India News(इंडिया न्यूज़), Naultha Historic Faag Festival : हरियाणा के जिला पानीपत के नौल्था के गांव डाहर का फाग उत्सव, जो डाट होली के नाम से भी जाना जाता है, जिसका इतिहास बहुत पुराना है, डाट होली की इस परंपरा के अनुसार गांव के सभी पुरुष 2 भागों में बंट जाते हैं और आमने सामने से टकराव करते हुए एक दूसरे को क्रॉस करने की कोशिश करते हैं, जो क्रॉस कर जाता है उसी को जीता हुआ मान लिया जाता है। इन दोनों ग्रुप का आपस में टकराव होता है तो इनके ऊपर गांव में ही तैयार किया हुआ रंग बरसाया जाता है।
Naultha Historic Faag Festival
नौल्था में फाग उत्सव में युवाओं में वर्षों से चली आ रही फाग उत्सव परंपरा को मनाने के लिए इस बार भी जोश देखने को मिला। ग्रामीणों ने परंपरा को कायम रखते हुए इस बार भी पुरे जोश से फाग उत्सव मना कर साबित कर दिया कि वे अपनी परंपरा व संस्कृति को नहीं भूले। फाग उत्सव में पहुंचे प्रदेश के कैबिनेट मंत्री कृष्ण लाल पंवार ने निकाली गई शोभा यात्रा का अवलोकन किया व चौपाल पर पहुंच कर रंगों की डाट को भी देखा। नौल्था के ऐतिहासिक फाग उत्सव को देखने के लिए प्रदेशभर के अन्य जिलों से भी लोग पहुँच कर ग्रामीणें के साथ फाग उत्सव का हिस्सा बने।
नौल्था के लोग आज भी अपनी पुरानी संस्कृति व परंपरा को संजोए हुए है। गांव के हर वर्ग ने फाग उत्सव पर रंगो की डाट में शामिल हुए व एक दूसरे को रंग लगा कर उत्सव मनाया। फाग उत्सव की शुरूआत परंपरा के अनुसार ग्रामीणों ने बाबा लाठे वाले व देवी देवताओं की झांकियां सजा कर पुरे गांव में शोभायात्रा निकाल कर की। अब की बार पहली बार शोभायात्रा में झोटा बुग्गी की जगह रथों का इस्तेमाल किया गया। Naultha Historic Faag Festival
Naultha Historic Faag Festival
शोभायात्रा के आगे आगे ग्रामीण डीजे की ताल पर नाच रहे थे। महिलाएं धार्मिक गीत गा रही थी। इससे पहले बाबा लाठे के मंदिर में पहुँच कर पूजा अर्चना की व उसके बाद पुरे गांव में शोभा यात्रा निकाली गई। इस बार भी परंपरा को कायम रखते हुए कढाओं में उबला रंग ठंडा कर प्रमुख चौपालों पर रख गया। गांव की सभी बिरादरियों के लोग आपसी भेदभाव भुलाकर चौपालों के नीचे गली में जमा हो गए व ऊपर से सभी पर रंग डाल कर रंगों की डाट की परंपरा निभाई गई।
स्थानीय लोगों का कहना है कि डाहर गांव में डाट होली की परंपरा साल 1288 से चली आ रही है। इसकी शुरुआत कैसे हुए के बारे में बताया कि मथुरा के पास फालन गांव में बाबा लाठे वाला के साथ कुछ बुजुर्ग फाग देखकर आए थे। वहां से आने के बाद से नौल्था गांव में यह फाग उत्सव से मनाया जाता है। यहां के फाग को देखने बाहर से हजारों लोग आते हैं।
बाबा लाठे वाला के नाम से गांव में गोशाला भी है। इस गांव के सभी युवा इकट्ठा होकर एकजुटता का प्रमाण देने के लिए होली मनाते थे। एकजुटता को देखते हुए एक समय में अंग्रेजों ने डाट होली पर रोक लगा दी थी। लेकिन, ग्रामीणों के विरोध को देखते हुए अंग्रेज को झुकना पड़ा और उन्हें यहां डाट होली मनाने की अनुमति देनी पड़ी। Naultha Historic Faag Festival
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डाहर गांव के लोगों का कहना है कि अगर गांव में होली के दिन या होली से 1 दिन पहले किसी कारणवश किसी की मृत्यु हो जाती है तो डाट होली की परंपरा बंद नहीं करते। बुजुर्ग बताते हैं कि होली के दिन या होली से पहले किसी के परिवार में किसी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उनके परिवार का ही एक सदस्य गांव में आकर रंग छिड़ककर होली मनाने की इजाजत देता है।
उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए कहा कि बहुत समय पहले गांव के घुम्मन जैलदार के बेटे सरदारा की फाग के दिन मौत हो गई। फाग उत्सव को रोक दिया गया था, लेकिन वर्षों से चली आ रही परंपरा न टूटे, इसके लिए घुम्मन जैलदार ने कहा कि फाग उत्सव जरूर मनेगा। बाद में बेटे का दाह संस्कार किया जाएगा। घुम्मन जैलदार ने रंग से पिचकारी भर बेटे की अर्थी पर मारी व फाग उत्सव शुरू हो गया। बेटे का दाह संस्कार बाद में कराया। Naultha Historic Faag Festival
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