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JYOTIBA PHULE JAYANTI 2023: ज्योतिबा फुले ने कैसे खोला था लड़कियों के लिए पहला स्कूल,किस वजह से 21 साल में पास की थी 7वीं कक्षा

Mohini • LAST UPDATED : April 11, 2023, 12:12 pm IST

JYOTIBA PHULE JAYANTI 2023: महात्मा ज्योतिबा गोविंदराव फुले की जयंती हर साल 11 अप्रैल को मनाई जाती है। आज 19वीं सदी के महान भारतीय विचारक और समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती है। देश में सामाजिक क्रांति के अग्रदूत महात्मा ज्योतिबा फुले ने गरीबों, महिलाओं, दलितों एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान तथा सामाजिक जड़ताओं व कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका पूरा नाम जोतिराव गोविंदराव फुले था। उन्हें ज्योतिबा फुले या महात्मा फुले के नाम से जाना जाता था। 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा में एक माली परिवार में उनका जन्म हुआ था। ज्योतिबा का परिवार पुणे आकर फूलों का व्यवसाय करने लगा था, इसलिए उनके सरनेम में ‘फुले’ का प्रयोग किया जाने लगा। ज्योतिबा फुले का जीवन और उनके विचार व महान कार्य आज भी लोगों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए हैं।

21 वर्ष की उम्र में पास की थी 7वीं की परीक्षा

ज्योतिबा फुले जब एक वर्ष के ही थे तब उनकी माता का देहांत हो गया था। उनका पालन-पोषण एक बायी की देखरेख में हुआ। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा मराठी में गृहण की थी। घर की स्थितियों के चलते बीच में उनकी पढ़ाई छूट गई थी। ज्योतिबा ने जब स्कूल की पढ़ाई शुरू की तो ये बात उनके कुछ रिश्तेदारों और परिचितों को अच्छी नहीं लगती थी। इस बात को सुनकर उनके पिता गोविंद राम ने उनकी स्कूल की पढ़ाई छुड़ा दी थी। हालांकि इसके बाद भी वह घर पर किताबें पढ़ते थे। उनकी तेज बुद्धि लोगों को चकित कर देती थी। बाद में वह परिवार से जबरदस्ती करके फिर स्कूल पढ़ने गए। हालांकि अब तक उनकी उम्र ज्यादा हो चुकी थी इसी कारण उन्होंने 21 वर्ष की उम्र में इंग्लिश मीडियम से सातवीं की पढ़ाई पूरी की।

पत्नी को बनाया था भारत की पहली शिक्षिका

ज्योतिबा फुले का विवाह 1840 में सावित्री बाई के साथ हुआ था। ज्योतिबा फुले समाज में महिलाओं को स्त्री-पुरुष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इसके लिए स्त्रियों को शिक्षित करना बेहद आवश्यक था। वह बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। वह अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं का शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए लड़े। उन्होंने अपनी पत्नी में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी देखकर उन्हें पढ़ाने का मन बनाया और प्रोत्साहित किया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली। उन्होंने साल 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला महिला स्कूल खोला। इस स्कूल में उनकी पत्नी सावित्रीबाई पहली शिक्षिका बनीं। ज्योतिबा फुले के हर काम में उनकी पत्नी पूरा सहयोग करती थीं, इसलिए वह भी एक समाजसेवी कहलाईं।

जाति से होना पड़ा था बाहर

समाज के कुछ लोगों ने उनके इस काम में बाधा भी डाली। उनके परिवार पर दबाव डाला गया। ज्योतिबा और उनकी पत्नी लड़कियों और स्त्रियों के उद्धार के काम में लगे थे, तो साथ अछूतो के उद्धार की मुहिम में भी जुटे थे। ना केवल वह अछूत बच्चों को पढ़ा रहे थे, बल्कि उन्हें अपने घर पर भी रख रहे थे। नतीजा यह हुआ कि उन्हें छुआछूत के कारण जाति से बाहर कर दिया गया और ज्योतिबा फुले को परिवार छोड़ना पड़ा। इससे लड़कियों के लिए शुरू किए गए पढ़ाई-लिखाई के काम में कुछ समय के लिए व्यवधान आया। लेकिन जल्द ही फुले दंपति ने सभी बाधाओं को पार करते हुए लड़कियों के तीन स्कूल और खोल दिए। अपनी पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने देश में कुल 18 स्कूल खोले थे। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। हालांकि महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्हें समाज का विरोध भी झेलना पड़ा।

ज्योतिबा फुले की हत्या की भी हुई थी कोशिश

ज्योतिबा फुले ने कुछ समय तक एक मिशन स्कूल में भी अध्यापक के रूप में काम किया। इससे उनका परिचय पश्चिम के विचारों से हुआ, पर ईसाई धर्म ने उन्हें कभी आकृष्ट नहीं किया। 1853 में उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिलकर अपने मकान में प्रौढ़ों के लिए रात्रि पाठशाला खोली। इन सब कामों से उनकी बढ़ती ख्याति देखकर प्रतिक्रियावादियों ने एक बार दो हत्यारों को उन्हें मारने के लिए भेजा था, पर बाद में वे भी ज्योतिबा की समाजसेवा देखकर उनके शिष्य बन गए थे।

ऐसे जुड़ा था नाम के आगे महात्मा

ज्योतिराव फुले ने दलितों और वंचितों को न्याय दिलाने के लिए सत्यशोधक समाज की स्थापना भी की। ज्योतिराव फुले को ‘ज्योतिबा फुले’ के नाम से भी जाना जाता है। समाज के दबे-कुचले, वंचित और अनुसूचित जाति के तबके लिए उनके उल्लेखनीय कार्यों को देखते हुए 1888 में मुंबई में एक विशाल जनसभा में उस समय के एक प्रख्यात समाजसेवी राव बहादुर विट्ठलराव कृष्णाजी वान्देकर ने उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी थी। तब से उनके नाम के आगे महात्मा जोड़ा जाने लगा। 1890 को 63 साल की उम्र में उनका निधन हुआ था। महात्मा ज्योतिबा फुले की जयंती पर कई स्कूलों व स्थानों पर कार्यक्रम होते हैं और उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की जाती हैं। महात्मा फुले कहना था कि शिक्षा स्त्री और पुरुष दोनों के लिए आवश्यक है। महात्मा फुले के विचार समाज के एक बड़े वर्ग को प्रेरित और आंदोलित करते आए हैं।

ज्योतिबा फुले के कुछ विचार

  • ”स्त्री हो या पुरुष, जन्म से सभी समान होते हैं. उनके साथ किसी प्रकार के भेदभाव का व्यवहार मानवता और नैतिकता के खिलाफ है.”
  • ”धर्म वह है जो समाज के हित और कल्याण के लिए है. जो धर्म समाज के हित में नहीं है, वह धर्म नहीं है.”
  • ”विद्या बिन गई मति, मति बिन गई गति, गति बिन गई नीति, नीति बिन गया वित्त, वित्त बिन चरमराए शूद्र, एक अविद्या ने किए कितने अनर्थ.”
  • ”शिक्षित समाज ही उचित और अनुचित में भेद कर सकता है, समाज में उचित और अनुचित का भेद होना चाहिए.”

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