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Uses Of Dronapushpi अद्भुत जड़ी (हर्ब) द्रोणपुष्पी के उपयोग

Mukta • LAST UPDATED : January 2, 2022, 3:04 pm IST

नेचुरोपैथ कौशल
Uses Of Dronapushpi द्रोणपुष्पी का पौधा बारिश के मौसम में लगभग हर जगह पैदा होता है, गर्मी के मौसम में इसका पौधा सूख जाता है। इसकी ऊंचाई 30 से 90 सेमी होती है और टहनी रोमों से युक्त होती है। इसके पत्ते तुलसी के पत्तों के समान 2.5 से 5 सेमी लंबे और 2.5 सेमी चौडे़ होते हैं।
द्रोणपुष्पी के पत्तों को रगड़ने पर तुलसी के पत्तों के समान गंध निकलती है। द्रोण (प्याला) के फूल होने के कारण इसका नाम द्रोणपुष्पी है। इसका फल हरा व चमकीला होता है। सर्दी के मौसम में इसमें फूल और बसन्त के सीजन में फल आते हैं इसकी कई जातियां होती हैं।

विभिन्न भाषाओं में नाम  (Uses Of Dronapushpi)

हिन्दी गूमा,
संस्कृत द्रोणपुष्पी
मराठी तुबा,
गुजराती कूबी,
बंगाली हलकसा,
लैटिन ल्यूकस

गुण (Uses Of Dronapushpi)

आयुर्वेदिक मतानुसार द्रोणपुष्पी का स्वाद कड़वा होता है! इसकी प्रकृति गर्म होती है। यह वात, पित्त, कफ को नष्ट करती है तथा बुखार, रक्तविकार, सर्पविष और पाचनसंस्थान रोगों में उपयोगी है। इसके अतिरिक्त सिर दर्द, पीलिया, खुजली, सर्दी, खांसी, यकृत, प्लीहा आदि रोगों में भी गुणकारी है। यूनानी चिकित्सा प्रणाली के अनुसार द्रोणपुष्पी गर्म प्रकृति की और खुश्क होती है।

यह सांप के जहर, पीलिया, कफज बुखार, पेट के कीड़े तथा कब्ज आदि रोगों को दूर करती है। वायु और कफ को मिटाना इसका खास गुण है। वैज्ञानिक मतानुसार द्रोणपुष्पी की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर फूलों में एक उड़नशील, सुगंधित तेल और एल्कोलाइड की उपस्थिति का पता चलता है। इनके बीजों से थोड़ी मात्रा में स्थिर तेल मिलता है। इसका असर बलगम हटाने, कीड़ों का दूर करने वाला, उत्तेजक, विरेचक (दस्तावर) होता है।

हानिकारक प्रभाव (Uses Of Dronapushpi)

ठण्डी प्रकृति वालों के लिए द्रोणपुष्पी का अधिक मात्रा में उपयोग हानिकारक होता है।

मात्रा (Uses Of Dronapushpi)

द्रोणपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल तथा फल) का चूर्ण 5 से 10 ग्राम। रस 10 से 20 मिलीलीटर।

विभिन्न रोगों में प्रयोग  (Uses Of Dronapushpi)

(1). खुजली:
द्रोणपुष्पी के ताजा रस को खुजली वाली जगह पर मलने से राहत मिलती है। खाज खुजली होने पर द्रोणपुष्पी का रस जहां पर खुजली हो वहां पर लगाने से लाभ होता है।

(2). सर्पविष :
द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में 2 कालीमिर्च पीसकर मिलाएं। इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार रोगी को पिलायें या रोगी की आंखों में इसके पत्तों का रस 2-3 बूंद रोजाना 4-5 बार डालें। इससे जहर का असर खत्म हो जाता है।

(3). शोथ (सूजन) :
द्रोणपुष्पी और नीम के पत्ते के छोटे से भाग को पीसकर सूजन पर गर्म-गर्म लेप लगाने से आराम मिलता है।

(Uses Of Dronapushpi)

(4). खांसी :
द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में आधा चम्मच बहेड़े का चूर्ण मिलाकर दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी दूर हो जाती है।

(5). संधिवात :

द्रोणपुष्पी के 1 चम्मच रस में इतना ही पीपल का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम लेने से संधिवात में लाभ मिलता है।

(6). सिरदर्द :
द्रोणपुष्पी का रस 2-2 बूंद की मात्रा में नाक के नथुनों में टपकाने से और इसमें 1-2 कालीमिर्च पीसकर माथे पर लेप करने से सिर दर्द में आराम मिलता है।

(Uses Of Dronapushpi)

(7). पीलिया :
द्रोणपुष्पी के पत्तों का 2-2 बूंद रस आंखों में हर रोज सुबह-शाम कुछ समय तक लगातार डालते रहने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।

(8). सर्दी :
द्रोणपुष्पी का रस नाक में 2-2 बूंद डालने से और उसका रस नाक से सूंघने से सर्दी दूर हो जाती है।

(9). बुखार :
2 चम्मच द्रोणपुष्पी के रस के साथ 5 कालीमिर्च का चूर्ण मिलाकर रोगी को पिलाने से ज्वर (बुखार) के रोग में आराम पहुंचता है।

(Uses Of Dronapushpi)

(10). श्वास, दमा :
द्रोणपुष्पी के सूखे फूल और धतूरे के फूल का छोटा सा भाग मिलाकर धूम्रपान करने से दमे का दौरा रुक जाता है।

(11). यकृत (जिगर) वृद्धि :
द्रोणपुष्पी की जड़ का चूर्ण आधा चम्मच की मात्रा में 1 ग्राम पीपल के चूर्ण के साथ सुबह-शाम कुछ हफ्ते तक सेवन करने से जिगर बढ़ने का रोग दूर हो जाता है।

(12). दांतों का दर्द :
द्रोणपुष्पी का रस, समुद्रफेन, शहद तथा तिल के तेल को मिलाकर कान में डालने से दांतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं तथा दांतों का दर्द ठीक होता है।

(13). खांसी :
3 ग्राम द्रोणपुष्पी के रस में 3 ग्राम बहेड़े के छिलके का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से खांसी का रोग ठीक हो जाता है।

(Uses Of Dronapushpi)

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