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जब गणेश जी ने चकनाचूर कर दिया था धन के राजा कुबेर का घमंड, इतनी संपत्ति के बाद भी गिर पड़े थे शिव जी के पैरों में!

Ganesh ji broke Kuber's pride: गणेश जी ने कुबेर को कहा कि धन कभी भी भूख को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकता, खासकर जब वह अहंकार के साथ दिया जाए।

BY: Prachi Jain • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज़), Ganesh ji broke Kuber’s pride: एक समय की बात है, कुबेर, जो धन और संपत्ति के देवता थे, ने अपनी विशाल संपत्ति और ऐश्वर्य का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन किया। इस भोज में उन्होंने तीनों लोकों के सभी देवताओं, including भगवान शिव, को आमंत्रित किया। कुबेर का अहंकार उनकी समृद्धि से बढ़ चुका था, और वह चाहते थे कि सब उनकी धन-धाकड़ की शोभा देखें।

भगवान शिव का निवारण

भगवान शिव ने कुबेर के मन का अहंकार भांप लिया और सोचा कि वह इस अवसर पर उनके अहंकार को एक सबक सिखाएंगे। शिव जी ने कुबेर से कहा कि वह बूढ़ा हो चुका है और कहीं बाहर नहीं जा सकता। हालांकि, जब कुबेर ने बार-बार अनुरोध किया, तो शिव जी ने कहा कि वह स्वयं नहीं आ सकते, लेकिन अपने छोटे बेटे गणेश जी को भोज में भेज सकते हैं।

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Ganesh ji broke Kuber’s pride: गणेश जी ने कुबेर को कहा कि धन कभी भी भूख को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकता, खासकर जब वह अहंकार के साथ दिया जाए।

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गणेश जी का आगमन

गणेश जी, जो कि बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता हैं, भोज में पहुंचे और उनकी उपस्थिति ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। गणेश जी ने आते ही कहा कि उन्हें बहुत तेज भूख लगी है। कुबेर ने उनके लिए सोने की थाली में भोजन परोसा, लेकिन गणेश जी ने उसे क्षण भर में ही खा लिया। भोजन बार-बार परोसा गया, लेकिन गणेश जी की भूख का अंत नहीं हो रहा था।

गणेश जी ने न केवल भोज का सारा भोजन समाप्त कर दिया, बल्कि रसोईघर में रखा कच्चा सामान, महल की प्लेटें, कटलरी, मेज, कुर्सियाँ और अन्य विलासिता की वस्तुएं भी खा लीं। कुबेर घबरा गए और चिंतित हो गए कि कहीं गणेश जी उनकी सारी संपत्ति ही न खा जाएँ।

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अहंकार और विनम्रता का सबक

जब गणेश जी की भूख शांत नहीं हुई, तो उन्होंने कुबेर को क्रोधित होकर कहा कि जब तुम्हारे पास मुझे खिलाने के लिए कुछ था ही नहीं, तो तुमने मुझे न्योता क्यों दिया? कुबेर ने गणेश जी के क्रोध को देखकर शर्मिंदा महसूस किया और समझ गया कि उनका अहंकार उन्हें कहीं का नहीं छोड़ रहा था।

कुबेर भगवान शिव के पास गए और हाथ जोड़कर माफी मांगी, बोले कि वह समझ चुके हैं कि उनकी दौलत और अहंकार कुछ भी नहीं है। उन्होंने भगवान शिव से विनती की कि कृपया गणेश जी की भूख शांत करने में उनकी मदद करें।

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भगवान शिव की सहायता

भगवान शिव ने कुबेर को मुट्ठी भर चावल दिए और कहा कि यह चावल गणेश जी को खिला दो, उनकी भूख समाप्त हो जाएगी। कुबेर ने ऐसा ही किया और गणेश जी ने उस चावल को खाते ही अपनी भूख शांत कर ली।

उपदेश

गणेश जी ने कुबेर को कहा कि धन कभी भी भूख को पूरी तरह संतुष्ट नहीं कर सकता, खासकर जब वह अहंकार के साथ दिया जाए। अगर आपने भोजन को प्यार और विनम्रता से परोसा होता, तो आपको इस प्रकार की शर्मिंदगी का सामना नहीं करना पड़ता।

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इस पौराणिक कथा के माध्यम से यह सिखाया गया है कि अहंकार और धन की लिप्सा से अधिक महत्वपूर्ण है विनम्रता और सच्ची सेवा। वास्तविक समृद्धि तब मिलती है जब हम अपने दिल से और पूरी विनम्रता के साथ सेवा और सहयोग करें।

Disclaimer: इस आलेख में दी गई जानकारियों का हम यह दावा नहीं करते कि ये जानकारी पूर्णतया सत्य एवं सटीक है। पाठकों से अनुरोध है कि इस लेख को अंतिम सत्य अथवा दावा न मानें एवं अपने विवेक का उपयोग करें। इंडिया न्यूज इसकी सत्यता का दावा नहीं करता है।

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