How important is malaria vaccine for India वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गेनाइजेशन (डब्ल्यूएचओ) के मुताबिक भारत में एक साल में एक करोड़ 50 लाख लोग मलेरिया से पीड़ित होते हैं। इनमें से 19-20 हजार लोगों की अकाल मौत हो जाती है। अब 6 अक्टूबर को मलेरिया की वैक्सीन मसरिक्वरिक्स को डब्ल्यूएचओ से मंजूरी मिलने के बाद इस बीमारी पर विराम लगने की उम्मीद जगी है।
जानकार बताते हैं कि भारत जैसे विकासशील देशों के लिए यह वैक्सीन एक मील का पत्थर साबित हो सकती है। एक्सपर्ट का मानना है कि पांच साल के कम उम्र के बच्चों को लगने वाली ये वैक्सीन 30 फीसद घातक मलेरिया में मृत्युदर कम करके आने वाले समय में देश की बड़ी समस्या को काफी हद तक घटा देगी।
(How important is malaria vaccine for India)
मलेरिया से सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती है। अगर हम मलेरिया से होने वाली मौतों का क्लास वाइस एनालिसिस करें तो पाते हैं कि करीब 67 फीसदी बच्चों की मृत्यु दर देखने को मिलती है। मरने वालों में 5 साल से कम उम्र के बच्चे अधिक होते हैं।
छोटे बच्चों में मलेरिया के परजीवी ज्यादा प्रभाव डालते हैं। बच्चों में इस बीमारी के ज्यादा इफेक्ट की वजह ये है कि बच्चे परजीवी के साथ पहले संपर्क में नहीं आते हैं। बच्चों के शरीर में बड़ों के मुकाबले उस लेवल पर इम्यूनिटी नहीं बन पाती है। जिसकी वजह से पहली बार मलेरिया से ग्रसित बच्चों के लिए ये बीमारी जानलेवा हो जाती है।
वैसे तो भारत के हर इलाके में मलेरिया होता है, लेकिन खास करके छोटे-छोटे पहाड़ी इलाकों, जंगल के इलाकों में ये बीमारी अधिक फैली हुई है। देश के पूर्वी और मध्य भाग में ये बीमारी ज्यादा पाई जाती है, जिनमें उत्तर पूर्व के राज्यों व छत्तीसगढ़, ओडिशा और झारखंड प्रमुख हैं।
प्लाज्मोडियम नाम का परजीवी मच्छर के काटने पर शरीर में प्रवेश करता है और मलेरिया होता है। ये परजीवी चार प्रकार के होते हैं। भारत और दुनिया के कई हिस्सों में पाए जाने वाले प्लाज्मोडियम में से फाल्सीपेरम प्राणघातक होता है।
मच्छर के काटने के बाद यह परजीवी जब शरीर में प्रवेश करता है, तो तेजी से अपनी वंश वृद्धि कर पहले लीवर को प्रभावित करता है, फिर शरीर के रेड ब्लड सेल्स को नष्ट करता है।
इससे शरीर में ब्लड की कमी हो जाती है और मृत रक्त कणिकाएं यानी डेड ब्लड सेल्स शरीर के विभिन्न अंगों को निष्क्रिय कर देती है। इस स्थिति में संक्रमित की मौत हो जाती है।
मलेरिया की इस वैक्सीन का साइंटिफिक नेम आरटीएस, एस/एस01 हैं। जब परजीवी मच्छर के काटने से लीवर यानी कलेजा संक्रमित होता है तो इस टीके की प्रतिरोधकता के कारण परजीवी वंश वृद्धि नहीं कर पाता है।
यह अपने आप में दुनिया का सबसे पहला, ना केवल मलेरिया, बल्कि परजीवी जनित बीमारी के विरुद्ध विकसित किया गया टीका है। 6 अक्टूबर 2021 को डब्ल्यूएचओ के अप्रूवल के बाद इसके तीसरे फेज का ट्रायल शुरू किया गया है। रिसर्च के मुताबिक ये वैक्सीन 30 लोगों में प्राणघातक मलेरिया से बचाने में कारगर साबित हुई है।
मलेरिया के परजीवी मच्छर और इंसान दोनों में बसते हैं, इसी कारण वैक्सीन बनाने के प्रोसेस में काफी मुश्किल हुई। लगभग 30 साल के बाद वैक्सीन का वर्तमान स्वरूप आशा की किरण लेकर आया है।
परजीवी का लाइफ सर्कल, उसका बदलता स्वरूप, शरीर की प्रतिरोधक शक्ति में जटिलता आने के चलते वैक्सीन आने में देरी हुई। वैक्सीन बनाने वाली कंपनी ग्लैक्सो के साथ हुए भारत बायोटेक कंपनी के अनुबंध के अनुसार 2029 तक भारत बायोटेक विश्व में मुख्य वितरक कंपनी होगी।
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