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Coal 360 Degree
इंडिया न्यूज, नई दिल्ली:
पूरे विश्व में कोरोना काल के बाद अब कोयला संकट का खतरा मंडरा रहा है। पहले चीन और अन्य देशों में कोयले की कमी के कारण बिजली संकट की खबरें आई तो इसके बाद भारत भी कोयले के कमी और बिजली संकट जैसी खबरों से अछूता नहीं रहा है।
हालांकि सरकार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि भारत में कोयले की कमी नहीं रहेगी। लेकिन बहुत से लोगों में कोयले को लेकर अभी भी संशय और ढेरों सवाल है, जैसे भारत में एक दिन में कितना कोयला का उत्पादन होता है, कितनी खपत है, विश्व में कितना कोयले का उत्पादन होता और कितनी खपत होती है। विश्व के मुकाबले भारत की स्थिति क्या है और यदि एक दिन कोयला खत्म हो गया था क्या होगा, कोयले के बिना कितने दिन तक बिजली बनी रहेगी आदि।
एक रिपोर्ट के मुताबिक हर साल दुनिया में औसतन 16 हजार मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है। इसमें से सिर्फ बिजली बनाने के लिए ही 60 से 65% तक कोयले का इस्तेमाल हो जाता है। जबकि भारत में हर साल औसतन 760 मिलियन टन कोयले का उत्पादन होता है। इसमें से लगभग 75% कोयला बिजली बनाने में ही खर्च हो जाता है। कोयला उत्पादन और खपत में भारत का दुनिया में दूसरा स्थान है।
भारत सरकार की माने तो हमारे पास 319 अरब टन कोयला है। लेकिन यूरोप और अमेरिका की एजेंसियां कहती हैं कि भारत के पास 107 अरब टन कोयला है। एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में औसतन 1 अरब टन कोयले की खपत हो जाती है। यदि इसे कैल्गूलेट किया जाएं तो भारत सरकार से मिली जानकारी अनुसार हमारे पास अगले 319 साल तक का कोयला है जबकि विदेशी एजेंसियों के अनुसार भारत के पास 107 साल कोयला बचा है।
यदि दुनिया में कोयले रिजर्व की बात की जाएं तो दुनियाभर की खदानों में कुल 1,144 बिलियन टन कोयला बचा है। यह आंकड़ा 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक है जब दुनिया में कोयला की मात्रा मापी गई थी। हालांकि हर साल दुनिया में करीब 8.5 अरब टन कोयला खप जाता है। यदि इसे कैल्गूलेट किया जाएं तो अगले 135 साल में कोयला खत्म हो सकता है।
यदि बिजली उत्पादन की बात की जाएं तो बिजली सिर्फ कोयले पर निर्भर नहीं है। सिर्फ विश्व में 40 प्रतिशत बिजली ही कोयले से बनाई जाती है। बाकी 60 प्रतिशत बिजली रिन्यूएबल रिसोर्सेस हवा और सौर उर्जा के जरिए बनाई जाती है। वहीं अमेरिका का लक्ष्य है कि 2040 तक कोयले से सिर्फ 20 प्रतिशत ही बिजली बनाई जाएगी।
वहीं भारत में 55 प्रतिशत बिजली कोयले से बनाई जाती है। बाकी की 35 प्रतिशत बिजली अन्य स्रोतों जैसे कि रिन्यूएबल रिसोर्सेज और हाइड्रो पावर प्लांट के जरिए बनाई जाती है। रिन्यूएबल एनर्जी के लिए भारत ने 2022 का टारगेट 1,75,000 मेगा वॉट का रखा है जो कि कुल बिजली उत्पादन का सिर्फ 45% है। लेकिन हम जल्द ही 2022 में प्रवेश भी करने वाले हैं, ऐसे में हमारा ये लक्ष्य 2022 तक पूरा होता दिखाई नहीं दे रहा है।
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आंकड़ों के मुताबिक भारत में 107 साल का कोयला रिजर्व है जबकि विश्व में 135 साल तक का और ये रिजर्व साल दर साल कम भी होता जा रहा है। यदि हम एक मिनट के लिए सोचे कि कोयला पृथ्वी से खत्म हो गया तो क्या होगा। क्या हम वाकई अंधेरे में डूब जाएंगे? तो इसका जवाब है नहीं। यदि दुनियाभर की खाद्दानों से कोयला खत्म भी हो गया तो भी हमारे पास बिजली बनाने के लिए अन्य स्रोत मौजूद रहेंगे। इतना ही नहीं, जब तक का कोयला रिजर्व है, उतने सालों में तो बहुत सारी ऐसी नई तकनीकें आ जाएंगी जिससे कोयले के बिना भी 100 प्रतिशत बिजली आपूर्ति की जा सकेगी।
8 अक्टूबर को आस्ट्रेलिया के हाई ग्रेड थर्मल कोयले का दाम 229 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गया था। जबकि 30 अप्रैल को इसका दाम 88.52 डॉलर प्रति टन था। वहीं जापान और दक्षिण कोरियाई कोयले का दाम भी पिछले साल सितंबर की तुलना में इस साल 400 फीसदी से ज्यादा बढ़ गया है। 2020 में इंडोनेशियाई कोयले का दाम निचले स्तर 22.65 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गया था।
अब इसकी कीमत 8 अक्टूबर को करीब 440 फीसदी बढ़कर 122.08 डॉलर प्रति टन के स्तर पर पहुंच गई है। कीमतों में आई बढ़ोतरी की वजह देश में कोयला इंपोर्ट प्रभावित हुआ है। भारत ने बढ़ती कीमतों की वजह से इंपोर्ट में कमी कर दी है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारत में जून के बाद से इंपोर्ट में लगातार कमी दर्ज की गई है। अक्टूबर के पहले हफ्ते में भारत ने 2.67 मिलियन टन कोयले का इंपोर्ट किया था। वहीं पिछले साल इस दौरान 3.99 मिलियन टन कोयले का इंपोर्ट किया था।
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