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India News (इंडिया न्यूज़),Buddhist Monk Cremation, दिल्ली: दुनिया भर में कई धर्म है और सभी धर्मो के विभिन्न रीति रिवाज़ और मान्यताये है। लोग अपने धर्म या संप्रदाय के अनुसार प्राचीनकाल से चलती आरही परम्पराओं और प्रथाओं के अनुरूप शादी-विवाह , ग्रेहपूजन , बाचे का नामांकरण और अन्य प्रथाओं को पूर्ण करते है। इसी प्रकार सभी धर्मो में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया भिन्न होती है जैसे सनातन धर्म के अनुसार शव को शमशान घाट ले जाकर जलाया जाता है ,इस्लाम धर्म को मानने वालों के शव को कब्र में दफनाया जाता है, क्रिश्चिन में भी शव दफ़नाया जाता है, मगर ताबूत के अंदर।आपको जानकार हैरानी होगी कि बौद्ध धर्म में ना तो शव को दफनाया जाता है ना जलाया जाता है।
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बौद्ध धर्म की मान्यताओं और परम्पराओं के अनुसार मृतक के शव को काफी ऊंची जगह पर ले जाया जाता है।बौद्ध धर्म के लोगों का कहना है कि उनके यहां अंतिम संस्कार की प्रक्रिया आकाश में पूरी की जाती है। शव के पहुंचने से पहले ही बौद्ध भिक्षु या लामा उस जगह पर पहुँच जाते है। तिब्बत में अनतिम संस्कार की इस प्रक्रिया के लिए पहले से ही स्थान मौजूद है। उस क्षेत्र की परम्पराओं के अनुसार पूजा या क्रिया की जाती है। इन सब के बाद एक व्यक्ति आता है जिसे ‘रोग्यापस’ कहते हैं। ‘रोग्यापस’उस शव के छोटे छोटे टुकड़े कर देता है।
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शव के टुकड़ों के लिए जौ के आटे का एक घोल त्यार किया जाता है और टुकड़ों को घोल में डुबाया जाता है। इन जौ के आटे के घोल में लिपटे शव के टुकड़ों को गिद्धों-चीलों का भोजन बनने के लिए डाल दिया जाता है। इसके बाद बची हडियो का चूरा बना कर फिर से जौ के आटे के घोल में मिलाया जाता है और पक्षियों के खाने के लिए छोड़ दिया जाता है।
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शव की अंतिम क्रिया की इस कठिन प्रक्रिया के पीछे रीति रिवाज़ और मान्यताओं के साथ एक वैज्ञानिक कारण भी है। तिब्बत में बौद्ध धर्म के सबसे अधिक अनुयायी है और तिब्बत एक पहाड़ी इलाका है। इसी वजह से यहां पर शव को जलाने के लिए लकड़ी का प्रबंध करना बेहद कठिन है। इसके अलावा पहाड़ पर ज़मीन पथरीली होती है तो गढ़ा खोद कर दफ़नाना भी आसान नहीं है। इन सब व्यवहारिक कारणों के अलावा बौद्ध धर्म में मृतक के शरीर को खाली बर्तन माना जाता है और टुकड़ों में काटकर पक्षियों को खिलाने से उनका भला हो जाता है। इस प्रक्रिया को बौद्ध धर्म में ‘आत्म बलिदान’कहा जाता है।
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