Russia Ukraine Dispute : क्या तुर्की रोक पाएगा रूस और यूक्रेन का युद्ध?
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: Russia Ukraine Dispute: रूस और यूक्रेन का युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन तुर्की इस युद्ध का रोकने का प्रयास कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि दो ईसाई देशों की जंग के बीच तुर्की देश अचानक क्यों अहम हो गया। बीते दो सप्ताह में तुर्की […]
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली: Russia Ukraine Dispute: रूस और यूक्रेन का युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है। लेकिन तुर्की इस युद्ध का रोकने का प्रयास कर रहा है। अब सवाल यह उठता है कि दो ईसाई देशों की जंग के बीच तुर्की देश अचानक क्यों अहम हो गया। बीते दो सप्ताह में तुर्की ने कूटनीतिक स्तर पर इस संकट के समाधान के लिए हर संभव प्रयास किए हैं और दावा किया है कि यूक्रेन और रूस समझौते के करीब पहुंच गए हैं। तो चलिए जानते हैं क्या तुर्की रूस और यूक्रेन को समझौते तक ला सकता है।
रूस यूक्रेन जंग में तुर्की अहम क्यों?
बता दें कि तुर्कीं का यूक्रेन और रूस के बीच मध्यस्थता करने का प्रस्ताव इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि वो समझौते को प्रैक्टिकली डिलीवर करने की स्थिति में है। तुर्की और रूस के बीच कई जगह सुरक्षा सहयोग है, उसकी वजह से दोनों के बीच विश्वास पैदा हुआ है। जैसे अजरबैजान, लीबिया और सीरिया में तुर्की और रूस के बीच सुरक्षा सहयोग हुआ है जिससे सैन्य स्तर पर भरोसा और संभावनाएं पैदा हुई हैं। वहीं यूक्रेन के साथ तुर्की के बहुत पुराने और मजबूत संबंध हैं। सांस्कृतिक, शिक्षा, कारोबारी और सुरक्षा के स्तर पर यूक्रेन और तुर्की के बीच अच्छे रिश्ते हैं।
Russia Ukraine Dispute
तुर्की इस स्थिति में है कि अगर वो यूक्रेन और रूस के बीच संघर्ष-विराम कराता है तो उसकी गारंटी ले सके। दोनों ही देशों पर उसका असर है। बाकी कई ऐसे देश हैं जो संघर्ष विराम करा तो सकते हैं लेकिन वो उसे लागू करा पाएंगे, इसकी संभावना बहुत ज्यादा नहीं है। यूक्रेन नाटो सुरक्षा गठबंधन का हिस्सा ना बने, तुर्की रूस की इस मांग को बेहतर तरीके से पूरा करा सकता है।
क्या तुर्की रूस और यूक्रेन दोनों के बराबर करीबी है?
इस क्षेत्र में तुर्की हमेशा एक बड़ा खिलाड़ी रहा है। उस्मानिया सल्तनत के दौर से ही तुर्की का यहां प्रभाव रहा है। क्राइमिया समेत यहां का बड़ा इलाका उस्मानिया सल्तनत का हिस्सा था। बाद में रूस के साथ युद्ध में तुर्की इन इलाकों को हार गया लेकिन उसका प्रभाव यहां बना रहा।
हालांकि पिछले 6-7 दशकों में तुर्की ने यहां कोई बड़ी भूमिका नहीं निभाई है। हालांकि, बीते दो दशकों में तुर्की का रक्षा क्षेत्र बहुत मजबूत हुआ है और आर्थिक उदय भी हुआ है।
तुर्की ने सीरिया और अजरबैजान की जंगों से सबक भी लिए हैं और अपनी विदेश नीति को सक्रिय किया है। इसकी वजह से तुर्की का आत्मविश्वास बढ़ा है, साथ ही दूसरे देशों का भरोसा भी तुर्की पर बढ़ा है। तुर्की का डिफेंस एक्सपोर्ट भी बढ़ा है। तुर्की के ड्रोन बेयरक्तार ने अपने आप में अलग पहचान और बेंचमार्क कायम किया है।
क्या रूस तुर्की की बात सुनेगा? (Russia Ukraine Dispute)
तुर्की यूक्रेन को ड्रोन दे रहा है, लेकिन ड्रोन का ये सौदा युद्ध से पहले ही हो चुका है। तुर्की ने यूक्रेन के अलावा और भी कई देशों को ड्रोन बेचे हैं। जब रूस ने इसका विरोध किया तो तुर्की ने यही तर्क दिया था कि जैसे आपने कई देशों को हथियार बेचे हैं, वैसे ही हमने भी बेचे हैं। तुर्की ने जिस तरह से ड्रोन देकर कई देशों की सेनाओं को मजबूत किया है। इससे जंग का तरीका भी बदला है।
तुर्की के ड्रोन से यूक्रेन की सेना मजबूत तो हुई ही है, ये जंग जो शायद दो सप्ताह में समाप्त हो जाती, अब लंबी खिंचती जा रही है। कहीं ना कहीं रूस के अंदर बेयरक्तार को लेकर नाराजगी होगी लेकिन रूस के पास तुर्की से संबंध जारी रखने के अलावा कोई चारा नहीं है।
तुर्की और रूस के संबंध कैसे हैं?
ऐतिहासिक रूप से तुर्की और रूस एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी तो रहे हैं लेकिन दुश्मन नहीं हैं। अपना असर बढ़ाने के लिए दोनों देश होड़ तो करते हैं लेकिन ये दुश्मनी के स्तर तक नहीं है। ऐसे में दुनिया में जहां-जहां रूस और तुर्की आमने-सामने आए हैं वहां-वहां उनका टकराव सहयोग में भी बदला है। सीरिया में पश्चिमी देश रूस के साथ सहयोग का कोई मॉडल बना नहीं पा रहे थे। लेकिन तुर्की ने आस्ताना पीस प्रोसेस के जरिए ऐसा मॉडल बनाया। लीबिया और अजरबैजान में भी तुर्की और रूस सहयोग करने में कामयाब रहे हैं।
बता दें कि ऐसे में तुर्की और रूस के बीच का रिश्ता बहुत अनूठा है। बीते दस सालों में रूस ने सबसे ज्यादा सहयोग तुर्की के साथ किया है। दोनों देशों ने इंटेलिजेंस भी शेयर की है। इससे दोनों देशों के बीच जो सहयोग बना है अगर वो यूक्रेन में भी कामयाब हो जाता है तो हमें ये मानना चाहिए कि इससे पश्चिमी देशों का प्रभाव भी सीमित होगा।
तुर्की भी नहीं चाहता है कि उसे पश्चिमी देशों के हितों के रक्षक के तौर पर देखा जाए। तुर्की में एक आम भावना ये भी है कि जब कई मुद्दों पर पश्चिमी देश उसके साथ खड़े नहीं होते हैं तो उसे भी बहुत हद तक अपने ही पैरों पर खड़ा होना चाहिए और अपने आप को मजबूत करना चाहिए। इसलिए तुर्की ये चाहता है कि अमेरिका और पश्चिमी देशों के दखल के बजाय उसे यूक्रेन में भूमिका मिल जाए और वो रूस के साथ मिलकर काम कर पाए। तुर्की इस मामले में बहुत गंभीरता से प्रयास इसलिए कर रहा है क्योंकि अगर वो यूक्रेन युद्ध को रोक पाया तो ये उसके लिए बहुत बड़ी कामयाबी होगी।
आखिर क्या है तुर्की की रणनीति? (Russia Ukraine Dispute)
इस क्षेत्र में तुर्की का प्रभाव रहा है और आगे रहेगा और इसे नकारा नहीं जा सकता। तुर्की खुद ये चाहता है कि इस इलाके में अमेरिका अकेले बहुत ताकतवर ना हो जाए और फ्रांस, जर्मनी या ब्रिटेन जैसा दूर का कोई देश यहां आकर बहुत प्रभावशाली न हो जाए। इस बात पर रूस और तुर्की के बीच एक सहमति है। दोनों ही नहीं चाहते कि इस क्षेत्र में कोई तीसरी शक्ति खड़ी हो।
तुर्की और रूस ये समझते हैं कि अगर क्षेत्र के दो देश मिलकर इस संकट का समाधान कर सकते हैं तो किसी बाहरी दूर के देश को यहां दखल देने का मौका नहीं मिलेगा। रूस और तुर्की ने इस मॉडल पर अर्मीनिया और अजरबैजान की जंग का समाधान किया था। इसी तरह उन्होंने सीरिया के मुद्दे का भी हल किया। हो सकता है कि यूक्रेन की समस्या को भी वो इसी मॉडल पर हल कर लें। इसी वजह से इस क्षेत्र के छोटे देशों का तुर्की पर भरोसा बढ़ रहा है।
क्या रूस और यूक्रेन के बीच समझौता हो सकता है?
तुर्की ने कहा है कि यदि यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच सीधी वार्ता होती है तो वो उसकी मेजबानी करने के लिए तैयार है। तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू ने रूस और यूक्रेन की यात्रा की है। वहीं दोनों देशों के विदेश मंत्रियों ने भी तुर्की की यात्रा की और तुर्की की मध्यस्थता में बातचीत की है।
बीते दिनों तुर्की के विदेश मंत्री मेवलुत कावासोगलू ने बयान के जरिए कहा था कि तुर्की की मध्यस्थता में रूस और यूक्रेन समझौते के करीब पहुंच गए हैं। हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत आसान नहीं है और कई मुद्दों पर गंभीर गतिरोध बरकरार है। तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तेयेप अर्दोआन कई बार ये कह चुके हैं कि तुर्की रूस या यूक्रेन में से किसी के साथ भी अपने संबंध नहीं तोड़ेगा और दोनों देशों के साथ उसके मजबूत संबंध एक एसेट हैं।
तुर्की नाटो का सदस्य है लेकिन उसने अब तक रूस पर प्रतिबंधों का समर्थन नहीं किया है ना ही किसी तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। तुर्की का रूस के साथ कारोबार भी जारी है। तुर्की ने एक तरफ यूक्रेन को बेयरेकतार ड्रोन दिए हैं जो लड़ाई में खासे प्रभावी साबित हो रहे हैं। यूक्रेन की जनता ने बेयरेकतार ड्रोन की तारीफ में गाने तक बना लिए हैं और रूसी सैनिकों के सामने बेयरेकतार का नाम लेकर उन्हें चिढ़ाया जा रहा है। वहीं तुर्की रूस के साथ भी नजदीकी संबंध भी बनाए हुए है।
वहीं पर्दे के पीछे तो दोनों देशों के बीच कई स्तर पर वार्ता और सौदेबाजी चल रही होगी। क्या लिया जाए और क्या छोड़ दिया जाए इस पर चर्चा हो रही। रूस की मांगें बहुत अधिक हैं। उसी विश्वास के साथ यूक्रेन भी अपनी मांगें रख रहा है। तुर्की इन दोनों को एक कॉमनग्राउंड पर लाने की कोशिश कर रहा है। अब तक की बातचीत से ये अंदाजा तो हो रहा है कि दोनों ही पक्षों की कई मुद्दों पर शायद समझ बन गई है। लेकिन अभी कई मुद्दों पर बातचीत बाकी है।