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इंडिया न्यूज, नई दिल्ली :
High Court New Order पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने पत्नी की फोन कॉल रिकॉर्ड करने को लेकर हाल ही में एक अहम फैसले में बिना अनुमति पत्नी की कॉल रिकॉर्ड करने को निजता के अधिकार का उल्लंघन बताया। हाईकोर्ट ने कॉल रिकॉर्ड (Wife Phone Call Record) करने वाले पति को फटकार लगाते हुए कॉल रिकॉर्ड को सबूत के तौर पर स्वीकार करने के आदेश को भी खारिज कर दिया है। आइए जानते हैं कि हाई कोर्ट ने ऐसा आदेश क्यों दिया।
Recording Wife Phone Call Record: आपको बता दें कि जस्टिस लिसा गिल की खंडपीठ ने फैमिली कोर्ट के 29 जनवरी 2020 के उस आदेश को कैंसिल कर दिया, जिसमें पति को तलाक के मुकदमे में पत्नी के खिलाफ क्रूरता का मामला दर्ज कराने के लिए उसके और पत्नी के बीच टेलिफोन पर हुई बातचीत को साबित करने की अनुमति दी गई थी।
Secretly Recording Wife Phone Call: 2017 में बठिंडा फैमिली कोर्ट में एक महिला के पति ने विभिन्न आधारों पर तलाक मांगते हुए एक याचिका दायर की थी। बताया जाता है कि दंपत्ति की शादी फरवरी 2009 में हुई थी और 2011 में उन्हें एक बेटी हुई। इस मामले में सुनवाई आगे बढ़ने पर पति ने सबूत के तौर पर पत्नी के साथ फोन पर हुई बातचीत को पेश करने की इजाजत मांगी, जिसकी इजाजत फैमिली कोर्ट ने दे दी थी। (high court new order)
Recording Wife Phone Call Violation of Right to Privacy: पत्नी के कॉल रिकॉर्ड को सबूत के तौर पर पेश करने के लिए पति ने ये तर्क दिया था कि इससे वह पत्नी की ओर से उसके साथ की गई क्रूरता के आरोपों को साबित कर सकेगा। ऐसा होने पर उसके लिए कोर्ट से तलाक लेना आसान होगा। बठिंडा फैमिली कोर्ट ने पति को उसके और उसकी पत्नी के बीच रिकॉर्ड की गई बातचीत से संबंधित सीडी पेश करने की अनुमति दी थी, बशर्ते कि वह सही हो। (high court new order)
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Wife Phone Call Record High Court Order: पत्नी ने कॉल रिकॉर्ड को सबूत मानने के फैमिली कोर्ट के फैसले को हाई कोर्ट में दी चुनौती दी। पत्नी ने तर्क दिया कि पति की ओर से दिए गए सबूत पूरी तरह से अदालत की बहस से परे थे और इसलिए पूरी तरह से अस्वीकार्य थे। इसलिए फैमिली कोर्ट ने सबूत को गलत तरीके से स्वीकार किया।
साथ ही याचिकाकर्ता पत्नी का तर्क था कि बातचीत के टेप वाली सीडी, संविधान के आर्टिकल-21 के तहत उसे मिले राइट टु प्राइवेसी (निजता के अधिकार) का उल्लंघन है, क्योंकि इस बातचीत को बिना उसकी सहमति के या बिना उसे संज्ञान में लिए रिकॉर्ड किया गया था। (high court new order)
पत्नी के वकील का ये भी तर्क था कि फैमिली कोर्ट ने इंडियन एविडेंस एक्ट के सेक्शन 65 का भी ध्यान नहीं रखा, जिसके मुताबिक, किसी भी मामले में रिकॉर्डिंग की सीडी और उसके टेप को सबूत के रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता है।
पत्नी के वकील ने कहा कि पति को अच्छी तरह पता था कि कथित बातचीत की रिकॉर्डिंग तलाक केस फाइल करने से पहले की गई थी, और उसे पहली बार में ही उन्हें अपनी दलीलों में शामिल करने की आजादी थी। हालांकि इस तरह की बातचीत की सत्यता की पुष्टि नहीं की जा सकती, भले ही इसे सही भी माना जाए, तो भी वे सबूत के रूप में स्वीकार्य नहीं हैं, क्योंकि उन्हें याचिकाकर्ता की सहमति या जानकारी के बिना रिकॉर्ड किया गया है। (high court new order)
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पत्नी की याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट, भठिंडा के पति की ओर पेश फोन रिकॉर्डिंग को सबूत के तौर पर स्वीकार करने के फैसले को खारिज कर दिया। बताया जाता है कि फैमिली कोर्ट से मंजूरी मिलने के बाद पति ने पत्नी के साथ हुई बातचीत फोन की मेमोरी में रिकॉर्ड की थी और फिर उसकी सीडी बनाकर कोर्ट में लेकर पहुंचा था।
जस्टिस लिसा गिल की खंडपीठ ने पति की ओर पत्नी के साथ टेलिफोन पर हुई बातचीत को सबूत के तौर पर पेश करने के फैमिली कोर्ट के इस आदेश को खारिज कर दिया। हाई कोर्ट ने इसे स्पष्ट रूप से पत्नी के मौलिक अधिकारों का उल्लघंन माना। (high court new order)
हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द करते हुए पत्नी की बात को सही माना। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, ”’…इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है कि जिस सीडी को लेकर सवाल है वह स्पष्ट तौर पर याचिकाकर्ता महिला के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, यानी उसके निजता के अधिकार का भी उल्लघंन है।
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