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Lok Sabha Election: 4 जून तय करेगा भजनलाल-राजे का भविष्य, प्रदेश की राजनीति में भी बदलाव तय

India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, जयपुर: लोकसभा चुनाव अब अंतिम दौर में पहुंच रहा है। ऐसे में अब देश की निगाहें चुनाव परिणाम पर है तो वहीं राजस्थान के लोगों की नजरें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीति पर है। दरअसल, भजनलाल और वसुंधरा का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह […]

BY: Sailesh Chandra • UPDATED :
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India News (इंडिया न्यूज), अजीत मेंदोला, जयपुर: लोकसभा चुनाव अब अंतिम दौर में पहुंच रहा है। ऐसे में अब देश की निगाहें चुनाव परिणाम पर है तो वहीं राजस्थान के लोगों की नजरें मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की राजनीति पर है। दरअसल, भजनलाल और वसुंधरा का राजनीतिक भविष्य क्या होगा, यह 4 जून को चुनाव परिणामों के साथ तय होगा। आज के दिन की बात की जाए तो मुख्यमंत्री भजनलाल भाजपा में एक तरह से अकेले पड़ गए दिख रहे हैं। इसके पीछे कई वजह है। जहां तक पूर्व सीएम राजे का सवाल है तो उन्होंने इस बार चुनाव में केवल इतनी ही रुचि ली कि उनका बेटा दुष्यंत सिंह किसी तरह से भारी मतों से जीत जाए।

इससे पूर्व दो दशक तक राजस्थान भाजपा की राजनीति वसुंधरा राजे के ही इर्द—गिर्द घूमती रहती थी। इस दौरान उन्होंने जो चाहा, वही हुआ। राजे ने दिल्ली की कभी परवाह ही नहीं की, लेकिन पिछले साल हुए विधानसभा चुनाव में दिल्ली ने अपनी ताकत का अहसास करा उन्हें साइडलाइन कर दिया। अब राजे 4 जून को आने वाले परिणामों पर नजर रखे हुए है कि दिल्ली मजबूत होता है या कमजोर।

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Bhajan Lal-vasundhara

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फिलहाल जो खबरें आ रही है उससे यह तो पता चल रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में राजग की सरकार बन जाएगी।हालांकि यह देखना होगा कि राजग 300 पार कहां तक पहुंचता है, क्योंकि वह ऐसी संख्या होगी जो प्रधानमंत्री मोदी को ताकत देगी और भाजपा की आगे की राजनीति का भी संकेत देगी। दिल्ली के कमजोर या ताकतवर होने का सीधा असर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और राजे की राजनीति पर पड़ेगा।

भजनलाल दिल्ली की मेहरबानी से हैं सीएम

यह बात स्पष्ट है कि भजनलाल दिल्ली की मेहरबानी से ही मुख्यमंत्री हैं। अभी अपने बलबूते पर वे कुछ कर नहीं पा रहे हैं। जहां तक राजे का सवाल है उनका पूरा हिसाब पूरी तरह से अलग है। वह अपने बलबूते पर राजनीति कर रही है। जिसका उन्होंने खामियाजा भी उठाया। दिल्ली ने उन्हें किनारे कर नई लीडरशिप तैयार कर दी। हालांकि नई लीडरशिप अभी उतनी ताकतवर नहीं हो पाई कि वह खुद कोई फैसला कर सके। उसके कई बड़े कारण है।

पहली बड़ी वजह यही है कि अफसरशाही हावी हैं। हालांकि अशोक गहलोत सरकार पर भी यह आरोप लगते रहे हैं कि उनके समय भी अफसरशाही हावी रहती थी। जिससे कार्यकर्ताओं और नेताओं की कोई सुनवाई नहीं होती थी, लेकिन उस समय में और अब में अंतर यह है कि उस समय सरकार का रिमोट उस समय तत्कालीन मुख्यमंत्री गहलोत के हाथ में रहता था। वह जिसे चाहते उसे उठाते—बिठाते थे, लेकिन मुख्यमंत्री भजनलाल के मामले में अभी ऐसा नहीं है।

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‘भजनलाल के अफसर दिल्ली के निर्देश पर चल रहे हैं’

भजनलाल सरकार के कार्यकाल में अफसर दिल्ली के निर्देश पर चल रहे हैं। इसलिए अभी दिल्ली हावी है। अधिकांश अफसर तो भरोसा ही नहीं कर रहे है कि भजनलाल लंबा चलेंगे। ऐसे में 4 जून को दिल्ली में मोदी की अगुवाई में मजबूत सरकार बन गई, तो देखना होगा कि भजनलाल ताकतवर होते हैं या फिर कोई बदलाव होता है। दूसरी बड़ी वजह है कि दिल्ली की तरफ से तैयार नई लीडरशिप में ही आपस में तालमेल नहीं है। उप मुख्यमंत्री दिया कुमारी तो पिछले साल ही सीएम बनने की उम्मीद लगाए हुई थी। वह अपने आप में एक गुट हैं।

ऐसे ही कई और मंत्री है, जिन्हें लगता है कि वह बहुत सीनियर है। सीएम उनके मुकाबले जूनियर है, जिसके चलते भी सरकार में तालमेल नहीं बैठ रहा है। ऐसे में अफसर भी ढीले ही दिख रहे हैं। जिस कानून व्यवस्था को मुद्दा बना बीजेपी सत्ता में आई वह चौपट ही दिख रही है। कांग्रेस मौके का फायदा उठा हमलावर बनी हुई है। ऐसे में पूर्व सीएम राजे और उन्हें समर्थक इसी बात पर नजर रखे हुए हैं कि 4 जून के बाद क्या उनकी पूछ होती है या नहीं। राजे भले ही बीजेपी की उपाध्यक्ष हो, लेकिन चुनाव में अलग—थलग ही रही है।

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