति भी कहा जाता है। प्रचेतस और चंद्रमा के आधे-आधे तेज से मारिषा ने दक्ष प्रजापति को जन्म दिया। दक्ष प्रजापति ने सृष्टि को चलाने का काम आगे बढ़ाया और यौन सृष्टि का विकास हुआ। उन्होंने अपनी 10 पुत्रियों का विवाह धर्म से, 27 पुत्रियों का विवाह चंद्रमा से और अपनी पुत्री सती का विवाह भगवान शिव से करवाया।
इसी तरह गौतमी कुल में जटिला नाम की कन्या का जन्म हुआ। उसका विवाह 7 ऋषियों से हुआ। वेदों में गौतम को मंत्रों को देखने वाले ऋषि के रूप में जाना जाता है। इसके अलावा गौतम को न्याय सूत्र का रचयिता भी माना जाता है। इनके वंशज श्वेतकेतु थे जिन्होंने विवाह प्रथा की शुरुआत की थी। इससे पहले कोई भी पुरुष या स्त्री किसी भी पुरुष या स्त्री से संबंध बना सकता था।
जब हम विवाह की बात करते हैं तो हमें श्वेतकेतु की कथा भी जाननी चाहिए। गौतमी वंश के श्वेतकेतु जटिला के पुत्र थे। एक दिन श्वेतकेतु अपनी मां के साथ बैठे थे। इसी दौरान एक ब्राह्मण आया और उनकी मां को अपने साथ चलने के लिए कहा। श्वेतकेतु को यह परंपरा पसंद नहीं थी। दरअसल, उस समय तक विवाह और स्त्री-पुरुष के बीच संबंधों को लेकर कोई नियम नहीं थे। ऐसे में श्वेतकेतु ने ब्रह्मदेव से इस बारे में बात की और फिर विवाह संबंध जैसे नियम स्थापित किए। इस कथा का उल्लेख महाभारत के आदिपर्व में भी मिलता है।
श्वेतकेतु ने पुरुषों के लिए एक पत्नी व्रत और स्त्रियों के लिए प्रतिव्रत का नियम बनाया और व्यभिचार पर रोक लगाई। उन्होंने यह नियम प्रचारित किया कि जो स्त्री अपने पति को छोड़कर दूसरे पुरुष के पास जाती है और जो पुरुष अपनी पत्नी को छोड़कर दूसरी स्त्री के साथ संबंध बनाता है, दोनों को भ्रूण हत्या का दोषी माना जाना चाहिए। श्वेतकेतु को वैदिक काल का समाज सुधारक भी माना जाता है। श्वेतकेतु एक दार्शनिक आचार्य थे, जिनका उल्लेख शतपथ ब्राह्मण, छांदोग्य, बृहदारण्यक आदि उपनिषदों में मिलता है। उनकी कथा उपनिषदों में वर्णित है।
Get Current Updates on, India News, India News sports, India News Health along with India News Entertainment, and Headlines from India and around the world.