होम / धर्म / इस स्त्री के चक्कर में श्री कृष्ण से खफा हो गया था उन्ही का भाई, कभी किसी को नहीं बताता था अपने रिश्ते की सच्चाई?

इस स्त्री के चक्कर में श्री कृष्ण से खफा हो गया था उन्ही का भाई, कभी किसी को नहीं बताता था अपने रिश्ते की सच्चाई?

BY: Prachi Jain • LAST UPDATED : September 22, 2024, 8:18 pm IST
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इस स्त्री के चक्कर में श्री कृष्ण से खफा हो गया था उन्ही का भाई, कभी किसी को नहीं बताता था अपने रिश्ते की सच्चाई?

Shree Krishna’s Brother Shishupal: शिशुपाल का जन्म ही एक विशेष घटना के साथ हुआ था। उसके जन्म के समय एक भविष्यवाणी की गई थी कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों होगा।

India News (इंडिया न्यूज), Shree Krishna’s Brother Shishupal: शिशुपाल और श्रीकृष्ण की कथा महाभारत के महत्वपूर्ण और रोचक प्रसंगों में से एक है, जो द्वापर युग में घटी थी। शिशुपाल, जो चेदि राज्य का राजा था, भगवान श्रीकृष्ण के प्रति हमेशा द्वेषभाव रखता था। इस द्वेष की प्रमुख वजह रुक्मिणी से जुड़ी थी, जिसे शिशुपाल विवाह करना चाहता था, लेकिन रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को ही अपना जीवनसाथी चुना। इस प्रेम और विवाह ने शिशुपाल के मन में श्रीकृष्ण के प्रति नफरत को और बढ़ा दिया।

रुक्मिणी का प्रेम और विवाह

रुक्मिणी विदर्भ राज्य की राजकुमारी थीं, जो श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं और उन्हीं से विवाह करना चाहती थीं। लेकिन रुक्मिणी के भाई रुक्मी को यह रिश्ता मंजूर नहीं था। वह चाहता था कि रुक्मिणी का विवाह चेदि नरेश शिशुपाल से हो। रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पत्र लिखकर उनसे विवाह की विनती की। श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का आग्रह स्वीकार किया और उसे उसके महल से लेकर भाग गए। इस घटना ने शिशुपाल को अपमानित महसूस कराया, और तभी से वह श्रीकृष्ण को अपना शत्रु मानने लगा।

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शिशुपाल का द्वेष

शिशुपाल का जन्म ही एक विशेष घटना के साथ हुआ था। उसके जन्म के समय एक भविष्यवाणी की गई थी कि उसका वध श्रीकृष्ण के हाथों होगा। हालांकि, श्रीकृष्ण ने अपनी बुआ (शिशुपाल की माता) से वचन दिया था कि वे शिशुपाल के 100 अपराधों को माफ करेंगे। लेकिन शिशुपाल की नफरत इतनी अधिक थी कि वह बार-बार भगवान श्रीकृष्ण का अपमान करता रहा।

राजसूय यज्ञ का प्रसंग

महाभारत के अनुसार, जब युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का युवराज घोषित किया गया, तो उन्होंने एक भव्य राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इस यज्ञ में सभी राजाओं, संबंधियों और मित्रों को आमंत्रित किया गया, जिनमें शिशुपाल और श्रीकृष्ण भी शामिल थे। युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण का विशेष सम्मान करते हुए उन्हें अग्रपूजा का आदर दिया, यानी सभी अतिथियों में सबसे पहले उनका सम्मान किया गया।

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यह बात शिशुपाल को बिलकुल बर्दाश्त नहीं हुई। वह अपने क्रोध को नियंत्रित नहीं कर सका और सभी के सामने श्रीकृष्ण का अपमान करने लगा। उसने श्रीकृष्ण की निंदा की और उनके निर्णय का विरोध किया। शिशुपाल ने सभा में खुलेआम श्रीकृष्ण का अपमान करते हुए 100 से अधिक बार उन्हें अपशब्द कहे।

श्रीकृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध

शिशुपाल के इस अपमान के बावजूद श्रीकृष्ण शांत बने रहे क्योंकि उन्होंने अपनी बुआ को 100 अपराध माफ करने का वचन दिया था। लेकिन जैसे ही शिशुपाल ने 100 अपराधों की सीमा पार की, श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र उठाया और उसी क्षण शिशुपाल का वध कर दिया। यह घटना शिशुपाल के अहंकार और क्रोध के अंत का प्रतीक थी, जो अंततः उसके विनाश का कारण बना।

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निष्कर्ष

शिशुपाल और श्रीकृष्ण की इस कथा से हमें यह संदेश मिलता है कि क्रोध और अहंकार इंसान को विनाश की ओर ले जाते हैं। शिशुपाल ने अपने नफरत और अहंकार के चलते भगवान श्रीकृष्ण के प्रति द्वेषभाव पाला, जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बना। श्रीकृष्ण ने अपने धैर्य और शक्ति से न केवल शिशुपाल का वध किया, बल्कि यह भी सिद्ध किया कि धर्म और सच्चाई की हमेशा जीत होती है।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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