Alimony: जब पति-पत्नी के बीच का रिश्ता खत्म होता है, तो रिश्ता टूटने के साथ ही आर्थिक मुश्किलें भी आती हैं. शादी से पहले तो दोनों मिलकर घर, खर्च, जिम्मेदारियां साथ मिलकर संभालते थे. हालांकि अलग होने के बाद ये सब केवल एक ही इंसान पर पड़ता है. ऐसे में एक पार्टनर के पास इनकम स्थिर होती है और दूसरे को अपनी जिंगी फिर से शुरू करनी पड़ती है. बता दें कि एलिमनी यानी गुजारा भत्ता पति-पत्नी के तलाक के बाद एक-दूसरे को आर्थिक सहायता देने की व्यवस्था है. इसमें कोर्ट दोनों की आय, जीवनशैली, उम्र, सेहत, और शादी की अवधि जैसे कारकों को देखकर एलिमनी या मेंटेनेंस तय करती है.
हालिया अदालती फैसलों में कोर्ट ने आत्मनिर्भर पत्नी को एलिमनी का अधिकार नहीं माना. इस पर कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि अगर पत्नी अपने जीवन यापन के लिए अच्छा पैसा कमाती है. या उसके पति की इनकम पत्नी से कम होती है, तो पत्नी को मेंटेनेंस और एलिमनी नहीं दी जाएगी. इसके अलावा अगर पत्नी के ऊपर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है और पति अपने माता-पिता का ख्याल रखता है. साथ ही पत्नी अपने जीवन यापन के लिए अच्छा पैसा कमाती है, तो वो एलमनी या मेंटेनेंस की अधिकारी नहीं है.
वहीं कोर्ट एलिमनी को न्यायिक सहायता मानती है, अधिकार नहीं. कोर्ट का कहना है कि पति की आय पर निर्भर पत्नी को गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है ताकि वो तलाक के बाद भी अपनी जिंदगी सही से जी सके. हालांकि अगर पत्नी आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है, तो उसे एलिमनी मांगने का अधिकार नहीं है. कोर्ट का मानना है कि भरण-पोषण का अधिकार पति और पत्नी दोनों को है.
बता दें कि कोर्ट कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए मेंटेनमेंस या एलिमनी तय करती है. पति-पत्नी की सैलरी, बिजनेस, प्रॉपर्टी और कमाई के स्तर को ध्यान में रखते हुए मेंटेनेंस तय किया जाता है. इसके अलावा शादी के दौरान दोनों का रहन-सहन, पति पर माता-पिता और बच्चों की जिम्मेदारी का पहलू ध्यान में रखी जाता है. शादी की अवधि और पति-पत्नी की आत्मनिर्भरता को भी देखा जाता है.
हालांकि मेंटेनेंस और एलिमनी में भी फर्क होता है. मेंटेनेंस का अर्थ होता है कि जब पति या पत्नी अपना खर्च उठा पाने में सक्षम नहीं होते और वो दूसरे साथी को आर्थिक मदद देता है, उसे मेंटेनेंस कहते हैं. इसके उद्देश्य होता है कि जरूरतमंद व्यक्ति की खाना, कपड़े, रहने की जगह और दवाई जैसी जरूरतें पूरी होती रहें.
वहीं एलिमनी तलाक के बाद दी जाती है. इसके लिए एकमुश्त राशि दी जाती है. जब कानूनी रूप से शादी खत्म हो जाती है और एक साथी के पास खर्च चलाने के लिए कमाई का साधन नहीं होता, तो एलिमनी दी जाती है. ये दूसरे साथी की आय, जीवनशैली और भुगतान करने की क्षमता के आधार पर तय की जाती है.
3 दिसंबर 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया, जिसमें कोर्ट ने कहा कि पत्नी को तभी गुज़ारा भत्ता मिल सकता है, जब वह अपना खर्च खुद उठाने में सक्षम न हो. हालांकि जो पत्नी पहले से ही 36,000 रुपये सैलरी कमा रही है और उसके ऊपर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं है, उसे अपने पति से गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार नहीं है. बता दें कि इस मामले में पति अपने बुजुर्ग माता-पिता का ख्याल रखता था. वहीं पत्नी के ऊपर कोई बड़ी जिम्मेदारी नहीं थी.
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